Dec 23, 2021

अनजान क्रांतिकारी


अनजान क्रांतिकारी  

आज तोताराम ने आते ही बड़ा विचित्र प्रश्न किया- क्या तुझे मोहन भागवत जी, मोदी जी और योगी जी जानते हैं ?

हमने कहा- हम कोई राष्ट्र, धर्म, संस्कृति, वेद, गौ-गंगा और गीता के सेवक थोड़े ही हैं जो ये महान विभूतियाँ हमें जानेंगीं. हम तो एक सामान्य मास्टर हैं जिसे हमारे वार्ड का मेंबर भी नहीं जानता. हमारे कहने पर मोहल्ले के  कूड़ेदान से कूड़ा तक नहीं उठवाता. कहता है संपर्क पोर्टल पर कूड़ेदान का फोटो वाट्सऐप कर दो. अब हम कौनसे उत्तर प्रदेश के 'स्किल डेवलपमेंट' के अंतर्गत रजिस्टर्ड प्रोफेशनल पोस्ट ग्रेज्युएट हैं जिन्हें योगी जी स्मार्ट फोन और टेबलेट का टुकड़ा फेंकेंगे.

बोला- लेकिन तू तो मोदी जी, भागवत जी के जन्म से पहले १९४७ में ही शाखा में गया था.

हमने कहा- गए तो थे और बाद में योगी जी के तो जन्म से पहले १९६० में अठारह साल की उम्र में ही विवाहित होकर मास्टरी करने लगे थे. पर क्या बताएं, सच्चे सेवक या तो शादी नहीं करते, यदि भूल से कर लेते हैं तो राष्ट्र सेवा के लिए महाभिनिष्क्रमण कर जाते हैं. फिर १८-१८ घंटे प्रतिदिन सेवा करते रहे हैं. न खुद सांस लेते है और न ही राष्ट्र को सांस लेने देते हैं. तभी कहते हैं, आग और राजा से निश्चित दूरी बनाकर रखनी चाहिए. क्या पता कब, क्या मूड बन जाए और यूएपीए लगा दें या वैसे ही ठोक दें. लेकिन तू यह इन्क्वायरी क्यों कर रहा है ?

बोला- संघ ने कहा है कि वह उत्तर प्रदेश के हर जिले से अनजान क्रांतिकारियों की खोज करेगा और उनको प्रकाश में लाएगा. उनके बारे में एक पुस्तक भी प्रकाशित करेगा. 

हमने कहा- लेकिन हमारा जन्म तो राजस्थान में हुआ है. 

बोला- लेकिन यह तो सच है कि तुम्हारे पूर्वज टिहरी गढ़वाल से आकर राजस्थान में बसे थे. जब पौड़ी गढ़वाल से आकरअजय सिंह बिष्ट उर्फ़ योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन सकते हैं तो क्या तुझे उत्तर प्रदेश के किसी जिले का क्रांतिकारी नहीं माना जा सकता ?

हमने कहा- लेकिन हमने अंग्रेजों के विरुद्ध ऐसा कौन सा संघर्ष किया था. 

बोला- जिस प्रकार कोई जेब काटने के अपराध में भी जेल गया हुआ था और वहां इमरजेंसी में बंद किसी नेता की थोड़ी सी सेवा कर दी तो उसे भी आज तक पेंशन मिल रही है. इनमें बहुत से तो उस समय पैदा भी नहीं हुए थे. तू भी कह देना कि हम १९४६ में अपने मूलस्थान टिहरी गए हुए थे तब हमने पत्थर फेंका जो एक अंग्रेज को लगते-लगते बचा. हम भागकर घर में छुप गए.

हमने कहा- यह कैसा क्रांतिकारी होना है ? यह तो कायरता है. भगतसिंह और गाँधी आदि ने तो जो किया सो डंके की चोट किया. न छुपे, न माफ़ी मांगी.

बोला- सब चलता है. अब तो अंग्रेजों से माफ़ी माँगने वाले सावरकर को भी वीर और क्रांतिकारी सिद्ध करने के लिए उनके माफ़ी मांगने की घटना को गाँधी जी के मत्थे मंढा जा रहा है. 

हमने कहा- लेकिन इस देश में तो बहुत से क्रांतिकारी हुए हैं. क्या उनसे काम नहीं चल सकता. उन पर ही पुस्तकें छपवा लो. प्रेरणा के लिए क्या इतने क्रांतिकारी कम हैं ? चलो गाँधी से आपकी नहीं पटती, वह चतुर बनिया था. लेकिन भगतसिंह, बिस्मिल, अशफाक, सुभाष, करतार सिंह, राजगुरु, बरकतुल्ला, लाला हरदयाल, बाबा पृथ्वी  सिंह आज़ाद आदि सब तो सरफरोशी की तमन्ना वाले हैं.

बोला- लेकिन ये हमारे अजेंडा में फिट नहीं होते. गाँधी ईश्वर-अल्ला तेरो नाम वाला है. सुभाष के साथ भी बहुत से मुसलमान थे, भगत सिंह नास्तिक और कम्यूनिस्ट. हमारे परिवार में कोई अंग्रेज बहादुर के विरोध में बोला ही नहीं. अब चुनाव आ रहे हैं. इसलिए कुछ अपने वाले उच्च वर्ण के शुद्ध-सनातनी हिन्दू क्रांतिकारी भी तो चाहियें. आज़ादी के अमृत महोत्सव के पोस्टरों से नेहरू को हटाने के बाद किसे रखें.  

हमने कहा- ठीक है तोताराम. हमारी जांघ पर फुंसी का एक बड़ा निशान है. कह देंगे जलियाँवाला बाग़ में हमें यहाँ  गोली लगी थी लेकिन हम यश और पेंशन के भूखे नहीं हैं इसलिए आज तक किसी को बताया तक नहीं. 

  

 


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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