Sep 3, 2021

लोक-परलोक-कल्याण-मार्ग

लोक-परलोक-कल्याण-मार्ग  


आज तोताराम कुछ परिवर्तनकारी-सृजनात्मक मूड में था, बोला- मास्टर, क्यों न अपनी इस गली का नामकरण कर दें, पहचान, परिवर्तन और गौरवानुभूति तीनों एक साथ हो जायेंगे. 

हमने कहा- तेरा नाम शुकदेव रख दिया जाए तो क्या तू शुकदेव जी की तरह संसार-विरक्त हो जाएगा ? क्या तुझे वेदव्यास का अयोनिज पुत्र मान लिया जायेगा ? अपनी गली को किसी नाम की ज़रूरत नहीं है. भले ही अपनी नगर  परिषद् सीकर को सफाई में मेरिट में मानती हो या शिक्षा का धंधा करने वाले सीकर को  'एज्यूकेशन हब' कहते हों लेकिन जो यहाँ के लोग बतियाते हैं वही सच है. और वह सच कटु है.  राजनीति की बात और है. उसमें सत्ताधारी दल का हर चुनावोपयोगी व्यक्ति अमर, स्वर्गीय और यशस्वी होता है. जब तक सूरज चाँद रहता है तब तक उसका नाम रहता है. वह स्वर्गीय कहलाता है. भले ही उसके डर से भले लोग स्वर्ग जाने से भी कतराने लगते हैं. 

तू कुछ भी नाम रख ले लेकिन इस गली की पहचान रहेगी 'कूड़े वाली गली' या 'कीचड़ वाली गली'. जब भी नगर परिषद् वालों को फोन करो तो 'मंडी के पास' बोलते ही कम्प्लेंट वाला पूछता है- क्या, वही कीचड़-कूड़े वाली गली ? वैसे यह बात सदैव याद रखना कि नाम रखने और बदलने का अधिकार इस समय केवल दो ही महापुरुषों के पास है. खैर, फिर भी बता, तू क्या नाम रखना चाहता है ?

बोला- लोक-कल्याण-मार्ग.

हमने कहा- यह नाम वैसे ही निरर्थक है जैसे किसी भिखमंगे का नाम 'किरोड़ीमल' या गली के लेंडी कुत्ते का नाम 'शेरू' रखा दिया जाए. 

बोला- हम में क्या कमी है. हम महान भारत के ब्रह्मज्ञानी, ब्राह्मण कुलोत्पन्न, वयोवृद्ध गुरुजन हैं. दशकों से यहाँ चाय पर ब्रह्मचर्चा करके लोक का कल्याण करते हैं. मेरा 'इस लोक का कल्याण' भी तेरे यहाँ सुबह-सुबह  फ्री की चाय पीकर ही होता है. 

हमने कहा- तू लाख अपने ब्राह्मणत्त्व पर मुग्ध हो ले लेकिन 'लोक कल्याण मार्ग' वही हो सकता है जहां देश-दुनिया का कल्याण करने वाले महान पुरुष रहते हों. और वह इस समय दिल्ली में है जहाँ जन-कल्याण के लिए प्रतिबद्ध विकास-पुरुष रहते हैं. जिसे पहले 'रेस कोर्स रोड़' कहा जाता था. 

बोला-  तो फिर इसका नाम 'परलोक-कल्याण-मार्ग' रख देते हैं. मुझे चाय पिलाने से तेरा कुछ तो परलोक सुधरता होगा. 

हमने कहा- वह भी संभव नहीं क्योंकि वह कल्याण सिंह जी के नाम पर रख दिया गया है- कल्याण सिंह मार्ग.

बोला- लेकिन इस नाम का वह अर्थ तो नहीं निकलता जो तू बता रहा है. जैसे 'स्टेशन मार्ग' का अर्थ क्या होगा ? यही कि इस मार्ग पर चलते जाओ तो स्टेशन पहुँच जाओगे.  'श्मशान मार्ग' पर चलते-चलते कोई कहाँ पहुंचेगा ? इस तरह 'कल्याण सिंह मार्ग' का मतलब यह होगा कि इस मार्ग पर चलते-चलते आप कल्याण सिंह जी के पास पहुँच जाओगे जो इस समय संविधान से ऊपर अपना 'पार्टी-हित' साधन करने के कारण 'रामजी' की बगल में बैठे होंगे. जब यह मार्ग परलोक सुधारने वाले राम के मंदिर अर्थात आवास को जाता है तो इसका नाम होना चाहिए- 'परलोक-कल्याण-मार्ग'. 

हमने कहा- पहुँच गया ना वहीं जहाँ हम बता रहे थे. इसलिए छोड़ लोक-परलोक का चक्कर. लोक और परलोक दोनों सत्ताधीशों के लिए रिज़र्व होते हैं. उन्हीं का इस और उस लोक में कल्याण होता है. हम तो यही कामना करें कि इसी तरह चाय पर महापुरुषों की चर्चा करते हुए, मोह-माया मुक्त होकर शांति और शालीनता से निर्वाण को प्राप्त हो जाएँ और इस नश्वर देह का इज्जत से निबटान हो जाए. 

सुना है कोरोना की तीसरी लहर आने वाली है जिसमें रोज ४-५ लाख लोग संक्रमित होंगे. हालाँकि देश में ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है फिर भी किसे पता, कहीं गंगा में तैरते न मिलें. कुत्ते-कव्वे नोचेंगे तो बहुत बुरा लगेगा.  




पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

No comments:

Post a Comment