Sep 19, 2021

डेविल्स बाइबिल

डेविल्स बाइबिल  


तोताराम नियमानुसार सुबह तो आया ही था लेकिन आज शाम को भी हाज़िर. 

हमने कहा- क्यों बिना बात पीछे पड़ा है ? हम कोई बड़े नेता थोड़े ही हैं जो तुझे किसी राज्य का पार्टी का अध्यक्ष बना देंगे या कहीं का राज्यपाल या विश्वविद्यालय का कुलपति बना देंगे. आज तो ऐसे आ गया जैसे डबल इंजन लग गया हो. यहाँ कौनसा चुनाव हो रहा है जो दिन में दो-दो बार दर्शन-दान.

बोला- क्या मुझे इतना सस्ता समझ रहा है कि कुलपति बनकर दूसरों के यशगान का 'निमित्त मात्र' बनकर उपकुलपतियों को किताबें बेचता रहूं. मुझे कुछ नहीं चाहिए. जिनको कछू न चाहिए सो ही साहंसाह. मैं तो सोच रहा था कि तुझे दो पैसे की आमदनी की करवा दी जाए. भले ही तू रोज सूखी चाय ही पिलाता है.

हमने कहा- जब जवानी में ही ट्यूशन नहीं पढ़ाया तो अब आखिरी वक़्त में क्या ख़ास मुसलमां होंगे. और किसी प्राइवेट स्कूल की प्रिंसिपली भी हमें नहीं करनी. अधिकतर नेता साइड बिजनेस के रूप में स्कूल के धंधे में भी फंसे हुए हैं. काम लेते हैं डबल और पैसा देते हैं आधा. परीक्षा के समय मेरिट लाने के चक्कर में नक़ल करवाने को कहते हैं. हम भी मोदी जी की तरह फकीर हैं. कोई ऐसा-वैसा कहेगा तो हम झोला उठाकर चल देंगे. 

बोला- बिना बात के भाव मत खा. तेरे खूंसटपने से सीकर के सभी स्कूल वाले वाकिफ हैं. तू कवि बना फिरता है. मैं तो तेरे लिए एक 'चालीसा' लिखने का काम लाया था. मेरे एक परिचित के परिचित एम एल ए को एक बड़ी पार्टी ने खरीदने का ऑफर दिया है. वह अपना चालीसा लिखवाना चाहता है. दस हजार नक़द. कल सुबह चाहिए. 

हमने कहा- तुलसीदास जी की कोई पेंशन नहीं थी फिर भी उन्होंने किसी नश्वर मनुष्य का गुणगान नहीं किया. एक बार शायद एक-दो लाइनें लिख दी होंगी तो पश्चाताप करते रहे-

कीन्हें प्राकृत जन गुणगाना

सिर धुनि गिरा लागि पछिताना 

हमसे न होगा. हमें तो भगवान ने पेंशन दे रखी है. मोदी जी की कृपा से अब तो ११% डी. ए. भी रिलीज हो गया.

बोला- और ६०-७० हजार रुपए का एरियर खा गए उसका कोई ज़िक्र नहीं.

हमने कहा- खैर मना जो जुलाई से ही सही डी. ए. दे तो दिया. डी. ए. भी नहीं देते और किसानों की तरह खालिस्तानी कहकर फँसा देते तो तो क्या कर लेता ? फादर स्टेन की तरह देशद्रोह का केस लगवा देते तो अब तक निबट गया होता.

बोला- भाषण मत झाड़.  मुद्दे की बात पर आ. दो सौ आलेख लिखेगा तब कहीं दस हजार रुपए बनेंगे सो भी दो साल में. इसमें क्या है. घंटे दो घंटे का काम है. तुलसीदास जी परफोर्मा बनाकर दे गए हैं बस, कहीं-कहीं नेताजी के माता-पिता का नाम जैसा कुछ भरना है. नहीं करना है तो बता दे. लालू, राबड़ी, अटल, मोदी चालीसा लिखने वाले कई तैयार बैठे हैं . कुछ तो टाइम कम. और फिर सोचा जब सभी अपने वालों को साथ में विदेश ले जाकर तीन गुना महंगा ठेका दिलवाकर लाते हैं तो मैं भी कण भर ही सही, नेपोटिज्म कर लूँ. 

