फ्रॉम रामविलास पासवान
हमें दिल्ली से डा.सुरेश ऋतुपर्ण ने 'हिंदी जगत' नामक पत्रिका की दो प्रतियाँ भेजीं रजिस्टर्ड पोस्ट से लेकिन वे आज तक नहीं मिलीं |मन मसोस कर रह गए और फिर उनके द्वारा भेजी गई पीडीऍफ़ पढ़कर की संतोष किया |कल ही सागर से प्रसिद्ध गज़लकार अशोक मिज़ाज का फोन आया कि उनके द्वारा हमें स्पीड पोस्ट से भेजी गई उनके नए ग़ज़ल संकलन 'किसी किसी पे ग़ज़ल मेहरबान होती है' की दो प्रतियां लौट कर उनके पास पहुँच गई हैं |
विगत कुछ वर्षों से फोन और विशेषकर मोबाइल फोन के कारण पत्र लेखन बंद सा हो गया है फिर भी सरकारी कामों में डाक से भेजे रजिस्टर्ड पत्र या स्पीड पोस्ट की रसीद को ही पत्र भेजने का प्रमाण माना जाता है |अब इन दो घटनाओं के बाद पत्र लेखक या सरकारी सेवा पर विश्वास करने वाले क्या करें जब रजिस्टर्ड और स्पीड पोस्ट भी न पहुंचे |
कुछ वर्षों पहले की एक और घटना याद आती है जब अमरीका में थे और कनाडा से स्नेह ठाकुर ने अपनी कुछ पुस्तकें भेजी थीं |पुस्तक की जिल्द के कोने से लिफाफा फट गया था इसलिए किसी पोस्ट ऑफिस वाले ने पुस्तकों को पोलीथिन के एक मजबूत लिफाफे में डालकर भेजा जिस पर फ्रेंच और अंग्रेजी में छपा हुआ था - आशा है, आपका सामान सही सलामत आपके पास पहुँच गया होगा |लिफाफा फट जाने से हम इसे नए लिफाफे में डाल कर भेज रहे हैं |
मन प्रसन्न हो गया इस सेवा और सभ्यता से |
दो महिने पहले अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, अमरीका की पत्रिका 'विश्वा' की एक प्रति रजिस्टर्ड बुक पोस्ट से डा. सत्यव्रत, श्रीगंगानगर को भेजी जो पता नहीं, कैसे श्रीनगर पहुँच गई |वास्तव में उस पर पता सही लिखा था |फिर उसे वहाँ के कर्मचारियों ने श्रीगंगानगर भेजा |यहाँ भी एक सुखद उदाहरण मिला |
हमारे बचपन में उम्र में हमारे दादाजी के बराबर के एक पोस्ट मैन हुआ करते थे- लक्ष्मीनारायण शर्मा | जिसका पत्र होता उसी को देते थे |सारी डाक निबटा कर घर जाते थे भले ही शाम हो जाए |अपने साथ लिफाफे-पोस्टकार्ड भी रखते थे जिन्हें छपे मूल्य पर ज़रूरतमंदों को देते थे और ज़रूरी हो तो उनके पत्र पढ़कर सुनाते थे और माँग करने पर उनके पत्रों का उत्तर भी लिखते थे और डाक में खुद ही डालते भी थे |और अब तो दिल्ली तक में रजिस्टर्ड पत्र कुएँ में पड़े मिल जाते हैं |
आज जब इन्हीं बातों की चर्चा तोताराम से की तो बोला- पोस्ट ऑफिस की समस्या का एक ही उपाय है कि तुम अपने सभी मित्रों को लिख दो कि जब भी पत्र भेजें तो फ्रॉम की जगह राम विलास पासवान लिखें और तुम भी वैसा ही किया करो |
हमने कहा- इससे क्या हो जाएगा |जब रजिस्टर्ड और स्पीड पोस्ट तक नहीं पहुंचते तो इनके नाम से कोई साधारण पत्र भी कैसे सुनिश्चित पहुँच जाएगा |
बोला- क्यों नहीं, पढ़ा नहीं ? उनके नव वर्ष के कार्ड नहीं पहुंचे तो डाक विभाग के तीन अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया कि नहीं ?
हमने कहा- क्या सारे विभागों की ज़िम्मेदारी केवल इन्हीं की सेवा ढंग से करने की है ?देश के बाकी लोगों के पत्रों का कोई महत्त्व नहीं ?
