Oct 25, 2019

चमचागीरी के खतरे



चमचागीरी के खतरे 

शास्त्रों में कहा गया है- शंका और ईर्ष्या दोनों ही बहुत कष्टकारक होती हैं। कोई खतरा न होते हुए भी व्यक्ति को डराती रहती है। यदि किसी को शंका या आशंका हो जाए कि पता नहीं, छत से लटकता पंखा कब गिर पड़े तो क्या वह व्यक्ति सो सकता है? चोर तो कोई एक-दो होते हैं लेकिन यदि आप सबकी ईमानदारी पर शंका करने लगें तो रेल में बर्थ रिजर्व होने पर भी नींद नहीं आ सकती। इसी तरह यदि आप दूसरों से ईर्ष्या करते हैं तो जिससे ईर्ष्या करते हैं वह तो आराम से सोता है और आप रात भर कुढ़ते रहते हैं।  
य ईर्षुः परवित्तेषु रूपे वीर्ये कुलान्वये। सुखसौभाग्यसत्कारे तस्य व्याधिरनन्तकः।।
 -जो व्यक्ति दूसरों की धन-सम्पति, सौंदर्य, पराक्रम, उच्च कुल, सुख, सौभाग्य और सम्मान से ईर्ष्या व द्वेष करता है वह असाध्य रोगी है। उसका यह रोग कभी ठीक नहीं होता। नौकरी में हमारे साथ यही हुआ। बहुत से ऐसे साथी थे जिनके विषयों की बोर्ड की परीक्षा नहीं होती थी और उनका क्या पाठ्यक्रम होता था वे ही जानें। ऐसे में उन्हें न तो रिजल्ट की चिंता रहती थी और न ही टेस्ट और कापियां जांचने का झंझट। अन्य कामों के लिए पर्याप्त शक्ति और समय उनके पास होता था जैसे चुगली, षड्यंत्र,  झूठे मेडिकल टीए, डीए के बिल बनाना, प्राचार्य की खुशामद करना आदि। हमें उन विषयों के अध्यापकों से भी बहुत ईर्ष्या होती थी जिनके विषयों में प्रैक्टिकल परीक्षाएं होती थीं। 
उन अध्यापकों के पास प्रैक्टिकल में कम नंबर देने या अधिक नंबर देने के नकारात्मक और सकारात्मक दोनों प्रकार के हथियार होते थे। इसी कारण से उनकी क्लास में बच्चे चुप बैठे रहते थे। हमें तो मेहनत से पढ़ाने का ही सहारा था। सारा रिजल्ट हमारी और बच्चों की मेहनत तथा बोर्ड की परीक्षा पर निर्भर रहता था। चमचागीरी करके हरामखोरी करने का सौभाग्य कभी नहीं मिला। ज़िन्दगी भर अध्यापक ही रहे इसलिए कभी भी पढ़ने और क्लास लेने से मुक्ति नहीं मिली। इस कारण हम प्रिंसिपलों से भी ईर्ष्या करते रहे। कुछ समय के लिए नंबर दो अर्थात उप प्राचार्य बने लेकिन तब भी चैन नहीं मिला। कारण किसी का बुरा या भला करने का अधिकार तो प्राचार्य के पास रहा तो इस झूठे पद से कौन डरे।
कहा भी गया है- बसे बुराई जासु तन, ताही को सनमान। भलो भलो कहि छांडिये, खोटे ग्रह जप दान। सो  ‘न ख़ुदा ही मिला, न बिसाले सनम, न इधर के रहे न उधर के रहे’। इसी व्यर्थता-बोध में कुढ़ते हुए बरामदे में बैठे थे। पता ही नहीं चला कब तोताराम आया। अच्छा हुआ, यदि तोताराम की जगह कोई दुर्वासा होता तो शकुंतला की तरह हमें श्राप दे गया होता। खैर। 
बोला क्या वित्तमंत्री की तरह जीडीपी को लेकर चिंतित हो रहा है?
हमने कहा वित्त मंत्री को कोई समस्या नहीं है। उनकी सुख-सुविधाओं और रुतबे पर कोई आंच नहीं आने वाली। कोई सरकार का चहेता अधिकारी हजार-दो हजार करोड़ इधर-उधर कर भी देगा क्या हुआ रिज़र्व बैंक से लेकर भरपाई कर देंगे। मरना तो उनका है जिनका पैसा पंजाब-महाराष्ट्र बैंक में था। हम तो इस जीवन की व्यर्थता के बारे में सोच रहे थे कि न तो चमचागीरी करके हरामखोरी का मज़ा लिया और न ही किसी से मक्खन लगवाने सुख भोगा। 
बोला अच्छा रहा जो इस कीचड़ में नहीं उतरना पड़ा। सबको दूसरे की थाली में घी अधिक दिखाई देता है। जो घर नहीं देखा वही भला।
हमने कहा हो सकता है चमचागीरी करने में लोग मज़ाक उड़ाएं या कुछ शर्म महसूस हो लेकिन चमचागीरी करवाने में तो वैसा ही आनंद आता होगा जैसे भयंकर ठंड में हीटर लगे कमरे में सुआना बाथ लिया जाए या गुदगुदे हाथों से हलके-हलके सारे शरीर की अच्छी तरह से मसाज करवाई जाए। बोला-गुप्त जी की पंक्तियां याद कर, कहते हैं सखि, पतंग भी जलता है हा! दीपक भी जलता है दोनों ही स्थितियों में कष्ट हैं, बस प्रकार का अंतर होता है। कब्र का हाल मुर्दे को ही पता होता है। आज देखा नहीं, एक जनसभा में एक चमचे से हरियाणा के मुख्यमंत्री कट्टर जी ने ….|
हमने तोताराम को वाक्य पूरा करने से पहले ही पकड़ लिया और कहा– कट्टर नहीं खट्टर। 
बोला हां, ठीक है; खट्टर ।  वे अपने विचारों पर दृढ़ रहने वाले हैं इसलिए कट्टर भी चल सकता है। हाँ, तो मैं कह रहा था कि खट्टर जी को ‘आशीर्वाद यात्रा’ के दौरान एक भक्त ने फरसा भेंट किया। खट्टर जी जोश में आ गए और दहाड़े-  दुश्मनों का नाश करने के लिए…। 
हमने कहा यह तो ‘आशीर्वाद यात्रा’ थी इसमें यह क्रोध क्यों? बोला- बात से भटका मत और सुन। जब खट्टर जी भाषण दे रहे थे तो एक और भक्त जो उनके लिए मुकुट लाया था पीछे से उनको पहनाने लगा।


