Nov 15, 2020

सिर्फ पाँच दीये !


सिर्फ पाँच दीये !

कल रात दिवाली थी. 

आज दिवाली का अगला दिन है. हमारे राजस्थान में यह राम-रमी का दिन होता है.जैसे गुजरात में लोग एक दूसरे को घर-घर जाकर 'साल-मुबारक' कहते हैं वैसे ही हम एक दूसरे को विशेषरूप से बड़ों को, दिवाली की रामा-श्यामा करने निकलते हैं. कोरोना के डर से यह नाटक कम हो गया है. सर्वशक्तिमान भगवान का तो कोई स्वरूप अभी तय हुआ ही नहीं है लेकिन उनके अवतार, बेटे, दूत आदि भी अन्य देवताओं सहित छह महिने से मास्क लगाकर दरवाजा बंद करके बैठे हैं तो सामान्य लोग भी घर से कम ही निकल रहे है. हम भी चाहते हैं कि लोग कम ही आएँ क्योंकि तुलसी ने भी कहा है- 
तुलसी या संसार में भांति-भांति के लोग 
सबसे बचकर चालियो लिए फिरत हैं रोग.  



 जब से यह कोरोना का चक्कर चला है और पता चला है कि इसकी कोई दवा नहीं है तो   रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए बड़ी मुश्किल से दो किलो च्यवनप्राश का एक डिब्बा लाकर रख लिया. उसे देखते अधिक और खाते कम हैं. अप्रैल से लेकर अभी तक आधा भी ख़त्म नहीं हुआ है. कमरे में  ऐसे दुबके रहते हैं जैसे कोई चूहा कि कोई उल्लू इस भरी दोपहरी में हमें लपक लेने के लिए घर के चारों और मंडरा रहा है. 



 

उत्सव कितना भी सादगी से मनाया जाए, कूड़ा-कचरा फैलता ही है. हाँ, धर्म का कूड़ा है तो उसे पवित्र मानने की मज़बूरी है लेकिन नदियों में मूर्तियों के विसर्जन से प्रदूषण और गन्दगी होते तो हैं. सो बच्चे अन्दर सफाई कर रहे हैं और हम बरामदे में चाय पी रहे हैं. तभी तोताराम आ गया.

 बरामदे का मुआयना करता हुआ बोला- बस, बरामदे में एक ही दीया ! इसका मतलब कुल मिलाकर दस-पाँच दीये ही जलाए होंगे ?

हमने कहा- कल हमारी सूरजगढ़ वाली सबसे छोटी चाची गुजर गई. नेताओं की तरह नाटक करें तो कह सकते हैं- देश की अपूरणीय क्षति हो गई लेकिन ऐसा कुछ नहीं है. नब्बे के आसपास थी. दिवाली के दिन गई है सो इस -२४% में जा चुकी जीडीपी के समय में भी सीधी लक्ष्मी के लोक में गई है. बस, सगुन के पाँच दीये जलाए थे. 

वैसे भी हम कोई यदि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थोड़े हैं जो देशी घी के छह लाख छह हजार नौ सौ पैंसठ दीये जलवाकर राजा राम का स्वागत करते. क्या करें इतने अधिकार, मिले ही नहीं. 

बोला- बात अधिकार की नहीं नीयत, भक्ति और उत्साह की होती है. नीयत हो तो आदमी मौके के महत्त्व हो देखते हुए अपनी हैसियत से बाहर जाकर भी करता है. वैसे सबको पता है कि यू पी ही क्या, सारी दुनिया की अर्थव्यवस्था खराब चल रही है. जर्मनी की एक डॉक्टर ने तो पी पी ई किट न मिलने पर निर्वस्त्र होकर फोटो पोस्ट करके अपना विरोध प्रकट किया था. लेकिन राम का अयोध्या-आगमन क्या रोज-रोज होता है ?  अरे साल में एक ही दिन की तो बात है. सुना है अगले साल सात लाख दीये जलवाए जाएँगे.

हमने कहा- इस हिसाब से तो किसी दिन करोड़ों करोड़ों दीये जलाने का मौक़ा भी आएगा. लेकिन इतना देशी घी कहाँ से आएगा ?

बोला- भक्ति में बड़ी शक्ति होती है. कई संतों के भंडारे में चाहे जितने लोग प्रसाद लेने आ जाएं लेकिन उनके चमत्कार के बल पर प्रसाद कभी कम नहीं पड़ता. और फिर रामदेव का योग बल कब काम आएगा. ऐसा आसन बताएँगे जिसे गाय के सामने करने से वह दूध की जगह सीधा घी ही दे देगी. आखिर योग है. और कामधेनु और कल्पवृक्ष क्या कोई झूठ थोड़े हैं ! अपने वेदों का विज्ञान है. 

हमने कहा- तो फिर वेद-ज्ञान, योग-बल और कामधेनु से जिनकी नौकरी चली गई या जिनका धंधा मंदा हो गया है उनके लिए भोजन सामग्री के लाखों-करोड़ों पैकेट और कोरोना का टीका क्यों नहीं निकाल लेते ? 

बोला- हम इतने लालची नहीं हैं. हम पुरुषार्थ में विश्वास करते हैं.

 



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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