Dec 30, 2021

यह कौनसे इत्र की बदबू है ?

यह कौनसे इत्र की बदबू है ?


कबीर के अनुसार यह जीव संसार रूपी चक्की के दो पाटों के बीच में फंसा हुआ एक दाना है जिसका पिसना तय है. 

चलती चक्की देखकर दिया कबीरा रोय

दो पाटन के बीच में बाकी बचा न कोय 

गेहूँ पिस कर फुल्का, समोसा, परांठा, पूड़ी क्या बनेगा यह इस पर निर्भर करता है कि वह किसके पल्ले पड़ता है. 

हम भी दो पाटों के बीच फंसे हुए हैं. पूर्व में सीकर का कचरे का सबसे ऊंचा ढेर 'कर्कटगिरि' और पश्चिम में कृषि उपज मंडी जिसे उसके लक्षणों के आधार पर तो 'कचरा उपज मंडी' कहा जाना चाहिए. अगर हम योगी जी होते तो अभी नाम बदल देते, कागजी कार्यवाही बाद में पूरी होती रहती. लेकिन क्या करें हम तो अपने पैन कार्ड में अपने नाम की स्पेलिंग भी चालीस साल में ठीक नहीं करवा सके. एक बार गए थे तो बाबू ने कहा-स्पेलिंग से कोई फर्क नहीं पड़ता, आप तो टेक्स समय से देते रहिये. 

आज जैसे ही तोताराम आकर बैठा, बोला- मास्टर, आज तो बड़ी तेज़ बदबू आ रही है. कहीं कोई मरा हुआ जानवर तो नहीं फेंक गया. 

हमने कहा- मंडी का तो पता नहीं, यहाँ से दिखाई नहीं देता लेकिन कर्कटगिरि की तरफ कचरा तो काफी है लेकिन जब हम सवेरे दूध लेने गए थे तो हमें कोई मरा हुआ जानवर तो दिखाई नहीं दिया. हो सकता है इत्र नगरी कन्नौज की तरफ से कोई झोंका आ गया हो. 

बोला- आज तक तो कोई खुशबू या बदबू कन्नौज की तरफ से आई नहीं. आज ही ऐसा क्या हो गया ? 

हमने कहा- चुनाव आ रहे हैं ना. अब तरह-तरह ही बदबुएँ ही फैलेंगी. सबको अपने 'पूज्य'-'पाद' में खुशबू और दूसरे के 'माननीय' में बदबू आएगी. यही तो समय है प्रकारांतर से दोनों पक्षों के सच के उदघाटन का. दोनों जब एक दूसरे को गली दे रहे होते हैं तो एक ही नहीं, दोनों ही सच होते हैं. 

बोला- मतलब ?

हमने कहा- मतलब यह कि एक दूसरे को नंगा करने के चक्कर में दोनों नंगे हो जाते हैं. 

बोला- फिर वही बात. साफ़ साफ़ बता.

हमने कहा- कन्नौज में एक व्यापारी के पास अरबों रुपए का काला धन पकड़ा गया. कहते हैं वह इत्र का व्यापारी है. उसने एक बार 'समाजवादी इत्र' भी लांच किया था. बाद में वह समाजवादी पार्टी के किसी पद पर रहा भी. भाजपा को मौका मिल गया और उसने उस इत्र की बदबू फैलाना शुरू कर दिया. बाद में पता चला यह 'समाजवादी इत्र' वाला कोई और है तथा जिसके पास से अरबों रुपये पकड़े गए वह कोई और हैं. हुआ यह कि दोनों 'जैन', दोनों का नाम 'पी' से शुरू, दोनों एक ही शहर और एक ही मोहल्ले में रहते हैं. अब कहा जा रहा है कि भाजपा ने अति उत्साह में अपनी सभाओं में इस बदबू को खूब फैलाया. अब संकोच में पड़े हुए हैं.

बोला- इसमें संकोच और शरमाने की क्या बात है. राजनीति में सबके कामों, शब्दों और विचारों में बदबू ही बदबू भरी हुई है. जिसे छुपाने के लिए कोई 'समाजवादी इत्र' छिड़कता है तो कोई 'राष्ट्रवादी इत्र'. वैसे भी सामान्य आदमी के शरीर से एक प्रकार की गंध जिसे सुगंध कम और दुर्गन्ध अधिक कहा जा सकता है, आती ही है.  

हमने कहा- इसलिए यह मत पूछ कि यह बदबू किसकी है, कहाँ से आ रही है ?कन्नौज की बदबू से तो भारत का इतिहास आज तक गंधा रहा है.जैचंद कन्नौज का ही तो था. यहाँ के इत्र से महकती संयोगिता ने पृथ्वीराज को जैचंद से पंगा लेने के लिए विवश कर दिया था. वैसे बदबू बदबू ही होती है फिर चाहे वह वार्ड पञ्च की हो या 'प्रधान जी' की. मूली कोई भी खाए डकार सड़ी हुई ही लेगा. 'पाद' पाद ही होता है चाहे किसी 'पूज्य' का या किसी दुश्मन का. 

आज पहला अवसर है जब तोताराम हमसे सहमत सा हो रहा लगता है' कब तक रहेगा यह पता नहीं.

बोला- और क्या ? हमें तो बदबू झेलनी है, चाहे ऊपर से आये या नीचे से. 

और तोताराम ने हमारी पत्नी को आवाज़ लगाई- भाभी, आज चाय में इलायची डबल डालना, आज लोकतंत्र कुछ ज्यादा ही गंध मार रहा है. 

पत्नी ने कहा- लाला, चालाकी और हराम के आराम को जायज ठहराने के लिए इत्र लगाने ही पड़ते है. दल बदल क्या है ? इत्र बदलना ही तो है. मेहनत के पसीने की गंध ही सुगंध होती है और वह हरामखोरों को अच्छी नहीं लगती. पहले एक विज्ञापन आया करता था, याद है कि नहीं ? जिसमें में उस यात्री को विमान से बाहर फेंक दिया जाता था जिसके शरीर से पसीने की गंध आती थी. 

तोताराम ने कहा- क्या बात है भाभी ! मार दिया पापड़ वाले को. मेरे ख़याल से तभी १५ हजार करोड़ रुपए का सेन्ट्रल विष्ठा इसीलिए बनाया जा रहा है और उसे दिल्ली आने वाली सड़कों पर कीलें ठोंक कर सुरक्षित बनाया जा रहा है कि किसान-मजदूर और उनके पसीने की दुर्गन्ध वहाँ तक न पहुँच सके. 

हमने कहा- ठीक भी है, उच्च विचारों के लिए नए नए वस्त्र विभूषित होना, इत्र सुवासित होना, बहु प्रचारित होना बहुत महत्त्व रखता है.

पत्नी बोली- जब व्यक्ति के विचार, वाणी और कर्म प्रदूषित होते हैं तो तन-मन और धन से ऐसी दुर्गन्ध फैलती है कि फिर किसी इत्र से नहीं दबती. तुम दोनों भी कौन-सा कोई कर्म करते हो. यहाँ बैठे-बैठे पंचायत करते रहते हो. नगर परिषद् वालों का क्या इंतज़ार करना, गली का कूड़ा इकठ्ठा करके जला दो तो यहाँ की दुर्गन्ध तो कम हो. 

हमने कहा- तोताराम,याद रखना, पहली तारीख़ को पेंशन लेने चलेंगे तो फावड़े का हत्था ठीक करवा ही लायेंगे.




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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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