हैप्पी का जलवा
कल हम तोताराम के घर पर उसके साथ बैठकर देश के सबसे धनी व्यक्ति के बेटे की विश्व-चर्चित और ‘हम आपके हैं कौन’ के बाद पहली बार भारतीय संस्कृति के अनुसार सर्वांगपूर्ण शादी लाइव देखने का धैर्य नहीं जुटा सके और चले आये। इसके लिए हम भारतीय संस्कृति के सभी उद्दंड भक्तों से क्षमा मांगते हैं ।
आज तोताराम ने आते ही बरामदे से ही हांक लगाई- मास्टर, चाय के साथ कल का बचा हलवा भी गरम करवाकर लेते आना । उसके साथ ही आज दोनों भाई मेरे फोन पर अनंत की शादी के फ़ोटो भी देखते रहेंगे ।
हमने कहा- तोताराम, जैसे देश भक्ति सिद्ध करने के लिए ‘मन की बात’ सुनना ही नहीं बल्कि उसे सुन-देखते हुए अखबार में फ़ोटो छपवाकर ऊपर भेजना भी जरूरी होता है क्योंकि उसी के आधार पर आपकी जनसेवा प्रमाणित होती है और चुनाव में टिकट मिलता है ।
हमारे बस का यह सब नहीं है क्योंकि हमारी ऐसी कोई राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक महत्वाकांक्षा नहीं है । वैसे हम मोदी जी की तरह अपने ‘मन की बात’ सबको सुनाना तो चाहते हैं लेकिन किसीके मन की सुनना नहीं चाहते । अगर कभी किसी स्थानीय कवि गोष्ठी में शामिल होते हैं तो हम कविता सुनाकर खिसक लेते हैं । लेकिन जिनकी कोई महत्वाकांक्षा होती है उन्हें सुनना ही नहीं पड़ता बल्कि और भी कई तरह के नाटक करने पड़ते हैं- संसद में मेजें भी थपथपानी पड़ती है और तब तक ‘हो-ही, हो-ही’ ’ का घोष करते रहना पड़ता है जब तक यह कनफर्म न हो जाए कि प्रभु ने देख लिया है; जैसे कि बूढ़ी रंडी को भारी जेब वाले बदसूरत और घोंचू ग्राहक को बहकाने-बहलाने के लिए ‘मुग्धा नायिका’ का झूठा अभिनय करना पड़ता है जबकि दोनों पक्ष अपनी अपनी वास्तविकता से वाकिफ होते हैं।
बोला- देख ले, पिछड़े, नीरस मास्टर ! कहाँ लगता है ऐसा मेला। कब कब उतरती है इंद्रसभा धरती पर। इससे पहले ग़रीबों का सहारा बनकर एक बार ‘सहारा श्री’ ने रचाया था ऐसा रास और फिर सबका पैसा लेकर सुब्रत राय हो गए चम्पत राय। उनके बेटों की 500-500 करोड़ की शादियों में तथाकथित समाजवादी मुलायम सिंह से लेकर राष्ट्रवादी अटल जी तक हाजिर थे।
ऐसा कहते हुए तोताराम ने हमारे सामने तरह तरह की, रंग-बिरंगी, बड़े-बड़े तथाकथित सेलेब्रिटियों के फ़ोटो की धुआंधार बारिश ही कर दी ।
हमने कहा- अपने को ‘शहंशाह’, ‘किंग’ और ‘महानायक’ कहने वाले किराये पर नाच रहे हैं । विश्व और ब्रह्मांड सुंदरियाँ छाटे-छोटे कपड़ों में कमर तोड़े डाल रही हैं कि सेठ सीधे नहीं तो किसी वीडियो में ही देख ले तो दिहाड़ी पक्की हो और आगे की बुकिंग चलती रहे । जिसकी रोटी-रोजी ही प्रदर्शन पर चलती हो उसे सेलेब्रिटी होना, होने के बाद सेलेब्रिटी बने रहना जरूरी हो जाता है । चर्चा और नज़रों में रहे बिना कौन पूछेगा ? जो दिखता है सो बिकता है फिर चाहे वह शोभा हो या शरीर ।
और जॉन सीना, जिसने ऑस्कर में बेस्ट कॉस्टयूम डिजाइन के लिए अवॉर्ड देते समय गुप्त अंगों के आगे एक प्ले कार्ड लगाकर अपनी देह यष्टि का प्रदर्शन करते हुए आवरणों की निरर्थकता का संदेश दे दिया था आज पैसे लेकर प्रॉपर ड्रेस में भांगड़ा कर रहा है ।
