Jul 21, 2024

सड़ा नारियल

सड़ा नारियल 


आजकल सबसे ज्यादा बेकदरी आम की हो रही है । आम आदमी पार्टी के छुटभैये तो क्या मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, सांसदों तक को बात-बिना बात जेल में ठूँस दिया जाता है । ऐसे ही आम आदमी, कोई भी तत्काल न्याय के नाम पर 50-50 साल पुरानी बस्तियों पर बुलडोजर चलवा देता है । भले ही महिलाओं, दलितों और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करने वालों को तत्काल जमानत दे दी जाती है और जानबूझकर बरसों तारीख नहीं दी जाती लेकिन किसी खास के लिए खास मकसद से रात को भी न्यायाधिपति बैठ जाते हैं । खुले में नकली, अमानक और अप्रामाणिक दवाइयाँ बनाने वालों से बॉन्ड के नाम पर चन्दा लेकर छोड़ दिया जाता है लेकिन मात्र पुलिस के प्रायोजित अनुमान पर हिरासत में लिए गए लोगों की सुनवाई करने के लिए न्यायाधिपतियों को बरसों समय नहीं मिलता । वैष्णव ढाबों और मिष्ठान्न भंडारों में नकली पनीर और मावे की मिठाइयां बेचने वालों को एक दिन चुपचाप माफी दे दी जाती है, प्रमाणित बलात्कारियों को  संस्कारी बताकर ‘अमृत महोत्सव’ के शुभ अवसर पर रिहा कर दिया जाता है और पार्टी के लोग बड़ी बेशर्मी से उन्हें मिठाई खिलाकर स्वागत करते हैं । यहाँ तक कि उनकी पत्नियाँ भी उन्हें बलात्कारी नहीं मानती वे उन्हें  धर्म योद्धा मानकर धन्य होती हैं ।असत्य, भ्रम और पक्षपात का अंधकार बहुत घना है । 


और तो और अब तो काँवड़ यात्रा के पवित्र मार्ग पर हरे रंग के मुस्लिम आम पर भी किसी ‘काँवड़ जिहाद’ की आशंका के कारण अपनी पहचान प्रदर्शित करने का फरमान जारी कर दिया गया है । शायद पीले या भगवा रंग के फल या आम इससे प्रतिबंध से मुक्त हैं । 


आजकल सब्जियां महंगी हैं और आम सस्ता । कोई आने वाला टमाटर, अदरक और लहसुन नहीं लाता । जो भी आता है बस आम ही लाता । हमारे इस इलाके में सब्जी और फलों के विक्रेता अधिकतर मुसलमान ही है । ऐसे में बहुत शंका होती है कि कहीं कोई मुसलमान आम न ले आए । अब तक तो पता नहीं था कि मुसलमान के ठेले से खरीदे आम से धर्म भ्रष्ट हो जाता है ।मंदिरों तक में पुजारी ऐसे वाहियात प्रश्न नहीं पूछते थे । लेकिन आज कोई भी लफंगा एक खास रंग का गमछा गले में डालकर शंकराचार्य बन जाता है और धर्म की ध्वजा उठा लेता है । 


आज पता चला कि हिन्दू धर्म कितना नाजुक है । पहले हिन्दू धर्म इतना कमजोर नहीं था । स्कूलों में हर त्योहार के पहले दिन प्रार्थना सभा में उस त्योहार के बारे में अध्यापक और उस धर्म के विद्यार्थी भी कुछ न कुछ  बताया करते थे ।स्कूल में सभी धर्म के बच्चे त्योहार के अगले दिन मिठाइयां, मूंगफलियाँ, रेवड़ियाँ आदि लाया करते थे और क्लास के सभी बच्चे और हम मजे के खाया करते थे ।  


कहा जाता है जब आदि शंकराचार्य काशी में श्मशान घाट जा रहे थे तब उनका सामना एक चांडाल से हो गया। आदि शंकराचार्य ने उन्हें हटने को कहा। जवाब में चांडाल हाथ जोड़ कर बोला- महाराज क्या हटाऊं, शरीर या आत्मा ?  चांडाल के दार्शनिक विचार से प्रभावित होकर उन्होंने चांडाल को अपना गुरू बना लिया था। वह ज़माना और था !बोलना तो दूर, आज तो बच बचकर चलते भी लिंचिंग हो जाती है ।  



आज के गली गली घूमने वाले हिन्दू धर्मज्ञ वज्र लंठ हैं, न बात करते हैं, न सुनते हैं । उनके पास  संवाद का एकमात्र साधन लट्ठ ही है । 


तो बात आम से शुरू हुई थी । चूंकि आम खपत से ज्यादा थे तो फ्रिज में रखे रखे भी उनका स्वरूप ईडी के चक्कर में फँसाये गए विपक्षी नेता की तरह विरूपित होने लगा था । हमने बहू से कहा- बेटा, आज रविवार है । सो समय मिले तो फ्रिज को भी ठीक कर लेना । जो आम जल्दी खराब होने वाले लगें उन्हें अलग कर देना । चाय से पहले हमें और तोताराम अंकल को भी एक दो आम दे देना । 


