Sep 14, 2021

धन्यवाद जोशी जी


धन्यवाद जोशी जी


जिन्हें देश को विश्व गुरु और अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डॉलर का बनाना है उनकी बात और है. वे तो यदि रात में चार घंटे भी सो लेते हैं तो देश के लिए बड़ी राहत की बात है. हमारे भरोसे अब कोई महान काम नहीं बचा है इसलिए हम तो रात में भी छह-सात घंटे सोते हैं और दोपहर में भी खाना खाने के बाद घंटे-आध घंटे 'आराम फरमा' लेते हैं. होता तो यह भी सोना ही है. बस, ज़रा बड़े लोगों की शब्दावली का छोंक लगा दिया है. 

तो जैसे ही आराम फरमाकर उठे तो हमारी पालतू 'मीठी' ने लघु शंकार्थ बाहर जाने के लिए हमारे कमरे के दरवाजे पर आकर भौंकना शुरू कर दिया. हमारा भारत तो इधर-उधर शंका समाधान के लिए पर्याप्त स्थान उपलब्ध न होने के कारण शौचालय तक सीमित हो गया है लेकिन 'मीठी' के लिए न तो कोई विशिष्ट शौचालय है, न उसका ऐसा कोई प्रशिक्षण हुआ है और न ही हमारे यहाँ 'स्वच्छता सैनिक' इतने सजग हैं कि खुले में शौच करने पर बिहार की तरह किसी की लुंगी उतरवा लें. वे तो खुद इधर-उधर निबट लेते हैं. और तो और पी लेने के बाद तो उन्हें यह भी ध्यान नहीं रहता कि उनका मुँह दीवार की तरफ है या सड़क की तरफ.

जैसे ही 'मीठी' को लेकर निकले तो देखा, तोताराम गले में भगवा दुपट्टे और माथे पर बड़े से तिलक से सुशोभित साक्षात् राष्ट्र हुआ चला आ रहा है. 

हमने कहा- तोताराम, तेरी सुबह की चाय बकाया है. चाहे तो बनवा देंगे. नहीं तो दो मिनट बैठेंगे. कल हमारे साथ एक हादसा हो गया. सुबह तू जल्दी में था इसलिए बता नहीं सके. अब उस बारे में बात करना चाहते हैं. 

बोला- अभी बता दे. घर पर चल कर ही क्या होगा.

हमने कहा- नहीं. बात ही ऐसी है.

घर लौटने पर बोला- अब बता. 

हमने कहा- कल हमें एक लिफाफा मिला. भेजने वाले का कहीं नाम नहीं था. लिफाफा रोळी से चिरचा हुआ था लेकिन टिकट नहीं लगा हुआ था, बैरंग था. हमने सोचा, हो सकता है भेजने वाला टिकट लगाना भूल गया होगा. दस रुपए देकर छुड़ाया. खोलकर देखा तो अन्दर कागज का एक छोटा-सा  टुकड़ा जिस पर लिखा था 'जोशीजी धन्यवाद'. लोग कितने बदमाश हो गए हैं. क्या चाटें इस धन्यवाद का. 

बोला- ठीक है, दस रुपए लगे लेकिन लिफाफा भेजने वाले को तुझसे मिला क्या ? और कुछ नहीं तो उसका लिफाफे का ही एक रुपया तो खर्चा हुआ. तेरे दस रुपए तो पोस्टल डिपार्टमेंट के पास गए. पर इससे तेरी इमेज तो बनी. यदि इसी तरह रोज तेरे यहाँ सौ-दो सौ लिफाफे आने लगें तो जल्दी ही तेरा नाम अखबारों में आने लगेगा. तेरा वीडियो वाइरल होते देर नहीं लगेगी. फिर तू सेलेब्रिटी हो जाएगा.  

हमने कहा- यदि इसी तरह हजारों लिफाफे आने लगे तो मेरी पेंशन ही नहीं, मासिक आय योजना वाला ऍफ़ डी. भी निबट जाएगा.

बोला- भविष्य में ऐसा कोई लिफाफा मत छुड़वाना. तुझे पता है, मोदी जी के सत्तर वर्ष पूरे होने पर तीन सप्ताह तक विविध कार्यक्रम किये जायेंगे. उनमें से एक है मोदी जी के नाम से 'धन्यवाद मोदी जी' के पाँच करोड़ पोस्ट कार्ड लिखना. इससे उनकी छवि में सुधार होगा. 

