ट्रेन का टाइम
रविवार को गाँव जाने का विचार है |ट्रेन सुबह कोई छः-सवा छह बजे यहाँ से चलती है |कभी-कभी ऑटो नहीं मिलते तो पैदल ही मार्च करना पड़ता है |सुबह का भ्रमण, दस रुपए की बचत; बस घर से आधे घंटे पहले निकलना होता है |इसलिए एहतियात के तौर पर तोताराम से ट्रेन का ठीक समय जानना चाहा तो बोला- ट्रेन का कोई समय नहीं होता |जिस समय ट्रेन चल दे वही ट्रेन का समय होता है | दुनिया की कोई दो घड़ियाँ कभी एक सामान समय नहीं देतीं | किसी माल की मैन्यूफेक्चरिंग डेट वही होती है जिस दिन कंपनी से बाहर निकलता है |कुछ तो यह तारीख़ इतने छोटे अक्षरों में छापते हैं या इस तरह किसी गुप्त से स्थान पर छापते हैं या इतनी अधिक स्याही लगा देते हैं कि वर्ष २०१७, २०१८, २०१९ तक में कोई फर्क करना मुश्किल हो जाता है |
हमने कहा- हमने केवल रविवार को सुबह जाने वाली ट्रेन का टाइम पूछा है, समस्त व्यापारिक जगत की बदमाशी का हिसाब नहीं |
बोला- यदि स्टेशन के बोर्ड से टाइम मैच नहीं करता तो स्टेशन मास्टर कह देगा- यह पुराना है |जहाँ तक रेलवे की घड़ी की बात है तो स्टेशन मास्टर के कमरे और प्लेटफोर्म को घड़ियों में पाँच मिनट तक का अंतर मिल सकता है |और फिर ट्रेन यहीं से बन कर चलती है |यदि ड्राइवर या टीटी की बीवी ने टिफिन पैक करने में देर कर दी हो तो उसी अनुपात में ट्रेन भी लेट हो सकती है |
हमने कहा- तू, तेरी सरकार और तेरी ट्रेनों के बारे में कुछ जानना-समझना आसान थोड़े है |और एक जापान है जहाँ की ट्रेनें अपनी समय की पाबन्दी के लिए दुनिया में प्रसिद्ध हैं |अभी एक ट्रेन २५ सेकण्ड पहले चल पड़ी तो रेलवे वालों ने माफ़ी माँगी |
बोला- ये सब नाटक हैं |इतना समय भी कोई समय होता है |इतने समय में तो पानी की बोतल नहीं भरी जा सकती |इतनी देर में तो आदमी ढंग से गुटका तक नहीं थूक पाता |क्या, कोई २५-२५ सेकण्ड का हिसाब रखा जाता है ? इससे सौ गुना देर तो ड्राइवर सीट साफ़ करने में, नीबू-मिर्च का टोटका टाँगने, अगरबत्ती और बीड़ी सुलगाने में तथा सामने रखे देवी-देवताओं से आशीर्वाद लेने में लगा देता है |
और रेलवे को तो माफ़ी माँगनी ही नहीं चाहिए थी |अरे, जिसे जाना है उसे तो आधा घंटे पहले आकर सीट रोक लेनी चाहिए |इतनी गड़बड़ तो शिकायत करने वाले की घड़ी में भी हो सकती है |
हमने कहा- क्षमा करना बन्धु, हमें पता नहीं था कि तुझसे ट्रेन का टाइम जान सकना उतना ही कठिन है जितना कि आयकर विभाग से रिफंड लेना | जो करना है हम खुद तय कर लेंगे |
बोला-ट्रेन यहीं से बनकर चलती है |अच्छा हो शाम का खाना खाकर ट्रेन में जाकर ही सो जा |फिर मंत्रालय वाले और ट्रेन वाले जानें | जब उनकी मर्ज़ी हो चलें | वहीँ सुबह उठकर स्नान, मंजन, शंका समाधान कर लेना और चाय पी लेना |
हमने कहा- तोताराम, यह रिस्क नहीं ले सकते |ट्रेन के टाइम की तरह सरकार ने ट्रेन में सफाई और शौचालय में पानी होने की गारंटी भी कहाँ दे रखी है ? कहीं सुबह-सुबह जल्दी में चले गए, निबट लिए और शौचालय में पानी नहीं हुआ तो ?
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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