उपभोक्ता संरक्षण
हमने 2018 में लिबर्टी के बिना फीते वाले कपड़े के काले रंग के जूते खरीदे थे ।
हम वैसे ही घर से बाहर कम निकलते हैं । हम कोई भगवान राम, बुद्ध और मोदी जी तो हैं नहीं जो विश्व कल्याण के लिए घर परिवार को छोड़कर जाने कहाँ कहाँ घूमते रहते हैं । और घर में इतनी भी अशान्ति नहीं है कि कोई न कोई बहाना बनाकर कहीं न कहीं चले जाएँ । इसके बाद कोरोना आ गया तो घर से बाहर निकलने का प्रश्न ही नहीं ।
हाँ, यदि बिहार के प्रवासी मजदूर होते तो मोदी जी की तालाबंदी के कारण न नौकरी रहती, न खाने को रोटी और न मकान मालिक को चुकाने के लिए किराया । तो घर के लिए नंगे पाँव या हवाई चप्पल पहने हर हालत में निकलना ही पड़ता फिर चाहे सड़क किनारे भूखे-प्यासे शहीद हो जाते या थककर रेलवे ट्रेक पर सोते हुए कट कर मर जाते ।
आश्चर्य की बात जब पिछले साल जूतों को संभाला तो देखा तल्लों का अपर से संबंध विच्छेद हो चुका था जैसे एकनाथ का शिवसेना से, नीतीश का राजद गठबंधन से, शुभेन्दु अधिकारी का ममता दीदी से, गौरव वल्लभ का कांग्रेस से । चलिए शुभेन्दु घोटाले में फंसे थे, गौरव वल्लभ की राम-भक्ति-भावना आहत हो रही थी लेकिन इन तल्लों और अपर के संबंधों में क्या नैतिक-अनैतिक या वैचारिक समस्या आ गई जो पड़े-पड़े ही अलग अलग निर्देशक मण्डल में जा बैठे । 75 साल के भी नहीं हुए थे कि जबरदस्ती निर्देशक मण्डल में बैठा दिए जाते ।
जब हमने तोताराम के अपना दुखड़ा रोया तो बोला- कोई किसीको धोखा नहीं देता । सब अपने-अपने स्वार्थ के चलते धोखा खाते हैं। जब कोई अपनी बड़ी नौकरी, समृद्धि के झांसे देकर अनेक युवतियों को फँसाता है तो गलती युवतियों की भी है । वे सोचती हैं बिना दहेज के सस्ते में मोटा बकरा फँसा और बंदा सोचता है कि जितने दिन चले मौज-मजे कर लो । बाद में जब महिला गर्भवती हो जाती है तो शिकायत करती फिरती है कि उसे झांसा दिया गया । झांसा कौन नहीं देता ?
अगर जनता हर खाते में 15 लाख और हर साल दो करोड़ नौकरी के जुमलों में फंस जाती है या इसकी-उसकी गारंटी के चक्कर में आ जाती है, किसी बाबा के बहकावे में आकर गहने या रुपए दुगुने करने के लिए दे दे है तो गलती किसकी ? एक भक्तिन रोज हनुमान जी को दस ग्राम तेल चढ़ाकर अपने बच्चों के लिए करोड़ों की मन्नत मांगती । एक दिन हनुमान जी को गुस्सा आया और उन्होंने उसे लात जमाते हुए कहा- मैं क्या इतना बेवकूफ हूँ जो ऐसा सौदा करूंगा । इतने में तो तेल का एक स्विमिंग पूल नहीं बनवा लूँगा ।
कभी इसका उलटा भी तो हो सकता है ।
अब कोई अगर अटलजी या मोदी जी से सुखी वैवाहिक जीवन और पुत्रों का आशीर्वाद मांगे तो यह किसकी अक्लमंदी कही जाएगी ?
हमने कहा- लेकिन तोताराम, कुछ मिनिमम गारंटी होनी ही चाहिए ?
