Sep 6, 2021

तू कैसा राष्ट्र निर्माता है ?


तू कैसा राष्ट्र निर्माता है ?


इधर हमारी सुबह पाँच बजे की अलार्म बजी और उधर दरवाजा खटखटाने की ध्वनि सुनाई दी. हम दुविधा में थे कि पहले अलार्म को बंद करें या दरवाजा खोलें जैसे भारत सरकार अफगानिस्तान पर नीति-निर्धारण के लिए  मंथन कर रही है कि वहाँ के तालिबान अच्छे तालिबान हैं या बुरे, देशद्रोही है या देशभक्त. उनसे सीधे बात करें या किसी दूसरे देश में गुप्त वार्ता की जाए. वैसे इस समय अफगानिस्तान में वहाँ के देशभक्त और सच्चे धर्म सेवक सुरक्षा की दृष्टि से महिलाओं को फिलहाल घरों में ही बने रहने की सलाह दे रहे हैं तो उसी तर्ज़ पर हमारे यहाँ भी जींस तथा विधर्मियों से संपर्क बढ़ाने, उनसे चूड़ियाँ खरीदने, उनकी दूकान या ठेले, विशेष रूप से 'श्रीनाथ डोसा भण्डार' जैसे नाम वालों से सामान खरीदने से देश-धर्म को खतरा हो सकता है.प्लेन में एक सांस्कृतिक दृष्टि संपन्न मुख्यमंत्री ने फटी जींस पहने महिला पर संस्कारहीन होने को मोहर लगा दी तो बिहार में एक माता-पिता ने जींस पहनने की जिद करने वाली बेटी के चरित्र की पवित्रता की रक्षा के लिए उसकी हत्या ही कर दी. चरित्र की पवित्रता के सामने प्राणों का क्या मोल !

जैसे विकास-व्यस्त और विकास-व्यग्र सरकार नौ-दस महिने से धरना प्रदर्शन के बावजूद किसान-हित (!) में बनाए गए तीनों कानूनों को वापिस नहीं ले रही है, अर्थव्यवस्था को पाँच-दस ट्रिलियन की बनाने के चक्कर में नेहरू युग के 'कलंक चिह्न' सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को किसी को भी औने-पौने दामों में बेचने के लिए कृतसंकल्प है वैसे ही हम पहले तसल्ली से अलार्म बंद करेंगे उसके बाद दरवाजा खोलेंगे, भले ही दरवाजा खटखटाने वाला उसे तोड़ ही क्यों न दे या जनता की चुनी हुई लोकप्रिय सरकार का मुख्यमंत्री-प्रिय अधिकारी किसानों के सिर फोड़ने का जन-हितकारी आदेश को क्यों न दे दे.

हम अलार्म बंद करके दरवाजे पर पहुंचे भी नहीं थे कि एक उसी तरह की कड़क आवाज़ आई जैसी ज़बरदस्ती  प्रभु नाम उच्चारण करवाने वाले भक्तों की होती है- अरे आलसी मास्टर, क्या ऐसे ही राष्ट्र का निर्माण करेगा ? लानत है तेरे 'राष्ट्र-निर्माता' होने पर .

हमने आवाज़ पहचान ली. आखिर ऐसी दबंग, गरजती और दुनिया-दुश्मनों और पड़ोसी आतंकवादियों व बुरे  तालिबानों के दिल दहला देने वाली आवाज़ ३० इंची सीने वाले तोताराम के अतिरिक्त और किसकी हो सकती है !

तोताराम को अन्दर लिया, आँख-मुंह धोकर बरामदे में बैठते हुए तोताराम ने हमारी लानत-मलामत करते हुए कहा- राष्ट्र निर्माण करने के लिए छह घंटे से अधिक सोना वर्जित है. राष्ट्र-निर्माण करने वाले अठारह-अठारह घंटे काम करते हैं. 

