Jul 2, 2018

इमरजेंसी और यूजीसी



इमरजेंसी और यूजीसी 

अभी बरामदे में जाने ही वाले थे कि एक मरियल और फटी-सी आवाज़ सुनाई दी- इमरजेंसी मुर्दाबाद, इंदिरा गाँधी मुर्दाबाद |

हमें बड़ा अजीब लगा |मरने के बाद तो कोर्ट भी केस बंद कर देता है | मरने वाले को स्वर्गीय कहने लग जाते हैं भले ही उसके कर्म कुम्भीपाक नर्क में डाले जाने योग्य रहे हों |लोग किसी की शव यात्रा को देखकर श्रद्धांजलि स्वरूप नमस्कार  करते हैं |और आज यह कौन है जो ३४ वर्ष पहले आतंकवादियों द्वारा मार दी गई देश की लोकप्रिय प्रधान मंत्री के बारे में आज मुर्दाबाद के नारे लगा रहा है ? करुणा, अहिंसा और क्षमा वाले आध्यात्मिक देश भारत में कौन है जो इस प्रकार शत्रुता और ईर्ष्या की आग में जल रहा है ? 

देखा तो तोताराम |

हमने पूछा- यह क्या तमाशा है ? इंदिरा जी ने तेरा क्या बिगाड़ा है ?

बोला- लोकतंत्र का गला घोंट दिया |संविधान की हत्या कर दी |मैं उसे कैसे माफ़ कर सकता हूँ |

हमने पूछा- नेताओं को जेल में डाल दिया |नसबंदी में ज्यादतियाँ हुईं; उसका दंड जनता ने उनकी पार्टी ही नहीं खुद उन्हें हरा कर दे तो दिया | उनके गलत काम का उचित दंड दे दिया |जब आलोचना करने वाले, लोकतंत्र के तथाकथित रखवाले दाल के लिए जूतम-पैजार करने लगे तो जनता ने फिर इंदिरा जी को चुन लिया |जनता ने सजा दी और जनता ने माफ़ कर दिया |अब उस पर फैसला देने वाला तू कौन होता है ?

बोला- मैं एक स्वतंत्र देश का नागरिक हूँ |अपनी बात कहने का मुझे हक़ है |

हमने पूछा- यह बता नेताओं को जेल में डालने के अतिरिक्त सामान्य आदमी को क्या कष्ट हुआ ? क्या किसी ने किसी को गौतस्करी और गौमांस के शक में मार डाला ? क्या सरे राह किसी दूसरे धर्म या नीची जाति के दूल्हे के हाथ पैर इसलिए तोड़ दिए गए कि उसने हरिजन होकर घोड़ी पर बैठने की जुर्रत की ? क्या कोई हजारों करोड़ लेकर भाग गया या संदेहास्पद रूप से कोई रात भर में करोड़पति बन गया ?  

बोला- इंदिरा ने जो चाहा अपनी मर्जी से कर लिया |जनता को विश्वास में लेना चाहिए था |जब खुद ही सब कुछ करना है तो लोकतंत्र का क्या मतलब ?

हमने कहा- लेकिन क्या दो साल पहले नोटबंदी तुझसे पूछकर की गई थी ? क्या बात-बिना बात किसी भी तरह का कोई भी सेस लगाकर पैसा खसोटकर उससे अपना प्रचार करने और छवि चमकाने का कार्यक्रम चुनाव अभियान में  बताया था ? तू इमरजेंसी के नाम से इंदिरा को ख़ारिज करना चाहता है लेकिन जब जनता ने उन्हें क्षमा कर दिया तो तू फतवा जारी करने वाला कौन होता है ? १९७७ में लोगों ने इंदिरा जी द्वारा गड़वाया हुआ काल पात्र इस शक में निकलवाया कि इंदिरा ने ज़रूर उसमें अपना और अपने परिवार का यशगान किया होगा |और मजे की बात कि उसमें इंदिरा का नाम ही नहीं था |और आज तुम जैसे लोग चमचों से खुद को राम और विष्णु प्रचारित करवा रहे हैं | 

बोला- भाई साहब , कुछ भी हो |हमारा तो 'साफ नियत और सही विकास' का फंडा है |चाहते तो यू जी सी को चुपचाप बदल देते और उसकी जगह कोई भी वैदिक या महाभारतकालीन विज्ञान और पद्धति लागू कर देते |लेकिन नहीं |  सच्चे लोकतांत्रिक लोग हैं तभी तो समाचार छपवाया है कि प्रबुद्ध लोग यू जी सी के स्थान पर, बेहतर शिक्षा और व्यवस्था के लिए प्रस्तावित नई संस्था के बारे में सरकार को ७ जुलाई तक अपने सुझाव भेजें | 

हमने कहा- तो दे ही दे सुझाव |नहीं हो तो दिल्ली चला जा जावडेकर जी को सुझाव देने के लिए |एक तरफ का किराया हम दे देंगे |आते समय यह भी पूछ आना कि अढाई वर्ष तरसाने के बाद जिस पे कमीशन का आदेश निकाला है, वह २०१९ के चुनाव परिणाम से पहले मिल जाएगा या कोई दूसरी सरकार  देगी |















 

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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