लोकार्पण का विज्ञापन
हाथ में अखबार लिए तोताराम ने दूर से ही आवाज़ लगाईं- आजा मास्टर, गौरवान्वित हो जाएँ |
हमने कहा- हम शर्मिंदा तो वैसे भी नहीं हैं |फिर भी गौरवान्वित होने की क्या बात है ?
बोला- पता नहीं, स्टेच्यू ऑफ़ लिबर्टी का आज लोकार्पण हो रहा है |तेरे अखबार में विज्ञापन नहीं है क्या ?
हमने कहा- होगा क्यों नहीं ? हर अखबार में होगा |पूरे-पूरे पेज का होगा |अखबारों में विज्ञापन के अलावा और होता ही क्या है ? आजकल काम तो किसी को करना नहीं है |किसी के पास काला धन है जिसे विज्ञापन में खर्च करके और कमाने की जुगत है तो कोई करदाता के पैसे को अपनी इमेज बनाने के लिए फूँक रहा है | जिसे देखो टिकट जुगाड़ने के लिए बात बिना बात अखबारों में पूरे-पूरे पेज के विज्ञापन दे रहा है |हर लफंगा सेवा के लिए मरा जा रहा है |वैसे सरदार पटेल की प्रतिमा के लोकार्पण के इस विज्ञापन में कई गलतियाँ हैं |
बोला- तू हिंदी का मास्टर है |भाषा और वर्तनी की गलतियाँ निकालने के अलावा तुझे और आता क्या है ? फिर भी बता क्या गलत है ?
हमने कहा-एक-एक लाइन देख, लिखा है-
स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी
विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा
१८२ मीटर
का लोकार्पण |
लगता है अभी १८२ मीटर का ही लोकार्पण किया जा रहा है, कुछ शेष है जिसका लोकार्पण फिर कभी होगा |
क्या ऐसे नहीं हो सकता था-
१८२ मीटर ऊँची विश्व की सर्वोच्च प्रतिमा का लोकार्पण |
आगे देख- लिखा है- उनका योगदान विस्मरणीय है |होना चाहिए स्मरणीय है |
आगे है-
पिरोने वाले शख्सियत
होना चाहिए- पिरोने वाली शख्सियत |शख्सियत स्त्रीलिंग है |
इससे आगे भी एक पंक्ति है-
प्रतिमा का लोकार्पण कर राष्ट्र को समर्पित करेंगे |
क्या लोक और राष्ट्र अलग-अलग है ? हमारे ख्याल से लोक में राष्ट्र ही क्या, समस्त संसार आ जाता है |वेंटेड करने से क्या कुछ ज्यादा भूतकाल हो जाता है ? क्या इतना ही पर्याप्त नहीं होता-
प्रतिमा का लोकार्पण करेंगे |
नाराज़ होते हुए तोताराम ने कहा- और कुछ ?
हमने कहा- हाँ |
बोला- वह भी बता दे |
हमने कहा- लिखा है- ५५० से अधिक रियासतों का एकीकरण कर एक संगठित भारत.....|
यदि ठीक संख्या का पता नहीं था तो '५५० से अधिक' भी नहीं लिखते |यह हजारों-लाखों लिखने की तरह अनुमान का मामला नहीं है |लिखना था तो सही संख्या ५६३ लिखते |पहले बीबीसी वाले अपने समाचारों में बताया करते थे- अमुक हादसे में कम से कम एक व्यक्ति मारा गया |हो सकता है उनकी गिनती में कोई आधा भी मर सकता है |इसी तरह ५५० से अधिक तो कितने भी हो सकते हैं |खैर |
अब तो तोताराम चिढ़ गया, बोला- और भी कुछ रहा गया हो तो वह भी बता दे |फिर मैं चलूँ |गलती हो गई जो तुझ से चर्चा कर बैठा |सारे गर्व का कचरा कर दिया |
हमने कहा- अब जो है वह वर्तनी और भाषा का नहीं, व्यंजना का मामला है |
बोला- वह भी बता दे |
हमने कहा- कृतज्ञ राष्ट्र आज एक महान शख्सियत को उन्हीं के विशाल व्यक्तित्त्व जैसी विशालकाय प्रतिमा का लोकार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है |
अब तक तो किसी व्यक्ति के व्यक्तित्त्व की विशालता का मूल्यांकन उसके कामों के प्रभाव क्षेत्र और कालावधि के अनुसार होता था |प्रतिमा के आकार-प्रकार से व्यक्तित्त्व का क्या संबंध है ? क्या जिनकी कोई प्रतिमा नहीं है उनका कोई प्रभाव ही नहीं है ? राम-कृष्ण के प्रभाव को देखते हुए तो उनकी दो-चार किलोमीटर ऊँची प्रतिमाएँ कहीं खुदाई में मिलनी चाहिए थीं | क्या देश को संगठित करके मगध साम्राज्य की स्थापना करने वाले चाणक्य की कोई प्रतिमा है ? अगर सीने के नाप के अनुसार प्रतिमा बननी चाहिए तो गाँधी की प्रतिमा कैसी होगी ?क्या जब शिवाजी की सरदार पटेल की मूर्ति से भी बड़ी मूर्ति बन जाएगी तो सरदार पटेल का महत्त्व कम हो जाएगा ? यदि किसी के पास हजारों करोड़ रुपए हों और वह अपने बाप की ५००० मीटर ऊँची प्रतिमा बनवा दे तो क्या उसके बाप का व्यक्तित्त्व सबसे विशाल हो जाएगा ?
वैसे व्यक्तित्त्व के साथ 'विराट' अधिक अच्छा लगता है |
खैर छोड़, तुझे ये बातें समझ नहीं आएँगीं |अभी तो दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिमा वाले देश का नागरिक होने के उपलक्ष्य में चाय की जगह कॉफ़ी पी और साथ में तेरी भाभी से पकौड़े भी बनवा देते हैं |
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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