हम भी लालच में आ गए, कहा- नेता का नाम-पता.

बोला- यह अभी गुप्त रखा जाएगा और बाद में भी तू कभी नहीं कहेगा कि यह चालीसा तेरी रचना है. नेताजी इसे दैवीय कहकर प्रचारित करेंगे. नाम की जगह खाली छोड़ देना. चार मात्राओं का नाम है जैसे जोशी या तोता. आ आ,ई, ई 

हमने.कहा- इतनी भी क्या जल्दी है ? जब तेरे नेताजी बड़े नेता बन जायेंगे तभी तो यह चालीसा और उनके मंदिर के नाटक दरकार होंगे. हमारे नीतिकारों ने भी कहा है- जल्दी का काम शैतान का.  सच है हर गलत काम ऐसे ही होता है.

बोला- और ये लोग कौन से संत हैं. ये सब संतों के वेश में शैतान ही हैं. इसलिए इनके सब काम शैतानी ही होते हैं. तूने 'डेविल्स बाइबिल' के बारे में पढ़ा या नहीं ? 

हमने कहा-  बचपन में किसी 'गड़बड़ रामायण' के बारे में तो सुना करते थे. कहते हैं उसके रचनाकार को कोढ़ हो गया था. वैसे आजकल राजनीति में गाँधी-नेहरू के समस्त काल के बारे में गड़बड़ रामायण जैसा ही लेखन तो चल रहा है. सभी धर्म ईश्वर को मानते हैं और सभी मनुष्यों को उसकी संतान मानते हैं फिर भी एक दूसरे के प्रति शैतान की तरह घृणा फैलाने में ही लगे हुए हैं. अब सर्वधर्म समभाव की तरह से नया नारा गढ़ा जा रहा है- 'चादर -फादर मुक्त भारत'.  लेकिन यह 'डेविल्स बाइबिल' अर्थात 'शैतानी बाइबिल' कहाँ से आगई ? 

बोला- स्वीडन के एक पुस्तकालय में चमड़े के १६० पन्नों पर लिखी ८५ किलो वज़नी एक बाइबिल है जिसका नाम है-डेविल्स बाइबिल. कहते हैं १३ वीं शताब्दी में एक ईसाई मठवासी सन्यासी को वहाँ के नियमों को भंग करने के फलस्वरूप दीवार में चुनवाने की सजा दी है. 

संन्यासी ने सजा से बचने के लिए कहा कि यदि उसे एक रात का समय दिया जाए तो वह मानव ज्ञान की एक ऐसी किताब लिख सकता है जो भविष्य में मठ को भी गौरवान्वित करेगी.   

हमने पूछा- तो क्या एक रात में १६० पेजों की मौलिक रचना करके उसे चमड़े पर लिखा भी जा सकता है ?

बोला- नहीं. तभी तो जब उस संन्यासी ने देखा कि वह अकेले पूरी किताब नहीं लिख सकता है तो उसने एक विशेष प्रार्थना की और शैतान को बुलाया. उस शैतान से उसने अपनी आत्मा के बदले किताब को पूरा करवाने के लिए मदद मांगी। शैतान इसके लिए तैयार हो गया और उसने एक रात में ही पूरी किताब लिख दी। 

हमने कहा- अब इसमें एक बात पर ध्यान दे कि शैतान से उस तथाकथित संन्यासी से उसकी आत्मा के बदले किताब लिखने का सौदा किया. मतलब जब कोई अपनी आत्मा बेच देता है तो उसका विवेक भी समाप्त हो जाता है. बिना विवेक के ही ऐसे खुराफाती काम हो सकते हैं.  मज़े की बात देख, भले काम में भले ही कोई साथ दे या न दे लेकिन खुराफात में ज़रूर सबका साथ, सबका विकास हो जाता है. लगता है लोग एक दिन में लाखों शौचालय बनवाने और करोड़ों टीके लगवाने का रिकार्ड इसी तरह बनवाते हों.

हम किसी शैतान से अपनी आत्मा का सौदा नहीं कर सकते. बिना साफ़-सुथरी आत्मा के ऊपर वाले को क्या मुंह दिखाएँगे. 

कोरी चुनरिया आतमा मोरी मैल है माया जाल.  



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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