Oct 21, 2019

यह नोबेल भी कोई नोबेल है

यह नोबेल भी कोई नोबेल है 


पीयूष गोयल जी
नमस्ते। वैसे सच तो यह है कि आपके जन्म के समय हमें अध्यापक बने हुए तीन वर्ष हो चुके थे। उम्र में हमारे दोनों बड़े बेटे आपसे बड़े हैं। हमारे शिष्य दादा-नाना बन चुके हैं। लेकिन उम्र का क्या है? बड़ा होता है पद और पद में आप देश के 130 करोड़ लोगों से बड़े हैं।
आप देश की व्यापारिक राजधानी मुंबई में जन्मे-पले-बढ़े-पढ़े, चार्टड अकाउंटेंट हैं, देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई. से जुड़े रहे हैं, एक बार बजट भी पेश कर चुके हैं, अब रेल और वाणिज्य के मंत्री हैं, जाति से वैश्य हैं, आपके पिता वेदप्रकाश जी अटल जी की सरकार में शिपिंग मंत्री थे जो सेठों के इलाके हरियाणा से मुंबई गए थे। अब अर्थशास्त्र की कौन सी डिग्री बाकी रह गई। आपके सामने कौटिल्य, ऐडम्स, माल्थस भी क्या चीज हैं ?
इसी महीने भारत के अमरीका में मास्टरी कर रहे, मास्टर माता-पिता की संतान अभिजीत बनर्जी को अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार मिला है। उसकी आर्थिक विचारधारा के बारे में आपने टिप्पणी की है लेकिन उसके बारे में आगे बात करेंगे।
पहले संतोष जी के कॉमेंट के बारे में दो शब्द कहते चलें।
पहले इसलिए कि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक के संगठन मंत्री हैं जो पूरे भारत में एक ही पद होता है। बीजेपी में तो सत्ता के गणित के हिसाब से कुलदीप सेंगर जैसे संत भी घूमते-फिरते आते-जाते रहते हैं लेकिन संघ-परिवार एक शुद्ध-सात्त्विक, अपना और असली संगठन है। उसके संगठन मंत्री होने के कारण वे अति विशिष्ट हैं। फिर अभिजीत के बारे में उनका कॉमेंट भी आपसे पहले आया है। जहां तक संतोष जी के अर्थशास्त्र की बात है तो हमें उसके बारे में कुछ पता नहीं है। फिर भी यदि ऐसी कुछ योग्यता होती तो उन्हें कहीं का वित्तमंत्री या पार्टी का कोषाध्यक्ष बनाया गया होता। खैर।
संतोष जी वास्तव में संतोषी हैं, यथा नाम तथा गुण। तभी उनका कॉमेंट देखिए, कहते हैं- ‘हरियाणा और महाराष्ट्र में मतदान की तारीखें नजदीक आते ही फिर से ‘इको सिस्टम’ काम पर लग गया है। मनमोहन सिंह 19 अक्टूबर को प्रेस को संबोधित करेंगे, अभिजीत बनर्जी ने भी साक्षात्कार देने शुरू कर दिए हैं, इतने वर्षों बाद अचानक पराकला प्रभाकर भी बाहर निकले हैं। पांच दिन की प्रसिद्धि के लिए इन सभी का स्वागत करें।’
इसमें जो बातें ध्यान देने योग्य हैं वे हैं- ये सब चुनाव को ध्यान में रखकर सक्रिय हुए हैं। इनका देश और अर्थव्यवस्था से कोई लेना-देना नहीं है। और जब ऐसा है तो इनकी अर्थशास्त्र की समझ को कैसे मान्यता दें। यह प्रभाकर वैसे तो देश की वित्तमंत्री का पति है लेकिन जब ऐसी बात करेगा तो फिर कोई भी हो। और फिर इसका जो सरनेम है वह  ‘परकला’ नहीं ‘परकाला’ (आफत का परकाला) होना चाहिए। कोई बात नहीं मना लें चार दिन खुशियां, दे लें इधर-उधर इंटरव्यू फिर कौन पूछता है।  क्या कोई सामान्य आदमी तो दूर, नेता भी बता सकता है कि अब तक दुनिया में कितनों को अर्थशास्त्र का नोबेल मिल चुका है ? याद रखने लायक कोई काम भी तो हो। जिन्होंने देश के बड़े हित के लिए बलिदान दिया उन्हें लोग हमेशा याद रखेंगे। जैसे गांधी को भले ही कोई याद करे या नहीं लेकिन गोडसे को कोई कैसे भूल सकता है? जब तक सूरज चांद रहेगा ….|
तो संतोष जी से यहीं संतोष करते हुए फिर आपसे मुखातिब।
राजस्थान-हरियाणा वाले जो कोलकाता-मुंबई में जाकर बसे हैं वे जानते हैं व्यापार और अर्थशास्त्र। बंगाल को  लें। क्या है बंगाल में। दिन में एक बार दाल-भात बना लेंगे और दिन भर उसी को खाते रहेंगे। शेष समय में चाय, पान, सिगरेट और बक-बक जिसे वे बौद्धिकता कहते हैं। कहने को तीन-तीन नोबेल दिए- दो अर्थशास्त्र के (अमर्त्य सेन, अभिजीत बनर्जी)  और एक साहित्य का (रवीन्द्रनाथ ठाकुर) को। अर्थशास्त्र का एक और नोबेल उसी इलाके के एक बांग्लादेशी मुसलमान को मिला। इसके अतिरिक्त कुछ दक्षिण भारत मूल के लोगों को नोबेल मिला लेकिन क्या बंगाल और दक्षिण भारत ने एक भी बिरला, पोद्दार, बांगड़, बजाज, अदानी, अम्बानी दिया ? क्या देश के हृदय स्थल बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात की तरह देश को अवतारी नेता दिए ?
अपने राजस्थान-हरियाणा के व्यापारियों के बारे में कहा जाता है कि वे लोटा-डोरी लेकर निकले थे और देश के अनेक भागों में जाकर करोड़पति बन गए।  इसे कहते हैं अर्थशास्त्र।  यदि अर्थशास्त्र का नोबेल भारत से किसी को देना था तो उक्त राज्यों के अर्थशास्त्रियों की ओर कोई ध्यान क्यों नहीं दिया गया?
और फिर आजकल पुरस्कारों की औकात सब जानते हैं। पैसा दो और पुरस्कार लो। और मान भी लें कि इन दो बंगालियों को इनकी योग्यता के बल पर यह पुरस्कार मिला तो फिर इस देश की जनता ने इनके अर्थशास्त्र को नकार क्यों दिया? इस बनर्जी से पूछकर कांग्रेस ने अपनी ‘न्याय’ योजना बनाई लेकिन क्या हुआ उस योजना का? जब कांग्रेस उस योजना के बल पर जीत नहीं सकी तो बनर्जी का अर्थशास्त्र फेल।

