Jul 26, 2024

240 पर अटका अहंकार और रंग-विज्ञान


240 पर अटका अहंकार और रंग-विज्ञान  



 


जब से लोगों ने सुना है कि यू ट्यूब पर वीडियो डालने से उसके देखे जाने (व्यूज) के हिसाब से पैसा मिलता है तो यू ट्यूब में वीडियो डालने का एक ऐसा भेड़ियाधसान  शुरू हो गया है कि लोग किसी दुर्घटना के समय किसी की सहायता करने के स्थान पर उसका वीडियो बनाकर डालने में अधिक फायदा देखते हैं । जहां देखो आदमी की आँखें सहज-स्वाभाविक नहीं कुछ असामान्य ढूंढती हैं जिससे कुछ ऐसा वीडियो बन जाए कि वायरल हो जाए ।कोई अपने वीडियो के प्रभाव के बारे में नहीं सोच रहा है, बस लाइक चाहियें । 


रवीश कुमार और ध्रुव राठी की यू ट्यूब वीडियो से होने वाली आय के बारे में सब सोचते हैं लेकिन उनके कंटेन्ट के बारे में नहीं । कुछ किसी पार्टी के एजेंडे के तहत भी यह काम कर रहे हैं । कुछ लाइक के चक्कर में बहुत ही असत्य, भ्रामक, अवैज्ञानिक, अंधविश्वासी और घृणा व दुष्प्रचार वाले वीडियो डाले जा रहे हैं । हालत ऐसी हो गई है कि ज्ञान की बजाय अज्ञान और झूठ अधिक फैलाया जा रहा है । तुलसीदास के वर्षा ऋतु वर्णन की तरह-


हरित भूमि तृण संकुल, समुझि परहिं नहिं पंथ 

जिमि पाखंड विवाद तें लुप्त होहिं सद्ग्रंथ 


जब से स्मार्ट फोन हाथ लगा है तोताराम भी कई बार हमें प्रमाणस्वरूप यू ट्यूब के वीडियो दिखाने लगता है । 


आज 23 जुलाई है । 400 पार का अहंकार जब किट किट करता हुआ 240 पर अटक गया तो जिसे देखो अर्थशास्त्री बनकर सरकार द्वारा सामान्य लोगों को दी जाने वाली तरह तरह की राहतों के वीडियो डालने लगा ।दुर्गति को केन्द्रीय सरकारी कर्मचारियों और पेंशनरों की नाराजगी से जोड़कर नए बजट में पुरानी पेंशन, डीए, आठवाँ वेतन आयोग, कोरोना के बहाने से खा लिया गया 18 महिने का डीए का एरियर आदि की संभावनाओं से लोग एडवांस में बल्ले बल्ले गाने लगे थे । 


एक छुटभैय्या पत्रकार तो हमसे पूछने लगा- मास्टर जी, इतने पैसों का क्या करेंगे ? हमने भी कह दिया या तो 18 अगस्त को क्रूज पर इटली में 83 वां जन्मदिन मना लेंगे या किसी पोते-पोती की दो-चार प्रीवेडिंग कर देंगे ।निर्मला जी को भी बुला लेंगे संयोग से उनका जन्म दिन भी 18 अगस्त को ही पड़ता है । 


तोताराम आज सुबह नहीं आया । 


तोताराम के न आने का कारण बारिश और खराब सड़क को तो नहीं माना जा सकता । हालांकि कल ठीक ठाक बारिश हुई थी । हमारे यहाँ की सड़कों में भी नियमानुसार कमीशन खाया गया है फिर भी वे अयोध्या के नव निर्मित ‘रामपथ’, रामलला के गर्भ गृह की छत, बिहार के पुल और भारतीय रेल नहीं है जो जब चाहे धोखा दे जाएँ ।  


तोताराम आया कोई पौने 11 बजे ।  


हमने छेड़ा- क्या बात है ? आज तो ! एकदम ऐसे जैसे मोदी जी के साथ सेल्फ़ी लेनी हो ।


   




बोला- इसमें क्या बड़ी बात है ? यह कोई नेहरू, इंदिरा, राजीव, राहुल जैसे रजवाड़ों का राज थोड़े ही है जो सात पहरों में रहते हैं, किसी सामान्य जन से मिलते तक नहीं । यह मोदी जी जैसे गरीब और पिछड़े उदार और जनसेवी का राज है । आज कोई भी कभी भी मोदी जी के साथ सेल्फ़ी ले सकता है । जगह जगह भले ही पीने का पानी उपलब्ध न हो, लेकिन मोदी जी का सेल्फ़ी पॉइंट जरूर मिल जाएगा । 


हमने कहा- ये सब अपने आत्मप्रचार के नाटक हैं कि करोड़ों रुपए खर्च करके जगह जगह प्लाइवुड के पुतले खड़े कर दिए । वास्तव में तो मोदी जी अपने और कैमरे के बीच किसी को नहीं आने देते फिर चाहे वह नड्डा हो, राजनाथ हो या जकरबर्ग । 


 


इटली की दक्षिणपंथी,  युवा, मुखर, सुंदर प्रधानमंत्री मेलोनी की बात और है । देखा नहीं, हँसता हुआ नूरानी चेहरा ? 