हमने कहा- हमारे हिन्दू धर्म में साल में चार महिने देवताओं के सोने का भी विधान है जिससे विकास और निर्माण पीड़ित जनता को कुछ साँस लेने का मौका मिल सके. अति किसी भी बात की बुरी होती है फिर चाहे वह विकास की हो, आत्ममुग्धता की हो, दूसरों का मज़ाक उड़ाने की हो, नाम-परिवर्तन में ही धर्म-रक्षा और गौरव-वृद्धि की हो. फिर हमने राष्ट्र-निर्माण का काम पिछले बीस साल से कम कर दिया है और पिछले सात साल से तो एकदम बंद ही कर दिया है. जब देश में राष्ट्र-निर्माण, विकास और गर्व-वृद्धि करने वाली एक अभूतपूर्व और समर्पित टीम सत्ता में आ गई तो वह सब संभाल लेगी.

बोला- क्यों, क्या देश-हित और निर्माण का ठेका मोदी जी और योगी जी ने ही ले रखा है ?

हमने कहा- हाँ, ले रखा है. वे इतने सक्षम हैं कि उन्हें किसी और की मदद और सलाह की ज़रूरत ही नहीं है.  इतने परफेक्शनिस्ट हैं कि उन्हें किसी और का किया हुआ विकास पसंद भी तो नहीं आता. नेहरू, इंदिरा और राजीव द्वारा किये गए गलत विकास को सुधारने में ही उन्हें कितनी इनर्जी व्यर्थ करनी पड़ रही है. प्लेन ज़मीन पर मकान बनाना अधिक सरल है. पुराने मकान की गिरवाना, सफाई करवाना, मलबा फिंकवाना क्या कोई आसान काम है ? खर्चा और समय दोनों की बर्बादी. ऐसे ही पुराने वस्त्र को उधेड़कर दुबारा किसी के नाप का वस्त्र बनाना बहुत सिर दर्दी का काम है. उधेड़ो, चुन-चुनकर धागे निकालो, धोओ, प्रेस करो. फिर भी लगता है जैसे किसी का जूठा बरतन साफ़ कर रहे हैं.  बस, समझ ले दोनों उत्साही सेवकों की यही सबसे बड़ी समस्या है. वरना अब तक सिलावानिया के बल्ब के विज्ञापन वाले,अंग्रेजों के ज़माने के जेलर असरानी की तरह ये सारे घर के बदल डालते.

बोला- मास्टर, इतना भी कठोर मत बन. जैसा भी बन पड़े मोदी जी का सहयोग कर. आखिर हम अब भी बरामदे में बैठे पेंशन पेल रहे हैं. 

हमने कहा- हमने तो चालीस साल नौकरी की है. उन नेताओं के बारे में सोच जो जितनी बार जनसेवा के लिए चुने गए उतनी ही संख्या में पेंशनें ले रहे हैं, मुफ्त रेल यात्रा, परिवार और खुद के लिए जीवन भर मुफ्त चिकित्सा सुविधा. और भी जाने क्या-क्या. अब हमारे पास तो प्राण बचे हैं सो भी चलने को तैयार बैठे हैं. हम कौन भारत रत्न और राष्ट्रपति पद की प्रतीक्षा में नब्बे पार करके भी भीष्म की तरह शर-शैय्या पर लेटे हैं. 

गैस की सबसीडी अपने आप ही बंद कर दी, पोस्ट ऑफिस की मासिक आय योजना का ब्याज घटा दिया, १८ महिने का डीए का एरियर हजम, भविष्य में कोई पे कमीशन नहीं. अब तो हम जैसे बरामदा-चाय-विमर्श वालों पर यूएपीए लगाना शेष रह गया है.

बोला- तेरी बातों को देखते हुए वह भी असंभव नहीं है. फिर वहां चाय तो दूर फादर स्टेंस की तरह स्ट्रा भी नहीं मिलेगी.




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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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