Jul 29, 2018

गले मिलने के भेद और भाव

गले मिलने के भेद और भाव 

तोताराम ने आते ही कहा- कुछ भी हो मास्टर, तुझे मानना पड़ेगा कि मोदी जी ने अपनी विविधता, गतिशीलता, रोमांचकता और काव्यात्मक भाषणों के बल पर मात्र चार साल में ही विश्व राजनीति में जो मुकाम हासिल किया है वह कोई और भारतीय हासिल नहीं कर सका |जैसे गाँधी जी सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आन्दोलन, नेहरू जी पंचशील और गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के लिए दुनिया में जाने जाते हैं वैसे मोदी जी देश में गाँधी जी के सत्याग्रह की तर्ज़ पर स्वच्छाग्रह के कारण और विदेश में 'आ गले लग जा' जैसी डिप्लोमेसी' के साहसिक कार्यान्वयन के लिए जाने जाने लगे हैं |हालाँकि हमने बहुत बार मनमोहन जी को बुश और ओबामा से गले मिलते देखा है | उससे पहले नेहरू जी को भी कई विश्व नेताओं से गले मिलते देखा है लेकिन मोदी ने इस कला को जिस ऊँचाई पर पहुँचा दिया है उसकी बात ही कुछ और है | देश में तो न वे किसी को गले लगाने लायक समझते और न ही किसी नेता में आगे बढ़कर उनके गले लगने या उनको गले लगाने का साहस है |कभी उनके आराध्य रहे आडवानी जी तक सामना होने पर दूर से हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं | 

कल अविश्वास प्रस्ताव पर अपने भाषण के बाद राहुल गाँधी ने अनपेक्षित रूप से मोदी जी के गले लगकर सबको चौंका दिया |मोदी जी भी अचकचा गए |तत्काल तो उन्हें कुछ समझ में नहीं आया कि क्या करें ? बालक ने बड़े साहस का काम किया |यदि उन्हें ज़रा सा भी अंदाजा होता तो शायद वे राहुल को दूर से ही ''ठीक है, ठीक है' कहकर निबटा देते |अब मोदी जी को समझ में आ गया होगा कि नाटकीयता देखकर और लोग भी धीरे-धीरे नाटकीय हो जाते हैं |अब भविष्य में मोदी जी बहुत सावधान रहेंगे | जब लोग उनके साथ फोटो खिंचवाकर ही बीस हजार करोड़ की चपत लगाकर विदेश भाग जाते हैं तो गले लगते हुए फोटो खिंचवाकर तो पता नहीं लोग क्या कुछ कर गुजरेंगे |सावधानी हटी और दुर्घटना घटी |

हमने कहा- बन्धु, अब और भूमिका नहीं |तत्काल अपना मंतव्य स्पष्ट करो कि तुम इस प्रकरण को निचोड़कर क्या निकालना चाहते हो ? सुब्रमण्यम स्वामी ने तो अपने संतत्त्व और दिव्य दृष्टि के बल पर इसमें विषैली सुई खोज निकाली है |बंदा बड़ा जीनियस है लेकिन है खुराफाती |

बोला- स्वामी जी की बात छोड़ |उन्हें तो अपने से भला और अपने से बुद्धिमान इस दुनिया में कोई नज़र आता नहीं  |हो सकता है कल को यह आरोप लगा दे कि राहुल ने गले मिलते समय मोदी जी का फोन मार लिया | उनके इन्हीं लक्षणों के कारण मोदी जी उन्हें अपनी केबिनेट में घुसने नहीं देते |पता नहीं,कब-क्या कलाकारी दिखा दे |आदरणीय भ्राताश्री, मैं तो वर्तमान भारतीय राजनीति के इस रोमांचक क्षण में गले लगने, गले लगाने, गले मिलने, गले मिलवाने, गले पड़ने आदि विभिन्न भेदों, भावों और भेदभावों के बारे में कुछ जानना चाहता हूँ |मुझे लाभान्वित करें |

हमने कहा- बन्धु, इस गलने लगने-लगाने या भेंटने या बाँहों में भर लेने के शास्त्र में सबसे पहले तो गले से संबंधित दोनों पक्षों के बारे में जान लो |जब किसी अज़ीज़ या आयुष्मन के मन में अपने आदरणीय का स्नेह प्राप्त करने का भाव आता है तो वह उनके गले लगता है |जैसे हनुमान के मन में राम के प्रति या भरत के मन में राम के प्रति |राम इसे समझते हैं और हनुमान को गले से लगाते हैं -

लाय सजीवन लखन जियाये |
श्री रघुवीर हरसि उर लाए ||

जब भरत राम से मिलने वन में पहुँचते है तो वे राम को देखते ही भाव विह्वल होकर भूमि पर गिर पड़ते हैं और उधर राम भी अपना ईश्वरतत्व बिसार कर दौड़ पड़ते हैं-

उठे राम सुनी प्रेम अधीरा |
कहुं पट कहुं निषंग धनु तीरा ||

दो समवयस्क मित्र बहुत समय बाद मिलते हैं तो दोनों ही इतने भाव-विह्वल हो जाते हैं कि सब औपचारिकताएँ समाप्त हो जाती हैं |मिलते समय चश्मे टूट जाने तक का होश नहीं रहता | द्वारपाल से सुदामा पांडे का नाम सुनकर-
द्वारिका के नाथ हाथ जोरि धाय गहे पांय 
भेटे भरि अंक लपटाय दुःख साने को |

कुछ धृतराष्ट्र जैसे कपट वात्सल्य दिखाने वाले की भुजाओं में लोहे का भीम दिया जाता है या अफ़ज़ल खान जैसे सुलह का दम भरने वालों से बघनखा पहनकर मिला जाता है |

कुछ सच्चे मन से अपने आप ही गिले शिकवे दूर करने के लिए मिलते हैं |मन का मेल धोने के लिए मिलते है |वही सच्चा मिलना है | 

बोला- भाई साहब,  मनमोहन जी को भी बुश और ओबामा से गले मिलते तो कई बार देखा है लेकिन पता नहीं चला कि वह गले मिलना था या गले पड़ना ?

हमने कहा- भले ही मनमोहन जी बोलते कम थे लेकिन समझते सब थे |और इस बात को बुश और ओबामा दोनों भी समझते थे |इसलिए ज्यादा नाटकबाजी नहीं होती थी लेकिन अब तो इतने वर्षों से कभी गले मिलना, कभी झूला झूलना, कभी चाय पीना-पिलाना और कुछ नहीं तो कहीं चलते प्लेन से जन्म दिन की बधाई देने के बहाने ही टपक पड़ना | 

 हो सकता है अब मोदी जी संसद में भी किसी बुलेट प्रूफ केबिन में बैठें और वहीं से अपना भाषण दें | गले मिलने का सिलसिला ऐसे ही चल निकला तो हो सकता है विदेशी नेता भी भारतीय नेताओं से कहने लगेंगे- भैया, वार्ता कर या नहीं लेकिन यह बात-बात में गले मिलना ठीक नहीं है |किसे पता किसकी जूएँ किसके कान पर रेंगने लग जाएँ |हाथ मिलाकर ही काम चला हो |

बोला- मास्टर, मुझे लगता इन्हीं बातों को सोचकर हमारे पूर्वजों ने हाथ जोड़कर नमस्ते करने का तरीका शुरू किया था |अब यह बात और है कि हाथ नज़दीक से जोड़ें जाएँ या दूर से ही  |

हमने कहा- कुछ भी हो नाटक कम करना चाहिए और दिल बड़ा रखना चाहिए |



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