राम धुन
आज बापू के जन्म को १५० वर्ष हो गए हैं |कोई ४० वर्ष पहले बापू के प्रिय भजन 'रघुपति राघव राजा राम' की पैरोडी लिखी थी |बाद में लगने लगा कि यह पैरोडी नहीं बल्कि आज बापू के दर्शन के जो हालात हैं यह उनकी सही तस्वीर है |बाद में यह १९९५ में दैनिक हिंदुस्तान में छपी तो कई पाठकों की आस्था को ठेस लगी फिर भी उस समय आस्था इतनी नाज़ुक और ठेस इतनी कठोर नहीं हुआ करती थी कि कवि की कपालक्रिया कर दी जाए |
बाद में १९९८ में बापू की हत्या की अर्द्ध शती के अवसर पर छपे व्यंग्य- कुंडलिया के दूसरे संकलन के शीर्षक गीत के रूप में इसी कविता को रखा |आज तो जिस तरह गाँधी का, उनके अनुयायियों ही नहीं बल्कि अब तक विरोधी रहे लोगों ने, जो कचूमर निकाल दिया है, कचरा कर दिया है उसे देखते हुए तो लगता है इस कविता को किसी कृतघ्न और आडम्बरी देश का राष्ट्रगान होना चाहिए |
खैर, कविता का आनन्द लें-
रामधुन
दिन में बापू का गुणगान
और शाम को मदिरापान
ऊपर खादी का कुरता है
अन्दर सिंथेटिक बनियान |
सारे बापू की संतान
किसको सन्मति दे भगवान |
रघुपति राघव राजा राम ||
यहाँ-वहाँ से कर्जा लाएँ
सारा माल स्वयं खा जाएं
नहीं सुरक्षित इन हाथों में
भारत माता का सम्मान |
रघुपति राघव राजा राम |
लम्पट, लोभी भाषण झाडें
ज्ञानी, सज्जन जायँ लताड़े
दुबली होती जाती जनता
मोटे राजा औ' दीवान |
रघुपति राघव राजा राम |
बाहर से व्यापारी आएं
सभी देश को नोचें खाएं
अगर यही है उन्नति तो फिर
पतन किसे कहते श्रीमान |
रघुपति राघव राजा राम
श्रम, अनुशासन, पढ़ना-लिखना
इनसे किसको लेना-देना
मुल्क मनोरंजन में डूबा
नारा हो गया 'काम-हराम' |
रघुपति राघव राजा राम |
बाद में १९९८ में बापू की हत्या की अर्द्ध शती के अवसर पर छपे व्यंग्य- कुंडलिया के दूसरे संकलन के शीर्षक गीत के रूप में इसी कविता को रखा |आज तो जिस तरह गाँधी का, उनके अनुयायियों ही नहीं बल्कि अब तक विरोधी रहे लोगों ने, जो कचूमर निकाल दिया है, कचरा कर दिया है उसे देखते हुए तो लगता है इस कविता को किसी कृतघ्न और आडम्बरी देश का राष्ट्रगान होना चाहिए |
खैर, कविता का आनन्द लें-
रामधुन
दिन में बापू का गुणगान
और शाम को मदिरापान
ऊपर खादी का कुरता है
अन्दर सिंथेटिक बनियान |
सारे बापू की संतान
किसको सन्मति दे भगवान |
रघुपति राघव राजा राम ||
यहाँ-वहाँ से कर्जा लाएँ
सारा माल स्वयं खा जाएं
नहीं सुरक्षित इन हाथों में
भारत माता का सम्मान |
रघुपति राघव राजा राम |
लम्पट, लोभी भाषण झाडें
ज्ञानी, सज्जन जायँ लताड़े
दुबली होती जाती जनता
मोटे राजा औ' दीवान |
रघुपति राघव राजा राम |
बाहर से व्यापारी आएं
सभी देश को नोचें खाएं
अगर यही है उन्नति तो फिर
पतन किसे कहते श्रीमान |
रघुपति राघव राजा राम
श्रम, अनुशासन, पढ़ना-लिखना
इनसे किसको लेना-देना
मुल्क मनोरंजन में डूबा
नारा हो गया 'काम-हराम' |
रघुपति राघव राजा राम |
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
No comments:
Post a Comment