Oct 31, 2019

वज़न बराबर नहीं है



वज़न बराबर नहीं है 

राम तो खीर खाकर, थोड़ा विश्राम करने के बाद वास्तविक जनकल्याण के लिए निकल गए |उनका जन कल्याण कोई सेल्फी और विज्ञापन वाला जन कल्याण तो है नहीं जो मीडिया वालों को घर बुलाकर निबटा दिया जाए |यह तो वास्तविक कल्याण का काम है जो महलों को छोड़कर वनवास में गए बिना नहीं होता |तोताराम भी अपने जन्म लग्नानुसार वृश्चिक लग्न में लक्ष्मी पूजन करने के लिए निकल लिया |हम भी खाना खाकर, लक्ष्मी जी को हाथ जोड़कर, डबल पेंशन लेने के लिए शतायु होने का आशीर्वाद माँगते हुए यथासमय सो गए |

सुबह दिवाली की राम-राम करने के लिए सबसे पहले तोताराम ही आया |आते ही बोला- मास्टर, एक दोहा सुन |

दोहा इस प्रकार था-  
होंगे जगमग दीप असंख्य, लौटेंगे घर राम |
स्वागत करने पहुँचेगा जगत अयोध्या  धाम ||


दोहा सुनाकर खुद ही वाह-वाह करने लगा |

हमने पूछा- यह किस कवि की करतूत है ? कहीं यह 'दोहा-संहार' तूने ही तो नहीं किया है ? 

बोला- क्यों क्या बात है ?



हमने कहा- यह दोहा नहीं है |और है तो अशुद्ध | इसके पहले चरण  'होंगे जगमग दीप' के आधार पर लगता है, रचनाकार का इरादा 'सोरठा' लिखने का है | दूसरे चरण  'लौटेंगे घर राम' से दोहा लगता है | तीसरा चरण 'स्वागत करने पहुँचेगा'  न सोरठा का  और न ही दोहे का |पहले और दूसरे चरण में मिलकर २६ मात्राएँ हैं | इसी तरह तीसरे और चौथे चरण को मिलाकर भी एक मात्रा अधिक है | 

बोला- भाजपा का उदार शासन है |किसी बात की कोई कमी तो नहीं रखी |भगवान राम के स्वागत के लिए खुले दिल और खुले हाथ से बजट का प्रावधान किया गया है |११३ करोड़ रुपए | दोहे की २४-२४ मात्राओं की जगह २६-२५ मात्राएँ अर्थात कुल तीन मात्राएँ अधिक ही तो रखी हैं |अब कोई गबन का आरोप नहीं लगा सकता |

हमने कहा- लेकिन तूने हिसाब लगाते समय पहले चरण में 'असंख्य' शब्द पर ध्यान नहीं दिया |विज्ञापन में दीयों की संख्या साढ़े पाँच लाख बताई गई है |इस गहमा-गहमी में कौन गिनेगा कि कितने कम दीये जलाए गए |और 'असंख्य' में तो और बड़ा घपला है |पाँच ट्रिलियन भी बताए सकते हैं |

बोला- तो क्या करें ?
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हमने कहा- कर तो कोई भी कुछ नहीं सकता |बन्दों को स्पष्ट बहुमत मिला है जो न करें सो कम |और फिर धर्म का मामला है; कोई बोले तो मरा, न बोले तो मरा |गाय भले ही सड़क पर आवारा फिरते-फिरते पोलीथिन खाकर मरे या गौशाला में भूखी रहकर लेकिन आवारा गायों और सांडों की समस्या पर कोई तार्किक बात नहीं कर सकता | 

हम तो दोहे की मात्रा और वज़न ठीक कर सकते हैं |विद्वान कहते हैं- अशुद्ध मन्त्र बोलने से हित की जगह अहित हो सकता है |और कुछ नहीं तो गलत दोहे से होने वाले अहित से तो देश को बचा लिया जाए |तो शुद्ध दोहा इस प्रकार हो सकता है-



लौटेंगे  वनवास  से  लक्ष्मण  सीता    राम |
स्वागत करने के लिए चलो अयोध्या धाम ||

तोताराम ने खड़े होकर ताली बजाते हुए कहा- कुछ भी हो मास्टर, इस थोड़े से परिवर्तन से दोहे में पूर्णता, प्रवाह, सरलता और भावाकुलता आ गई है |
अब इस 'स्टेंडिंग ओवेशन' के लिए चाय तो हो जाए |





















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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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