नेहरू की प्रतिमा
ग़ालिब ने कहा है-
हुई मुद्दत के ग़ालिब मर गया पर याद आता है
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता
हम भी सोचते रहते हैं कि 'यूँ' होता तो क्या होता ? जब 'यूँ' हुआ तो सवाल उठता है- 'त्यूँ' हुआ होता तो क्या होता ? अगर 'त्यूँ' हुआ होता तो भी वही सवाल उठता- 'यूँ' होता तो क्या होता ? मतलब किसी करवट चैन नहीं |
जैसे ही तोताराम आया, हमने उसे अपना कष्ट बताते हुए कहा- तोताराम, हम १९६१ में अध्यापक बन गए थे |१९६२ में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया |तत्काल सेना में वृद्धि की आवश्यकता महसूस हुई और खूब भर्तियाँ हुईं |इंटर पास थे, रोजगार कार्यालय में नाम दर्ज था |सीधा इंटरव्यू लेटर आ गया कि नायब सूबेदार के साक्षात्कार के लिए आइए |हमें चश्मा लगता था ? मेडिकल में फेल होना ही था इसलिए नहीं गए |आज सोचते हैं, चले गए होते तो क्या पता थल सेनाध्यक्ष बन गए होते |और फिर वी.के. सिंह जी की तरह राजनीति में भी ले लिए जाते तो आज मंत्री होते |
बोला- तू कई वर्षों तक दिल्ली में रहा लेकिन स्कूटर के अभाव में कनाट प्लेस के आसपास स्थित अखबारों और पत्रिकाओं के दफ्तरों के चक्कर नहीं लगा सका |यदि चार लाइनें लेकर कनाट प्लेस के चक्कर लगा लिए होते तो क्या पता, ज्ञानपीठ नहीं तो, अकादमी अवार्ड ही मिल गया होता |तू कॉलेज में यूनियन का महासचिव था |यदि कुछ अतिरिक्त उछल-कूद करता तो छात्र नेता से होते हुए जेतली जी की तरह आज वित्त मंत्री बन गया होता |वे बी.कॉम. हैं तो तेरे भी हाईस्कूल में कॉमर्स था |लेकिन अब 'यूँ' होता तो क्या होता, करने से क्या फायदा ?
हमने कहा- अब हम संन्यास की उम्र में हैं |चुनाव लड़ने के लिए पैसे नहीं और जीत सकें ऐसा आपराधिक रिकार्ड नहीं |फिर भी यदि कोई हमें जेतली जी और मनमोहन सिंह जी की तरह वाया राज्य सभा उपकृत करना चाहे तो मोदी जी का 'निर्देशक मंडल सिद्धांत' आड़े आ जाता है |वैसे २०१९ के लोकसभा चुनावों में राष्ट्रहित में मोदी जी इस नियम में ढील दे सकते है | लेकिन अडवानी जी की तरह निर्देशक मंडल में बैठकर कुढ़ना हम ठीक नहीं समझते | अब हमने ग़ालिब की तरह यह 'यूँ होता तो क्या होता....' का चक्कर छोड़ दिया है |
बोला- इस जाल में पड़कर छूटना असंभव है | 'यूँ' होता वाली यह बीमारी है बहुत खराब |खुजली की तरह न आदमी मरता है , न चैन से सो पाता है |बस, इस-उस दवाई के नाम पर डाक्टरों को फीस देता रहता है | मरीज कान खुजाने जैसी आदत की तरह इसे ढोता रहता ही | आपकी यह आदत यदि सामान्य आदमी हुए तो कुलक्षण और बड़े आदमी हुए तो विशिष्टता बन जाती है | लेकिन तू इससे उबरा कैसे ?
हमने कहा- हमने यह 'यूँ' होता वाला महान काम मोदी जी को सौंप दिया है |अब वे सोचते रहते हैं और जनता के सामने यह 'यूँ' होता तो...रखते रहते हैं- जैसे पटेल देश के प्रधान मंत्री हुए होते तो.... ?
तोताराम ने कहा- अब कल्पना कर यदि पटेल प्रधान मंत्री बन गए होते तो ? तो मोदी जी नेहरू परिवार को देश की सभी समस्याओं के लिए किसे दोषी ठहराते ? यदि पटेल प्रधान मंत्री बन गए होते तो वे भी कांग्रेस के ही होते | उस समय कांग्रेस के नेताओं के अतिरिक्त कोई समूह या पार्टी थी ही नहीं मंच पर तो किसी और दल के व्यक्ति के प्रधान मंत्री बनने का प्रश्न ही नहीं था |चूँकि रास्ते का काँटा कांग्रेस ही है तो उस स्थिति में कांग्रेस को नीचा दिखाने का काम नेहरू के नाम से किया जाता जो आज पटेल के नाम से लिया जा रहा है |उस स्थिति में नेहरू जी की प्रतिमा बनाई जाती और कहा जाता- यदि पटेल की जगह नेहरू जी देश के प्रधानमंत्री बने होते तो......|
अपने पास जब कोई है ही नहीं कांग्रेस के सामने खड़ा करने के लिए तो फिर कांग्रेस के मुकाबले खड़ा करने के लिए कांग्रेस में से ही किसी को चुनना मजबूरी है |इसीलिए इंदिरा के सामने शास्त्री जी को खड़ा किया जाता है लेकिन जब मुगलसराय का नाम बदलने की बात आती है तो लाल बहादुर शास्त्री याद नहीं आते |
हमने कहा- इस खिच-खिच से तो अच्छा होता कि मोदी जी ही भारत के प्रधान मंत्री बन गए होते | न कोई समस्या होती और विकास के मामले में भारत दुनिया में नंबर वन होता |
बोला- क्या किया जाए |उस समय वे पैदा ही नहीं हुए थे | खैर, कोई बात नहीं |जिस स्पीड से मोदी जी चल रहे हैं उस हिसाब से २०२४ तक सब कवर कर लेंगे |
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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