Nov 11, 2020

तो यह था मामला !


तो यह था मामला ! 


२००४ में जब प्रणव दा से पत्रकारों ने पूछा कि उन्हें प्रधानमंत्री क्यों नहीं बनाया गया ? तो उनका उत्तर था- शायद इसलिए कि उन्हें हिंदी ठीक से नहीं आती |

अब यह तो कोई कारण नहीं हुआ |ट्रंप तो 'विवेकानंद' शब्द तक का सही उच्चारण नहीं कर सका लेकिन किसने उसे रोक लिया अमरीका का राष्ट्रपति बनने से ? हमें बढ़िया हिंदी आती है लेकिन किसी ने सरपंच भी नहीं बनाया |आदमी मन को समझाने के लिए या अपनी झेंप मिटाने के लिए ऐसे ही बहाने ढूँढ़ लेता है और उनके सहारे मन को समझा लेता है |लेकिन क्या वास्तव में मन समझता है ? यदि मन वास्तव में ही समझ जाता तो आदमी उसकी चर्चा ही नहीं करता |जब चर्चा करता है तो इसका मतलब है कि कसक बाकी है |

क्या अडवानी जी केवल इसी बहाने से संतुष्ट हो चुके हैं कि उन्हें केवल ७५ वर्ष से अधिक की आयु होने के कारण प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया ?फिर वह गाना किस लिए है-

ना उम्र की सीमा हो ना जनम का हो बंधन |

भाग्य, तृष्णा और लम्पटता के लिए उम्र कोई मायने नहीं रखती |क्या मोरारजी देसाई कोई मोदी जी की तरह युवावस्था में प्रधानमंत्री बने थे ? ८१ वर्ष के थे जब १९७७ में प्रधानमंत्री बने थे  |२०१४ में आडवानी जी ८७ वर्ष के थे लेकिन सब तरह से चुस्त-दुरुस्त |हिसाब देखें तो एक टर्म तो रह ही सकते थे |खुदा सलामत रखे, २०२४ तक भी देश सेवा के लिए उपलब्ध रहेंगे | 

लेकिन हमारी सुनता कौन है ? फिर भी हम तोताराम से चाय पर चर्चा करते हुए मंथन तो कर ही सकते हैं |भले ही थूक बिलोने से झाग के सिवा निकले कुछ नहीं | आते ही उसे पकड़ा- बता, यदि प्रणव दा हिंदी जानते होते तो क्या उन्हें प्रधानमंत्री बना दिया जाता ?

बोला- बनाता कौन है ? भाग्य बली होता है |क्या चरणसिंह, चंद्रशेखर, गुजराल और  देवेगौड़ा ने कभी सोचा था ? आडवानी जी ने सोचा भी, चाहा भी और पार्टी को शिखर तक ले जाने का मार्ग प्रशस्त भी किया लेकिन कहा ना, भाग्य बली होता है | बंगाल में तृणमूल में सेंध लगाने के लिए प्रणव दा को 'भारतरत्न' दिया |कोई बात नहीं, कूटनीति सही लेकिन क्या आडवानी जी के लिए यह सम्मान नहीं बनता था ?

हमने कहा- तोताराम, हम भाग्य को नहीं मानते | हमारे हिसाब से केवल भाग्य ही नहीं, कोई न कोई ठोस कारण भी रहा है |

तोताराम ने कहा- जब तुझे पता है तो फिर मुझसे क्यों पूछता है ? अब तू ही बता दे प्रणव के प्रधानमंत्री न बन पाने का कारण | |

हमने कहा- प्रणव दा के बारे में उनकी पत्नी ने अपनी किताब 'इंदिरा गाँधी इन माय आईज' में लिखा है कि प्रणव जी बहुत सादे रहन-सहन वाले व्यक्ति थे |एक बार उन्हें इंदिरा गाँधी ने पूछा था कि उन्होंने तीन दिन से शर्ट क्यों नहीं बदली ?

बोला- मास्टर, सही पकड़े हैं | जो आदमी तीन दिन तक एक ही शर्ट पहनता रहे, जो मंत्री बनने के बावजूद खुद अपना विकास भी न कर सके वह देश का क्या विकास करेगा ? राजा का अपना रुतबा-रुआब होता है |बिना तामझाम के क्या कोई किसी को कुछ समझता है ? नाम ही ऐसा हो कि शहंशाह-ए-हिन्दोस्तान, नूर-ए-फलाँ-फलाँ, जिल्ले शुभानी इत्यादि-इत्यादि ज़लवा अफ़रोज़ हो रहे हैं |लगता है एक नहीं एक साथ कई बड़े-बड़े आदमी आ रहे हैं या फिर दस-दस कारों का काफिला, कमांडो, आगे-पीछे सड़क दो घंटे पहले से खाली तो लगता है कोई विशिष्ट प्राणी आ रहा है |मिलने जाओ तो रास्ते में हजार चेकिंग, पचास प्रोटोकोल |आदमी न हुआ कोई कोरोना बम हो गया |देखा नहीं, जब ओबामा आए थे तो मुम्बई में मणि भवन के गेट पर का नारियल का पेड़ तक कटवा दिया गया था कि कहीं कोई नारियल ही न महामहिम के सिर पर  गिर पड़े |जब बुश आए थे तो सुरक्षा चेकिंग के नाम पर कुत्ते गाँधी जी की समाधि को सूँघ रहे थे |

हमने कहा- तो फिर चल आज पेंशन भी ले आते हैं और दो चार कुरते पायजामे भी ले आते हैं |

बोला- इतने तो एक दिन के लिए ही पूरे नहीं पड़ेंगे |नेता दिन में दस बार कपड़े बदलता है और एक बार पहने कपड़े दुबारा पहनता नहीं |मोदी जी ने क्या कभी कोई ड्रेस रिपीट की है ? रहने दे तेरे बस का नहीं है |यहीं बरामदे में बीस रुपए का  गमछा बाँधे बैठा रह |यदि किस्मत में कुछ होता तो अब तक कुछ न कुछ हो ही गया होता | एक लाख वोटों से हार जाने के बावजूद जेतली जी मोदी जी के मंत्रीमंडल में  प्रमुख विभागों के मंत्री रहे कि नहीं ?

खैर, छोड़ अब यह रामायण और भाभी से चाय के लिए बोल |

 



 

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