बोला- बात साफ कर । कोई भी बात हो भक्तों की तरह या तो मेजें पीटने लगेगा या ‘हो-ही, हो ही’ करने लगेगा या खीसें निपोरने लगेगा । 


हमने कहा- हम तो आज तेरी इस सजधज का मकसद जानना चाहते थे । 


बोला- आज मोदी 3.0 का पहला बजट आने वाला ।


हमने कहा-  इससे पहले नेहरू जी तीन बार प्रधानमंत्री बने थे । तीनों बार कांग्रेस पूर्ण बहुमत से आई थी  लेकिन ऐसा 3.0 का तमाशा, रिकार्ड और प्रचार नहीं हुआ था जो ये 240 में कर रहे हैं । और तू भी सुन ले, चाय तक तो ठीक है लेकिन उससे आगे कुछ नहीं । हमारे पास फूंकने के लिए कौनसा जनता का पैसा है जो साउथ ब्लॉक में देसी घी का मेवा डला हुआ हलवा पेलेंगे और वह भी गरीबों को दिखा दिखाकर । 


बोला- कौन तेरी चाय के लिए आता है । यह तो बचपन में रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने वाले मोदी जी प्रधान मंत्री बने हैं तब से चाय पीना और चाय पर चर्चा करना राष्ट्रीयता से जुड़ गया है । इसलिए राष्ट्रीय कर्तव्य मानकर पी लेता हूँ वरना प्राचीन भारतीय संस्कृति में विश्वास करने वाले सनातनी लोग चाय को ब्रह्मचर्य और सात्विकता के लिए हानिकारक मानते हैं ।  


हमने कहा- वैसे तेरा क्या अनुमान है ? कैसा होगा बजट ? 


बोला- मैं तो अधिक नहीं जनता लेकिन रंग विज्ञान में विश्वास करने वाले कुछ सनातनी अर्थशास्त्री मानते हैं कि रंगों से व्यक्ति और उसके आचरण का अनुमान लगा सकते हैं । आज ही नेट पर एक अखबार में पढ़ा है कि निर्मला जी ने बजट प्रस्तुत करते समय 2019 में गुलाबी सिल्क साड़ी पहनी थी तो बजट का मेसेज था स्थिरता और गंभीरता, 2020 में पीली सिल्क साड़ी थी जो आनंद और ऊर्जा का प्रतीक है, 2021 में लाल बॉर्डर की ऑफ व्हाइट साड़ी थी जो कोरोना पीड़ित देश के लिए मंगलकामना थी, 2022 में पारंपरिक बोमजई साड़ी थी स्थिरता और शक्ति की प्रतीक । तभी तो अर्थव्यवस्था पांचवें नंबर पर आ गई । 2023 में साड़ी का रंग लाल था जो संकल्प, साहस और शक्ति का प्रतीक है। तभी तो पार्टी ने 400 पार का साहसी नारा लगाया और निर्मला जी भी फोर्ब्स के अनुसार दुनिया की 100 शक्तिशाली महिलाओं में आ गई । 


हमने कहा- लेकिन वे चुनाव खर्च के लिए पर्याप्त पैसा तो नहीं जुटा पाईं । और वह चार सौ पार का नारा भी फुस्स हो गया । राम राम करके 240 पकड़ पाए वह भी घपलेबाजी से । 


इसी चर्चा में 11 बज गए । तोताराम ने अपना मोबाइल खोलकर उसमें बजट लाइव लगाकर स्टेंड पर रख दिया । 


हमने कहा- तोताराम, ध्यान से देखकर बताया कि निर्मल जी की साड़ी का रंग क्या है । 


बोला- मास्टर, आज तो साड़ी का रंग सफेद है । 


हमने पूछा- तो तेरे रंग-शास्त्र के अनुसार इसका क्या अर्थ है ? 


बोला- इसका अर्थ है कि सरकार चलाने के लिए समझौता करना है । अब एक अकेला सब पर भारी नहीं पड़ पा रहा है । अब तो एक पर दो जन भारी पड़ रहे हैं । सबसे पहले तो इन्हीं राहु-केतुओं को संतुष्ट किया जाएगा । उसके बाद जहां जहां लोकसभा में सीटें कम मिली हैं उन्हें देंगे ।


हमने पूछा- और न्यूनतम समर्थन मूल्य ? 


बोला-  दे तो दिया बिहार को साठ और आंध्र को पंद्रह हजार करोड़ । यह  ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’  ही तो और क्या है ?  


हमने कहा- लेकिन वह तो अधिकतर इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए है जिसमें आधा तो ‘एक देश : एक ठेकेदार’ को चला जाएगा । बचेगा क्या ? 


बोला- 1991 में सरकार बचाने के लिए 1-1 करोड़ में सांसद खरीदे गए थे तो 28 सांसदों के लिए इतना क्या कम है ?  फिर ये कोई अपने सांस्कृतिक  ब्रांड वाले थोड़े हैं । राह चलते लोकल ब्रांड वाले हैं । 


बातें चलती रहीं और बजट का पटाखा भी फुर्र फुस्स हो गया ।

 

हमने पूछा- तोताराम, निर्मल बाबा के अढ़ाई घंटे के इस प्रवचन का सार क्या है ?


बोला- सार यही है कि अब मुसलमानों वाली हरी और कम्यूनिस्टों वाली लाल चटनी की जगह संतों वाली भगवा चटनी खाया कर और गर्व के पेट फुलाया कर ।


हमने कहा- एक अंतिम प्रश्न । हम अभी तक निर्मला जी के बालों के रंग को लेकर भ्रमित हैं । कभी सफेद और कभी काले । 


बोला- वे पहले बाल रँगा करती थीं और अखबार वाले मोदी जी के फ़ोटो की तरह और किसी के लिए इतने सतर्क नहीं रहते । जो भी फ़ोटो आगे पड़ गया सो लगा देते हैं ।  वैसे अब उन्होंने निश्चय किया है कि वे बाल नहीं रँगेंगी । मोदी जी की तरह ज्ञान, विद्वत्ता और वैराग्य की प्रतीक दुग्ध धवल केशराशि ।   


-रमेश जोशी  


 




 


 


 


 



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