बोला- कहीं बिका हुआ माल वापिस नहीं होता ।अगर कोई आकर्षक आवाज लगाकर तुझे ठंडी चाय देकर प्लेटफार्म पर उतर जाए तो तू क्या कर लेगा । फैशन और विज्ञापन के युग में मजबूती तथा स्वार्थी, जुमलेबाज और लालची राजनीति के युग में वादा वफ़ा करने की उम्मीद लगाने वाला बेवकूफ होता है । आज का युग सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र का नहीं जिसने स्वप्न के आधार पर ही ऋषि विश्वामित्र को अपना राज्य दे दिया । ये तो व्यापारियों और नेताओं की बात है । आजकल गारंटी तो भगवान तक की नहीं है ।
हमने कहा- आज तक हमारी तो भगवान के साक्षात दर्शन करने वाले किसी भक्त से भेंट हुई नहीं । हाँ, भगवान के नाम से पंडे-पुजारी, मुल्ला-मौलवी ,पादरी या आजकल के स्वयंभू भगवान बने बदमाश बाबा लोग जरूर लोगों को भगवान और चमत्कार की आड़ में धोखा देते हैं ।
बोला- कुछ लोग बहुत चालाक होते है और वे खुद का भगवान से डाइरेक्ट लिंक बताते हैं और लोगों को मूर्ख बनाते हैं । मोदी जी ने भी कहा है कि वे जैविक नहीं हैं बल्कि उन्हें भगवान ने किसी खास मकसद से भेजा है । अब सच का तो कुछ समय बाद पता चलेगा । अगर अंधभक्ति हो तो कभी पता नहीं चलेगा । लेकिन कभी-कभी कुछ भक्त निजी तौर पर भगवान से जुड़ जाते हैं । ये भक्त भोले और बावले माने जाते हैं ।अपने गाँव चिड़ावा में भी सौ साल पहले एक 'बावलिया बाबा' हुए हैं । कहते हैं जुगल किशोर बिरला को उन्होंने ही ऐश्वर्यशाली होने का वरदान दिया था । आज गाँव के उत्तर में गोगाजी के मंदिर के पास में उनका मंदिर है और हर गुरुवार को उनका जागरण होता है ।
हमने कहा- मीराबाई भी ऐसी ही भक्त थी । वे भगवान के सीधे संपर्क में थीं और उन्हें अपने गिरधर नागर पर अटूट भरोसा था । उन्हें उनके देवर ने कृष्ण का प्रसाद बताकर जहर पिला दिया था । वे वह सब करने में ही सुख मानती थीं जो उनके आराध्य को अच्छा लगता है । वे बिना वेतन अपने साँवरिया की चाकरी करती थीं । इसलिए उन्हें अपने भगवान से कोई शिकायत भी नहीं थी । लेकिन सब तो मीरां नहीं होते । वे तो साधारण जीव होते हैं जो अपनी छोरी-छोटी मन्नतों के लिए भगवान से जुड़ते हैं और उनसे रूठते, नाराज होते हैं, शिकायत करते हैं ।
राजकोट गुजरात के एक गाँव जियाणा में पूजा पाठ करने के बाद भी जब स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो अंततः भगवान से नाराज होकर गांव के पूर्व सरपंच अरविंद सरवैया ने गांव के तीन मंदिरों रामापीर मंदिर, बंगला वाली मेलड़ी माता मंदिर और वासंगी दादा मंदिर में आग लगा दी।
तोताराम ने कहा- लेकिन यह बहुत गलत है । भयंकर दंडनीय अपराध है।
हमने कहा- व्यवस्था की आड़ में अपना स्वार्थ सिद्ध करने वालों को यह बुरा लग सकता है क्योंकि इससे जवाबदारी की मांग उन तक भी पहुंचेगी । जब किसी को जुमलों की आड़ में मूर्ख बनाने की अति हो जाती है तो फिर जन आक्रोश से कोई नहीं बच सकता ।
जब दर्द हद से गुजर जाता है तो ऐसी ही दवाइयाँ निकलती हैं ।
अरविन्द का अर्थ कमल भी होता है और कमल दिन में 26 घंटे सेवा करने वालों का निशान भी है । कमल जल में रहकर भी भीगता नहीं लेकिन सामान्य आदमी की सहनशक्ति की सीमा होती है ।
सबको अपनी सीमा में रहना चाहिए ।
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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