Sep 25, 2021

खेलशक्ति का डबल इंजन

खेलशक्ति का डबल इंजन


इस दुनिया को विचारकों ने तरह-तरह से परिभाषित किया है, विभिन्न रूपकों और प्रतीकों में बाँधा है. कोई इसे बाज़ार कहता है, कोई सराय, कोई मंडी. सब अपने-अपने हिसाब से आते-जाते हैं, छल-छंद करते हैं, सौदा करते हैं. इनमें बिकने वाली जिन्सें भी अलग-अलग होती हैं. कुछ चलती-फिरती मंडियाँ होती हैं जो होटलों और रिसोर्टों कहीं भी सज जाती हैं जिनमें घोड़ों की खरीद-फरोख्त होती है. जिनमें चतुर लोग महंगे दामों में गधे और खच्चर भी पेल जाते हैं. लोकतंत्र में विश्वास न करने वाले या सेवकों से जलने वाले इन जानवरों को विधायक और सांसद भी कहते हैं.

हमारे घर के पास भी एक मंडी है, कृषि उपज मंडी. इसलिए यहाँ घर-गृहस्थी की ज़रूरतों के सेवा सप्लायरों के साथ-साथ कृषि उत्पादों से संबंधित लोगों की गहमा-गहमी भी रहती है. छाते-कुकर ठीक करने वालों से लेकर बाल खरीदने वाले भी पहुँच जाते हैं. पता नहीं इससे किस के कानों पर रेंगती जुओं का अध्ययन करने का कोई षड्यंत्र है या किसी गंजे को रवीन्द्रनाथ ठाकुर बनाने का. अखबार डालने वालों के साथ-साथ ही उन्हें खरीदने वाले कबाड़ी भी घूमने लगते हैं. शायद उन्हें पता है कि आजकाल के ताली-थाली वाले लोकतंत्र में अखबारों की औकात रह ही कितनी गई है !

सुबह-सुबह कबाड़ियों के साथ-साथ सब्जी के ठेले लगाने वाले भी मंडी से सब्जी खरीदने के लिए अपने खाली ठेले, कट्टे, बाट, तराजू रखे इधर से गुजरते हैं. दोनों के ठेले ही खाली होते हैं इसलिए दोनों में जल्दी से अंतर करना कठिन हो जाता है. ऐसे में, ऐसे ही एक ठेले पर पुराना टीवी रखे ठेले वाले के साथ एक दुबली-पतली आकृति भी जाती दिखाई दी. हमने ध्यान से देखा तो तोताराम.

हमने पूछा- सुबह-सुबह, गुपचुप किधर, तोताराम ? अरे, नहीं दिया मोदी जी ने १८ महिने का ३०-४० हजार का एरियर लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि कबाड़ी का काम करके विकास पर आमादा, अर्थव्यवस्था को ५ ट्रिलियन की बनाने पर अड़ी सरकार को बदनाम करे. वैसे ही ओलम्पिक पदक विजेता खिलाड़ियों का स्वागत-सत्कार करने वाले उत्साही नेताओं को लोग बदनाम करने में लगे हुए हैं. कहते हैं खिलाड़ियों के लिए करते कुछ नहीं. बस, मुफ्त का श्रेय लेने के लिए नाटक कर रहे हैं. 

बोला- मैं कोई नाटक नहीं कर रहा हूँ. मैं कटिहार ( बिहार ) के उस मास्टर की तरह नहीं हूँ जो सड़क पर 'मिड डे मील' के अनाज के फटे बोर दस-दस रुपए में बेचकर सुशासन बाबू को बदनाम कर रहा था. अच्छा हुआ जो उसे नौकरी से हटा दिया. अब वास्तव में ही भीख मांगेगा. मैं तो भारत को कम्प्यूटर पॉवर, आध्यात्मिक पॉवर, योग पॉवर बनाने के बाद अब खेल पॉवर बनाने के लिए काम करना चाहता हूँ. 

हमने कहा- ठेले पर पुराना टीवी रखने से भारत खेल पॉवर कैसे बनेगा ?

बोला- प्रक्रिया बहुत लम्बी है. पता नहीं, तुझे समझ आएगी या नहीं फिर भी बता देता हूँ. यह २५ साल पुराना टीवी है जिसे गोदी मीडिया की तालीवादक भूमिका के कारण देखने की कोई आवश्यकता नहीं रह गई है. वैसे भी सभी प्रकार का कूड़ा-कचरा स्मार्ट फ़ोनों पर उपलब्ध हो ही जाता है. लेकिन जब से सुना है कि नेताओं द्वारा मोदी जी की देखादेखी ओलम्पिक खेल देखकर देश में खेलों का विकास किया जा रहा है, खिलाड़ियों को पदक जीतने में मदद की जा रही है तब से सोच रहा हूँ इसमें तो मैं भी योगदान दे ही सकता हूँ. जैसे हरियाणा के एक मंत्री ने सम्पूर्ण साज-सज्जा के साथ राजनीति के कई अन्य खिलाडियों के साथ, बिना मास्क लगाए, समूह में टीवी पर खेल देखकर 'हो-हो' करते हुए वीडियो बनवाकर नेट पर डाला है  वैसे ही मैं भी टीवी देखूँगा, 'हो-हो' करूंगा और देश को खेलशक्ति बनाऊँगा. 

हमने कहा- तेरी इस देशभक्ति या खेलभक्ति से हमारी जो दुर्दशा हो रही उसकी बराबरी तो आन्दोलन कर रहे किसानों के असमंजस और संसद में जासूसी सोफ्टवेयर 'पेगासस'  पीड़ित विपक्ष के टेंशन से भी नहीं की जा सकती. अरे, खेल और खिलाड़ियों से इतना ही प्रेम है तो नवीन पटनायक की तरह वास्तव में कुछ करो. खिलाड़ियों को भरपेट खाना तो दो, किसी रानी रामपाल को अश्वत्थामा की तरह आटा घोलकर या दूध में पानी की कुंठा का  घालमेल तो न करना पड़े. न दो क्षत्रिय कंगना रानावत की तरह सुरक्षा लेकिन स्टार स्कोरर, दलित, वंदना कटारिया को जातीय गर्व से भरे हुए लफंगे स्वयंसेवकों की गालियों से तो बचाओ. सलीमा टेटे की झोंपड़ी की धज तो देख लो. अप्रैल २०१८ में कहा गया था कि देश के आखिरी गाँव में बिजली पहुँच गई है. सलीमा के घर ही नहीं, गाँव में भी बिजली नहीं है.

बोला- लेकिन वह तो ऑक्सीजन, टीके, कानून-व्यवस्था, सामान्य सुविधाएं आदि की तरह राज्यों का विषय है. 

हमने कहा- बहाना नहीं चलेगा. केंद्र में भी तुम और वंदना के उत्तराखंड में भी तुम. जब डबल इंजन में भी गाड़ी नहीं चल रही तो कब चलेगी ?




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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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