Image result for जन आशीर्वाद फरसा खट्टर
खट्टर जी को बड़ा अजीब लगा और अनिष्ट की आशंका भी हुई। उन्होंने उस भक्त की तरफ फरसा तानते हुए कहा-  गर्दन काट दूंगा तेरी। अब बता। कम खतरा है, चमचागीरी में? बाल ब्रह्मचारी, ऊपर से मुख्यमंत्री। एक ही झटके में गर्दन धड़ से अलग ना हो जाती। धरा रहा जाता चुनाव का टिकट। 
हमने कहा- लेकिन चमचागीरी करवाने में क्या खतरा है? बोला- खतरा क्यों नहीं है। तूने राजा का किस्सा नहीं सुना जिसकी नाक पर बैठने वाली मक्खी से उसका सेवक इतना क्रोधित हो गया कि मक्खी को भगाने के लिए तलवार चला दी। मक्खी कहाँ तलवार से मरने वाली थी। हां, राजा जी की नाक ज़रूर साफ़ हो गई। इसी तरह एक बार एक सेवक बड़े मंत्री जी के सिर पर छाया करता हुआ छाता लेकर उनके साथ चल रहा था। मंत्री जी ऊंचे लम्बे और सेवक ठिगना। सो लग गई आँख में छाते ही तानी। हो गया एक बल्ब फ्यूज़। आज तक मंत्री जी धूप का चश्मा लगाते हैं।


पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

No comments:

Post a Comment