नार्वे सरकार को बनर्जी से यह पुरस्कार वापिस ले लेना चाहिए। और धोखाधड़ी के आरोप में सीबीआई से जांच भी करवानी चाहिए। ऐसे लोगों के पुरस्कार के पीछे हो सकता है कांग्रेस या पाकिस्तान का कोई षड्यंत्र हो जिन्होंने नार्वे की सरकार से मिलकर बनर्जी को पुरस्कार दिलवा दिया हो।  इस बनर्जी को आपने वामपंथी कहा है। थोड़ा और ध्यान से देखिए, हमें तो यह देशद्रोही लगता है।
हो सकता है लोग कहें कि फिर इस बनर्जी को मोदी जी ने और आपने बधाई क्यों दी? अब इतना असभ्य भी तो नहीं हुआ जा सकता कि किसी भारतीय मूल के व्यक्ति को नोबेल मिले और बधाई भी न दी जाए।
क्या करें अपने भारत मूल का है इसलिए बधाई तो दुनिया को दिखाने के लिए देनी ही पड़ती है।

वैसे इससे अधिक निहाल तो यह देश गुल पनाग के बेटे निहाल द्वारा मोदी जी का फोटो पहचानने पर हो गया था।  बनर्जी को दी गई बधाई भी कोई बधाई है। बकौल अमिताभ- यह जीना भी कोई जीना है लल्लू।


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