बोला- यह तो पता नहीं लेकिन यह खबर भी पक्की है कि साधारण लोगों की प्राथमिकी तक नहीं लिखने वाली पुलिस दिल्ली में एक सांसद के कटहलों की और पटना में मुख्यमंत्री के बंगले पर आम और लीची की रखवाली के लिए दसियों पुलिस मैन तैनात हैं |
हमें दिल्ली से डा.सुरेश ऋतुपर्ण ने 'हिंदी जगत' नामक पत्रिका की दो प्रतियाँ भेजीं रजिस्टर्ड पोस्ट से लेकिन वे आज तक नहीं मिलीं |मन मसोस कर रह गए और फिर उनके द्वारा भेजी गई पीडीऍफ़ पढ़कर की संतोष किया |कल ही सागर से प्रसिद्ध गज़लकार अशोक मिज़ाज का फोन आया कि उनके द्वारा हमें स्पीड पोस्ट से भेजी गई उनके नए ग़ज़ल संकलन 'किसी किसी पे ग़ज़ल मेहरबान होती है' की दो प्रतियां लौट कर उनके पास पहुँच गई हैं |
विगत कुछ वर्षों से फोन और विशेषकर मोबाइल फोन के कारण पत्र लेखन बंद सा हो गया है फिर भी सरकारी कामों में डाक से भेजे रजिस्टर्ड पत्र या स्पीड पोस्ट की रसीद को ही पत्र भेजने का प्रमाण माना जाता है |अब इन दो घटनाओं के बाद पत्र लेखक या सरकारी सेवा पर विश्वास करने वाले क्या करें जब रजिस्टर्ड और स्पीड पोस्ट भी न पहुंचे |
कुछ वर्षों पहले की एक और घटना याद आती है जब अमरीका में थे और कनाडा से स्नेह ठाकुर ने अपनी कुछ पुस्तकें भेजी थीं |पुस्तक की जिल्द के कोने से लिफाफा फट गया था इसलिए किसी पोस्ट ऑफिस वाले ने पुस्तकों को पोलीथिन के एक मजबूत लिफाफे में डालकर भेजा जिस पर फ्रेंच और अंग्रेजी में छपा हुआ था - आशा है, आपका सामान सही सलामत आपके पास पहुँच गया होगा |लिफाफा फट जाने से हम इसे नए लिफाफे में डाल कर भेज रहे हैं |
मन प्रसन्न हो गया इस सेवा और सभ्यता से |
दो महिने पहले अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, अमरीका की पत्रिका 'विश्वा' की एक प्रति रजिस्टर्ड बुक पोस्ट से डा. सत्यव्रत, श्रीगंगानगर को भेजी जो पता नहीं, कैसे श्रीनगर पहुँच गई |वास्तव में उस पर पता सही लिखा था |फिर उसे वहाँ के कर्मचारियों ने श्रीगंगानगर भेजा |यहाँ भी एक सुखद उदाहरण मिला |
हमारे बचपन में उम्र में हमारे दादाजी के बराबर के एक पोस्ट मैन हुआ करते थे- लक्ष्मीनारायण शर्मा | जिसका पत्र होता उसी को देते थे |सारी डाक निबटा कर घर जाते थे भले ही शाम हो जाए |अपने साथ लिफाफे-पोस्टकार्ड भी रखते थे जिन्हें छपे मूल्य पर ज़रूरतमंदों को देते थे और ज़रूरी हो तो उनके पत्र पढ़कर सुनाते थे और माँग करने पर उनके पत्रों का उत्तर भी लिखते थे और डाक में खुद ही डालते भी थे |और अब तो दिल्ली तक में रजिस्टर्ड पत्र कुएँ में पड़े मिल जाते हैं |
आज जब इन्हीं बातों की चर्चा तोताराम से की तो बोला- पोस्ट ऑफिस की समस्या का एक ही उपाय है कि तुम अपने सभी मित्रों को लिख दो कि जब भी पत्र भेजें तो फ्रॉम की जगह राम विलास पासवान लिखें और तुम भी वैसा ही किया करो |
हमने कहा- इससे क्या हो जाएगा |जब रजिस्टर्ड और स्पीड पोस्ट तक नहीं पहुंचते तो इनके नाम से कोई साधारण पत्र भी कैसे सुनिश्चित पहुँच जाएगा |
बोला- क्यों नहीं, पढ़ा नहीं ? उनके नव वर्ष के कार्ड नहीं पहुंचे तो डाक विभाग के तीन अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया कि नहीं ?
हमने कहा- क्या सारे विभागों की ज़िम्मेदारी केवल इन्हीं की सेवा ढंग से करने की है ?देश के बाकी लोगों के पत्रों का कोई महत्त्व नहीं ?
बोला- यह तो पता नहीं लेकिन यह खबर भी पक्की है कि साधारण लोगों की प्राथमिकी तक नहीं लिखने वाली पुलिस दिल्ली में एक सांसद के कटहलों की और पटना में मुख्यमंत्री के बंगले पर आम और लीची की रखवाली के लिए दसियों पुलिस मैन तैनात हैं |
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