हमने कहा- उनकी छवि को क्या हुआ है ? पोस्ट ऑफिस, पेट्रोल पम्प, रेलवे स्टेशन, कोरोना के सर्टिफिकेट, अनाज के थैलों सभी जगह वे ही तो हैं. ह सकता है 'मुफ्त अन्न वितरण महोत्सव'  के के अन्न के दानों को सूक्ष्म दर्शक यंत्र से देखने पर उन पर भी मोदी जी का फोटो दिखाई दे. उनकी छवि तो ऐसी वैश्विक हो गई है कि आज अमरीका के राष्ट्रपति का चुनाव लड़ लें तो भी जीत जाएंगे. लेकिन इतनी व्यस्तता में पाँच करोड़ पोस्टकार्ड पढ़ना, उनके उत्तर देना, यदि बैरंग हुए तो डबल चार्ज देना. बहुत मुश्किल काम है. पहले दिन में जो चार घंटे सो लेते हैं पर अब तो वह भी संभव नहीं पाएगा.

बोला- ऐसी बात नहीं है. न तो कुछ पढ़ना है, न कोई उत्तर देना है. पोस्टमैन भी क्या डबल चार्ज मांगेगा. पी.एम. हाउस का पता देखकर जो कुछ भी होगा पटक आएगा वहाँ. और उनका मीडिया सेल उस गिनती को बढ़ा-चढ़ा कर प्रचारित करेगा जिससे उनकी लोकप्रियता और बढ़ेगी. तब वे आसानी से उत्तर प्रदेश का चुनाव जीत जायेंगे.  बंगाल वाला 'खेला' और किसानों का धरना अब तक होश फाख्ता किये हुए है.

हमने कहा- चलो कोई बात नहीं. ये सब राजनीति के नाटक हैं. पर हमें तो उस दुष्ट पर गुस्सा आ रहा है जिसने बिना बात हमें बैरंग लिफाफा भेज कर उल्लू बना दिया. 

तोताराम ने जेब से दस रुपए का नोट निकालते हुआ कहा- माफ़ करना मास्टर, यह शैतानी तो मैंने ही की है.

हमने कहा- लेकिन यह 'धन्यवाद जोशी जी' का नाटक करने की क्या ज़रूरत थी.  मोदी जी ने तो सबको फ्री में  टीका लगवाया, किसी को ऑक्सीजन की कमी से मरने नहीं दिया,अब अस्सी करोड़ लोगों को अपना फोटो छपे थैले में अनाज बंटवा रहे हैं. खिलाडियों का हौसला बढ़ाकर देश को मैडल दिला रहे हैं.  हमने तो कुछ किया नहीं,फिर कैसा धन्यवाद.

बोला- रोज चाय पिलवाता है वह क्या किसी टीके और ऑक्सीजन से कम है ?  

हमने कहा- क्या बताया जाए, आजकल लोगों को अपने कर्मों और नीयत पर विश्वास नहीं रह गया है इसलिए ऐसे नाटक किये जा रहे. 'धन्यवाद' कृतज्ञता का एक सहज भाव है जिसे शब्दों की ज़रूरत नहीं होती. क्या किसी प्याऊ पर पानी पीकर, क्या गरमी में किसी पेड़ के नीचे बैठकर प्रकृति या उस पेड़ को लगाने वाले के बारे में विचार करके या प्याऊ लगवाने वाले के प्रति स्वतः ही धन्यवाद या कृतज्ञता की कोई अनुभूति नहीं होती ? मूक, मौन, जड़-जंगम भी अपनी तृप्ति के लिए स्रष्टा का धन्यवाद सा देते लगते हैं. क्या भोजन से पहले सभी लोग ईश्वर को धन्यवाद देने के लिए पोस्टकार्ड लिखते हैं ? 

लगता है किसी दिन सूरज को उगाने के लिए पार्टी के अनुशासित सिपाही नेता को धन्यवाद के पोस्ट कार्ड लिखने लगें. हो सकता कभी कोई भक्त भगवान को नमस्ते करने पर बाद उससे प्रमाण स्वरूप 'नमस्ते-प्राप्ति' की रसीद माँगने लगे.

ज़माना बहुत बदमाश और आडम्बरी होता जा रहा है.

बोला- कोई बात नहीं, हरियाणा का किसानों का सिर फोड़ने की गर्वपूर्ण घोषणा करने वाला अधिकारी आयुष सिन्हा और उसके आका स्पष्ट रूप से, मन से क्षमा न  मांगें लेकिन मैं तुझे 'धन्यवाद' का लिफाफा भेजने और तुझ पर दस रुपए का जुर्माना लगवाने के लिए 'सॉरी' बोलता हूँ.

हमने- इट्स ओके.



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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