Jun 17, 2019

दाल रायसीना उर्फ़ खून-पसीना



 दाल रायसीना उर्फ़ खून-पसीना 

तोताराम कल नहीं आया | आज आया तो उसके हाथ में एक छोटी डोलची जैसा कोई बर्तन था | वैसे तो आम दिनों में तोताराम हमेशा तू-तड़ाक से बात करता है जैसे कि चुनाव प्रचार में नेता लोग लेकिन तोताराम की तू-तड़ाक में नेताओं वाली द्वेषपूर्ण कुटिलता नहीं होती | शुद्ध प्रेमपूर्ण अनौपचारिकता | जब वह राष्ट्रीय लहजे में देववाणी में बोलने लगता है तो हम सतर्क हो जाते हैं |

बोला-  परमआदरणीय भ्राता श्री, कल न आ पाने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ | हुआ यूं कि हमने गरमी से घबराकर मोदी जी के शपथ-ग्रहण समारोह में जाने का कार्यक्रम निरस्त कर दिया था लेकिन मैंने सोचा- कोई बात नहीं, न जाकर अच्छा ही किया |आज पढ़ा कि कल अपने यहाँ का पारा ५० डिग्री को छू गया था |मर जाते तो कौन बीमा का पैसा मिलना था | ऊपर से पेंशन और आधी हो जाती | लेकिन मन किया कि यह महान दिवस, शालीन ( ! ) लोकतंत्र की यह उपलब्धि ऐसे ही सूखी तो नहीं जानी चाहिए | सो पिछले दो दिन से आपके लिए 'दाल खून पसीना' बना रहा था |  

कुछ भी कहो, दाल बननी तो बढ़िया ही चाहिए |दो दिन, तवे पर कुकर रखे-रखे बनी है |आधा सिलेंडर गैस खर्च हो गई |अन्य सब सामान अलग से |

हमने कहा- तोताराम, हम शोषक नहीं हैं, जनता के पैसे से ऐश करने वाले नेता भी नहीं हैं | हम खुद अपने खून-पसीने की खाने वाले हैं | हम तेरी यह 'खून-पसीना दाल' नहीं खा सकते |

बोला- भाई साहब वास्तव में तो यह दाल 'शपथ ग्रहण समारोह' में पधारे मेहमानों के लिए बनी 'दाल रायसीना' की तरह से ही बनाई गई काली दाल है जिसमें मक्खन डाला गया है |'खून-पसीना दाल' तो इसलिए कहा है कि यह ईमानदारी के पैसे से बनी है |'दाल रायसीना' की तरह जनता के टेक्स के पैसे पर दंड नहीं पेले हैं |

हमने कहा- रायसीना में तो वायसराय सीना तानकर बैठते थे |यहाँ कौन वायसराय बैठा है ? सीना तानना तो दूर, गर्दन झुकाकर भी बुढ़ापा कट जाए तो गनीमत है |

बोला- आपने 'कह जोशीकविराय' के नाम से हजारों कुण्डलिया छंद लिखे हैं  तो हम किस वायसराय के कम हैं ? और हमें सीना तानने से कौन रोक सकता है ? हम किसी नेता के बल पर जनता को अकड़ दिखाने वाले गुंडे नहीं हैं | हम अपनी खून-पसीने की कमाई की खाने वाले स्वाभिमानी, पेंशनयाफ्ता, राष्ट्रनिर्माता हैं | 
  
हमने दाल चखी और स्पष्ट उत्तर दिया- बड़ा अज़ीब-सा स्वाद और गंध भी अजीब | लगता दाल बूस गई है |

बोला- इस पचास डिग्री में यह तो दाल है आदमी बूस जाए |उत्साह-उत्साह में भूल ही गया कि अपना घर वातानुकूलित नहीं है | ये शाही व्यंजन तो उन बड़े लोगों को ही शोभा देते हैं जिनके यहाँ सब कुछ नियंत्रित हैं |जिन्होंने पूरे देश से सभी मौसमों को खारिज कर दिया है | खा सके तो खाले |घर का पैसा लगा है |यदि तुझे लगता है कि फ़ूड पोइजनिंग हो जाएगी तो रहने दे |दो पैसे बचाने के चक्कर में दो सौ रुपए का जूता खाने से क्या फायदा ?





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