और उससे भी ज्यादा दूल्हे-दुल्हन की तरह-तरह के छोटे बड़े वस्त्रों और मुद्राओं में हजारों फ़ोटो । शादी से पहले ही तरह-तरह की रस्मों में सब कुछ देख-दिखाने के बाद वह सनसनी कहाँ बचती है जो उन दिनों दुल्हन की छवि के लिए अंतिम क्षण तक दूल्हे के मन-प्राण में होती थी । वधू तो फिर भी वर को देख सकती थी । घूँघट का यही सबसे बाद फायदा है कि खुद किसी को नजर आए बिना सबको देख लो ।
हमारे जमाने में लड़के की पहली फ़ोटो तब खिंचती थी जब हाई स्कूल का फॉर्म भरा जाता था और लकड़ी की तब जब उसके रिश्ते की बात चलती थी ।हमारी शादी में हमारे चाचाजी ने अपने कैमरे से आठ ब्लेक-व्हाइट फ़ोटो खींची थीं । फेरों में पत्नी डेढ़ फुट का घूँघट निकाले थी । पता ही नहीं चलता था किसके साथ भाँवरें पड़ रही हैं । 1945-50 के बीच तो फ़ोटो का कोई झंझट ही नहीं हुआ करता था । वर वधू को एक दूसरे को देखनना तो दूर, उत्सुकता दिखाने का कोई अधिकार नहीं होता था।
बोला- लेकिन अब समय बदल गया है । नेहरू-गांधी का ज़माना नहीं रहा । मोदी है तो मुमकिन है । आज मोदी के भारत का ‘अमृत काल’ है । सारे दिन फोन पर जन्नत की सैर करते रहो ।
हमने कहा- आजकल सबसे ज्यादा बेकदरी तीन चीजों की हुई है- फोन, कैमरा और घड़ी। और इंन सबसे ज्यादा बेकदरी हुई है तथाकथित विशिष्ट जनों की । क्या नेता, क्या अभिनेता । क्या पहले ऐसा देखा कि दिलीप कुमार और बलराज साहनी सेठों की शादियों में नाच रहे हैं ? पहले सन्यासी विवाहों में कब जाते थे ? और आज तीन तीन शंकराचार्य विराजे हुए हैं धर्म-ध्वजाओं सहित । हालांकि रामदेव व्यापारी है फिर भी भगवा का भरम तो है । देखा, कैसे नाच रहा है जैसे होली में रँडुए । अब कहाँ है दीपिका के भगवा रंग वाले डांस पर भड़कने वाले ?
बोला- पहले की बात और थी। तब सबको राम नचाता था और आज ‘सबहिं नचावत माल गुसाईं’ । सबके स्टेबलिशमेंट हैं, सबको मैनेज करना पड़ता है । चलो इस बहाने शंकराचार्य और मोदी जी का डेमेज कंट्रोल भी हो गया ।
हमने कहा- क्या किया जाए । अगर मोदी जी 400 पार हो जाते तो देखते राष्ट्रपति भवन के परिसर में इन धनपतियों की परेड और शंकराचार्यों का जमावड़ा ।
बोला- तो फिर तुझे कुछ भी ढंग का नहीं लगा ? व्यर्थ ही 5 हजार करोड़ फूँक दिए लाला ने ।
हमने कहा- तो कौन से अपनी जेब से फूंके हैं । तामझाम समेटा नहीं उससे पहले ही बढ़ा नहीं दिए रिचार्ज के रेट ? मछली अपने ही तेल में भुनती है । भुगतो तमाशा देखने की सजा । मोदी जी क्या चाय के पैसों से लखटकिया सूट पहनते हैं ?
हाँ, एक बात हमें अच्छी लगी ।
तोताराम उत्साहित हुआ, बोला- चलो कुछ तो जँचा तुझे । क्या जँचा ?
हमने कहा- अंबानी परिवार की कुतिया ‘हैप्पी’ । सबसे निरपेक्ष, सहज, स्थितिप्रज्ञ । हालांकि उसे एक गुलाबी जैकेट जैसा कुछ पहना दिया गया था । वैसे वह अपने स्वाभाविक वेश में भी ऐसे ही रहती । यही फरक है मनुष्य और अन्य जीवों में । वे अपने जन्म को जीते हैं और मनुष्य जो नहीं है वह दीखने के चक्कर में न जाने क्या बन जाता है ।
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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