Dec 9, 2021

नेचुरल कॉल

 नेचुरल कॉल  


आशा, इच्छा, कामना आदि सब एक ही श्रेणी के विकार हैं. भूख, प्यास, नींद आदि भी अपना दबाव बनाते हैं और मनुष्य को अपने अनुसार संचालित करते हैं लेकिन ये मूल प्रवृत्तियों में आते हैं जो सभी जीवों को व्यापते हैं. इसीलिए इन्हें नेचुरल कॉल कहा जाता है.मनुष्य चूँकि नेचर (प्रकृति) को अपने वश में करना चाहता है इसलिए वह जप-तप, अभ्यास, वरदान आदि के द्वारा बार-बार प्रकृति की सीमाओं से पार जाना चाहता है,जैसे बुढ़ापे,मृत्यु पर नियंत्रण करने की वैज्ञानिक या वैज्ञानिक कोशिशें. 

इसी क्रम में फेंटेसियों, पुराणों, कहानियों में यह इच्छा, कामना पाई जाती है. भीष्म को उनके पिता ने इच्छा-मृत्यु का वरदान दिया था. वही वरदान उनके गले ही हड्डी बन गया अन्यथा मर जाते यथासमय लेकिन नहीं जी, शुभ मुहूर्त का इंतज़ार करते हुए लेटे हैं शर-शय्या पर. हो सकता है अटल जी भी इच्छा-मृत्यु थे इसलिए उन्होंने प्रयत्न करके १५ अगस्त का दिन टाल दिया या कुछ और हुआ हमें पता नहीं. लेकिन १५ अगस्त के उत्सव में एक ऐसा विघ्न पड़ जाता जिसे निगलना और उगलना दोनों  मुश्किल होता.वैसे राजस्थान के कुछ पुराने राजघरानों में तो इसमें कुछ भी परेशान होने की बात नहीं हुआ करती थी. कहते हैं नया राजा मृत राजा के शव पर पैर रखकर सिंहासन पर चढ़ता था. प्रतीकात्मकता में तो यही सच भी है. 

पहले के, मतलब ५०-६० साल पहले के सहज ग्रामीण-कृषि सभ्यता के लोग व्यर्थ की औपचारिकताओं और शिष्टाचारों में नहीं फंसते थे. उनके पास ऐसी सुविधा भी नहीं थी. जैसे ईमानदारी प्रायः क्षमता (अफोर्ड कर सकना) पर निर्भर है अन्यथा मज़बूरी बहुत बुरी होती है. ही कैन अफोर्ड तो बी ऑनेस्ट.

आजकल वैज्ञानिक दृष्टि से विकसित समाज में धनबल से लोग आंशिक रूप से 'इच्छा-मृत्यु' हो सकते हैं लेकिन कुछ ऐसे विकार हैं जिन पर आज भी धनबलियों,  बाहुबलियों और पदबलियों का भी कोई वश नहीं है. हालाँकि उनके उच्चवर्गीय शिष्टाचारों में छींक, पाद, डकार, उबासी, अंगडाई आदि सहज, प्राकृतिक और तृप्तिदायिनी क्रियाएं भी एक अपराध की तरह प्रकट की जाती हैं. इन्हें दबाना, टालना शिष्टाचार सनाझा जाता है, साहबजादों विशेषकर साहबजादियों को इसकी विशेष ट्रेनिंग दी जाती है फिर भी सदैव कामयाबी नहीं मिलती. 

पहले हमारी भाभी, जब नई नई आई थी, अपनी छींक को दबाने के चक्कर में बड़ी अजीब तरह से छींकती थी. बाद में आदत पड़ गई. अब वह अस्सी के पार है, परदादी बन गई लेकिन छींक खुल कर नहीं ले पाती. 

हम कुछ इसी प्रकार की मानवता की बड़ी समस्याओं को लेकर 'आत्म-बौद्धिक' में मग्न थे कि तोताराम ने झकझोरा- कहाँ खोये हो, प्रभु ?

हमने कहा- कुछ नहीं. हम तो खैर, एक तुच्छ और निरीह प्राणी हैं लेकिन आज हम बड़े-बड़ों की मजबूरियों और शर्मिन्दगियों के बारे में सोच रहे थे. 

बोला- तो मेरा भी कुछ ज्ञानवर्द्धन करें, आदरणीय.

हमने कहा- अभी तीन चार दिन पहले ग्लासगो में आयोजित जलवायु पर आधारित एक बहुत बड़े अंतर्राष्ट्रीय      कार्यक्रम  COP26   में भाग लेने के लिए अमरीका के राष्ट्रपति ब्रिटेन गए हुए थे. वहाँ वे शाही परिवार से भी मिले. इस कार्यक्रम में उन्होंने गैस छोड़ दी. 

बोला- क्या भोपाल के गैस कांड जैसा कुछ हो गया ?

हमने कहा- कोई ऐसा बड़ा कांड तो नहीं हुआ, जन धन की हानि भी नहीं हुई लेकिन दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश की भद्द ज़रूर पिट गई. 

बोला- मतलब ?

हमने कहा- मतलब यह कि इस गैर इरादतन किन्तु अशोभनीय कृत्य 'अपान वायु निष्क्रमण' से कोमिला आदि  सभी विशिष्ट लोग शर्म से लाल हो गए. 

बोला- शब्द तो बहुत संस्कृत सम्मत लगता है. इसमें शर्म की क्या बात है ? ये तो गर्व पैदा करने वाली देववाणी के शब्द हैं.

हमने कहा- लेकिन इनका आम भाषा में अर्थ है कि अमरीका के राष्ट्रपति श्री जो बाईडेन ने इतने जोर से पादा कि सभी भद्र लोग शर्म से लाल हो गए. 

बोला- हो सकता है उन्होंने पाद की दुर्गन्ध से बचने के लिए 'कुम्भक' कर लिया हो. ज्यादा देर तक कुम्भक करने से भी मुंह लाल हो जाता है.वैसे क्या भद्र लोग पादते नहीं ? 

हमने कहा- करते तो सब कुछ हैं लेकिन उनके समाज में ये पांच नेचुरल कॉल पञ्च विकार माने जाते हैं. इन्हें सार्वजनिक और सहज रूप से संपन्न नहीं करना चाहिए. जहां तक हो सके दबाना चाहिए. 

बोला- इसका मतलब विज्ञान को अब इस प्रकार की कुछ दवाइयां या व्यायाम ईजाद करने चाहियें कि मनुष्य  इन विकारों को रोक सके मतलब कि इच्छा-मृत्यु की तरह  इच्छा-पाद, इच्छा-डकार, इच्छा-छींक आदि बन सके. मुझे तो पता ही नहीं था मास्टर, कि बड़े लोगों का  जीवन इतना बंधनमय और बनावटी होता है. उनसे तो हम सामान्य लोग ही अच्छे जो ढंग से पाद, डकार और छींक कर संतुष्टि तो प्राप्त कर सकते हैं. 

हमने कहा- हो सकता है विकास के नाम नोटबंदी, घरबंदी की तरह 'पादबंदी' का भी कोई क्रन्तिकारी निर्णय आ जाए.


 





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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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