Sep 2, 2021

यह भी कोई मुद्दा है ?


यह भी कोई मुद्दा है ? 


तोताराम ने प्रश्न किया- तुझे पता है संसद की एक मिनट की कार्यवाही पर कितना रुपया खर्च होता है ?

हमने कहा- हमने तो चालीस साल नौकरी की और अब बीस साल से पेंशन ले रहे हैं लेकिन आज तक यह पता नहीं चला कि सब कहाँ चला गया. संसद, सांसदों और महाप्रभुओं की मर्ज़ी. बजट उनका, प्रस्ताव उनके, वे ही बिल  पास करने वाले. स्पष्ट बहुमत मिला है जहां चाहें, जितना चाहें खर्च करें. चाहे मूर्ति बनाएं, चाहे सेन्ट्रल विष्ठा. हमें इस बारे में कुछ पता नहीं, तुझे अगर सीतारामन मैडम या वेंकैया जी ने बताया हो तो बात और है क्योंकि एक वित्तमंत्री और दूसरे जी ने संसद की पवित्रता को नष्ट होते देखा है. 

बोला- इसमें किसी के बताने की क्या बात है. सरकार कुछ छुपाती थोड़े ही है. सब कुछ पारदर्शी मामला है. अखबारों में छपता रहता है.  एक मिनट का अढाई लाख रुपया खर्च होता है. लेकिन अबकी बार विपक्ष ने कार्यवाही में बहुत बाधा डाली और जनता का करोड़ों रुपया व्यर्थ हो गया. 

हमने कहा- हमारे हिसाब से तो यह चुनाव और अधिवेशन सब बेकार हैं. जब एक बार बहुमत से सरकार बन गई तो फिर किस बात की बहस. पांच साल जो चाहे करेगी. जनता का भला और विकास किये बिना मानने वाली तो हैं नहीं सरकार. ज्यादा ही मन हो तो ज़ूम पर कर लो संसद का अधिवेशन. बड़े सेवक जी बोल देंगे, शेष सब अपने- अपने घरों में बैठे अपनी अपनी मेज थपथपा लेंगे. इस मामले में हमें तो मोदी जी की पिछली लाइन में बैठने वाले अपने भाभीजी पापड़ वाले अर्जुनराम जी मेघवाल बढ़िया लगते हैं जो नियमित रूप से सही समय पर मेज थपथपा देते हैं.  संसद में बैठकर भी तो देशभक्त सेवक यही करते हैं. न किसी को बोलना और बोलेंगे तो भी सुनेगा कौन ? बिना बात जो छोटा-मोटा मंत्रालय मिला हुआ है वह और छिन सकता है. लाखों किसानों को कहते हैं बात कर लो लेकिन तीन कानून बदलेंगे नहीं. फिर बात करके क्या करना है ? 

बोला- हम देश का विकास करने आये हैं कि ऐरे-गैरे नत्थू खैरुओं की सुनने ?

हमने पूछा- वैसे विपक्ष संसद चलने क्यों नहीं दे रहा ?आखिर वह चाहता क्या है ?

बोला- कहता है, पेगासस ख़रीदा या नहीं ? 

हमने कहा- यह तो बहुत आसान बात है. एक शब्द का मामला है. हाँ या ना. बता दो. 

बोला- सब प्रश्नों के उत्तर हाँ या ना में नहीं हो सकते. 

हमने कहा- फिर भी यदि दाल में काला या दाढ़ी में तिनका या नीयत में खोट नहीं है तो घबराने, बात को टालने और बगलें झांकने की क्या ज़रूरत है? 

बोला- बगलें कौन झांकता है ? हमने तो विपक्ष के कहने पर रक्षा मंत्रालय से पूछा है. उसने एस एस ओ समूह से कोई लेनदेन करने से इनकार किया है.अब औरों से भी पूछ लेंगे. देश में १३५ करोड़ लोग हैं सबसे पूछेंगे, कई कई बार पूछेंगे.  किसी भी तरह इसकी सचाई का पता लगाकर रहेंगे. यदि मनुष्यों से सच का पता नहीं लगेगा तो पशु-पक्षियों, मक्खी-मच्छरों और यहाँ तक कि पेड़-पौधों से भी पूछेंगे. लेकिन सच का पता लगाकर रहेंगे. हम सबकी निजता का सम्मान करते हैं.हम घर में घुसकर मारने वाले हैं. छोड़ेंगे नहीं.

हमने कहा- एक एक से कब तक पूछते रहोगे ? इस प्रकार तो शताब्दियाँ लग जायेंगी. 

बोला- शताब्दियाँ ही क्या सहस्राब्दियाँ लग जाएँ लेकिन हम जल्दबाजी में कोई काम नहीं करेंगे. जल्दी का काम शैतान का होता है. 

हमने कहा- लेकिन जब लोगों के कम्प्यूटर में वाइरस घुसा है, सूचनाएं प्लांट की गई हैं, डाटा की चोरी हुई हैं तो एकदम झूठ तो नहीं है. यह वाइरस झूठ होता तो फ़्रांस और खुद इज़राइल तक क्यों जांच करवा रहे हैं ?

बोला- सच का अभी पता नहीं लगा है और झूठ हम बोल नहीं सकते. ऐसे में क्या ज़वाब दें. अब भारत विश्व गुरु है. तरह-तरह के छोटे-बड़े लोग आते हैं. तरह-तरह की भेंट भी लाते हैं. हो सकता है कोई यह पेगासस भी भेंट देने के लिए लाया हो और किसी के पी ए या दरबान को दे गया हो. या वह पेगासस उसका खुद का ही हो और भूल से यहाँ कहीं छूट गया हो. हम देश के सभी खोया-पाया दफ्तरों से बी पता करवाएंगे. अब वाइरस है, जीव है. निकल कर पता नहीं इधर-उधर कहीं चला गया हो, कहीं घुस गया हो तो सरकार क्या करे. अब कोई आतंकवादी या देशद्रोही तो है नहीं कि कपड़ों से पहचान लें. क्या आजतक कोई बता पाया कि कौन सुखराम जी के घर बोरी में भरकर चार करोड़ के नोट रख गया. क्या कोई बता पाया कि गोधरा में रेल के डिब्बे कैसे जले, हजारों लोग कैसे मारे गए, चूहों ने कैसे बाँध को खोद डाला, कैसे एक मुर्गी एक दिन में आठ सौ रुपए का दाना खा गई, कैसे दो भैंसें स्कूटर पर बैठकर हरियाणा से पटना चली गईं ? हम तो बिना किसी के लिखित प्रार्थना-पत्र के ही जान लेते हैं कि कौन किस पुरस्कार या शहर का नाम बदलवाना चाहता है ? हमें तो यह भी पता चल जाता है कि कहीं किसी चबूतरे पर बैठे कौन चार लोग चोरी या कोई षड्यंत्र रच रहे हैं.

हमने कहा- फिर भी एक मंत्री ने तो कहा है कि जासूसी ज़रूरी होती है और जासूसी करवाने वाला यह क्यों बताएगा कि वह जासूसी करवा रहा है. सब बता दिया तो वह जासूसी ही क्या हुई. 

बोला- ये उनके अपने विचार हो सकते हैं, सरकार और पार्टी इससे सहमत नहीं है. वैसे हम विश्वगुरु हैं.हमारे वेदों में सब प्रकार का ज्ञात-अज्ञात, गुप्त-प्रकट ज्ञान मौजूद है तो हमें किसी छोटे से देश इज़राइल से ये पेगासस-फेगासस खरीदने की क्या ज़रूरत है. हमारे पास पहले से दिव्य दृष्टि है. हम खुद सभी पेगाससों के बाप हैं. हम तो घर बैठे ही देख लेते हैं कि कौन अपने बाथरूम में बरसाती पहनकर नहाता है. किसके फ्रिज में किस जानवर का मांस रखा है. बिना पायजामा उतरवाए ही बता देते हैं कि हिन्दू है या मुसलमान.


 


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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