मोदी जी ने एक बार कहा था कि वे ड्रोन भेज कर कहीं भी बैठे बैठे देश में कहीं भी हो रहे निर्माण कार्यों की निगरानी कर लेते हैं । शायद इन दिनों अपने तीसरे कार्यकाल के अमृत काल के 50 दिन का एजेंडा बनाने के चक्कर में बिहार के पुलों की तरफ ध्यान नहीं दे पाए । तभी 15 दिन में 10 पुल गिर गए ।ऐसे ही कभी कभी तोताराम भी मोदी जी के बादलों और रडार के विज्ञान के अनुसार हमारे यहाँ एयर स्ट्राइक कर देता है । आज भी पता नहीं कहाँ छुपा खड़ा था ।


बोल पड़ा- ठीक है । सड़ा नारियल होली में और सड़ा आम तोताराम को । अरे कंजूस मास्टर,  परोपकार में ऐसा निकृष्ट कर्म तो अंबानी की प्री वेडिंग में एक पत्रकार को हाथी वाली खिचड़ी खिलाते समय भी नहीं किया गया होगा । लेकिन क्या किया जाए । आजकल लोगों ने सबसे अधिक गंदगी धर्म-पुण्य और उत्सव-त्योहार के नाम पर फैला रखी है । तभी जितने लोग मंदिरों का प्रसाद, शादी की मिठाइयां खाकर और तथाकथित सबीलों पर मुहर्रम या निर्जला एकादशी को मीठे जल की सेवा से मरते हैं उतने तो कोरोना से  नहीं मरे होंगे । 


हमने कहा- तोताराम, तुझे पता है, हमारे पिताजी थाली में एक कण भी जूठा नहीं छोड़ते थे, हमारे नानाजी थाली धोकर पीते थे । जब हम जूठी रोटी गाय या कुत्ते को देने का तर्क देते थे तो कहते थे- गाय और कुत्ते को भी अछूती रोटी ही देनी चाहिए । हम तुझे कोई अखाद्य वस्तु थोड़े देंगे, ऐसा तूने सोच भी कैसे लिया । 


बोला- यह कोई किसी अनुशासित पार्टी की मीटिंग थोड़े ही है जिसमें एक ही आदमी बोलेगा और सब मेजें थपथपाएंगे । यह कोई सेंगोल वाली सेंट्रल विष्ठा थोड़े है, यह बरामदे की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वाली उन्मुक्त बरामदा संसद है । क्या मजाक भी नहीं कर सकते ?  हर लोकतान्त्रिक व्यक्ति हास्य को पसंद करता है और उसका आनंद लेता है । लोकतान्त्रिक के वेश में छुपे डिक्टेटर की बात और है ।  


 

बस इतना बता दे कि यह आम हिन्दू है या मुसलमान ?


हमने कहा- कपड़ों और संतानों की संख्या से पहचान करने वाले ईश्वर के अवतार या ईश्वर के द्वारा सीधे किसी महान कार्य के लिए विशेषरूप से भेजे गए अवतारी पुरुष की बात हम नहीं जानते लेकिन हमें तो आजतक समझ में नहीं आया कि इनमें फ़र्क कैसे करें ?फलों का न खतना होता है न ये किसी खास तरह की दाढ़ी रखते ।  किसी भारतीय मुसलमान की गाय के दूध का क्या धर्म होगा ? पाकिस्तान की गायें किस धर्म की मानी जाएंगी ? 


ठीक है अगर किसी के कमजोर हिन्दू धर्म को बचाने के लिए काँवड़ मार्ग में सभी मुसलमानों के ठेलों और दुकानों पर उनका नाम लिखवा दिया जाएगा तो सत्य का सम्पूर्ण ज्ञान हो जाएगा ? हमारे साथ लीलाधार नाम का एक मुसलमान लड़का पढ़ता था । हमारे एक मामा का नाम हरिबख्श था । हमारे गाँव में एक पंडित जी थे जिनका नाम हनुमानबख्श था । हमारे भाई साहब का एक सहपाठी बख्शाराम था । हमारे जोधपुर के एक शायर है शीनकाफ निजाम । क्या समझे ? यह नाम उन्होंने शायद मुसलमानों शेयरों में प्रतिष्ठित होने के लिए अपने वास्तविक नाम ‘शिव किशन बिस्सा’ से निकाला है ।  


और फिर अपने कृष्ण प्रेम के कारण  ब्रजभूमि में बस जाने वाले रसखान को किस केटेगरी में रखेंगे जिनके बारे में भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने लिखा है- 


इन मुसलमान हरिजनन पर कोटिन हिन्दू वारिए ।  


बोला- क्या बताऊँ, धर्म और राष्ट्र का मामला है । 


हमने कहा- याद रख, डिक्टेटरों के ये दो प्रिय और सुरक्षित हथियार हैं । अगर इनकी भूमिका को पहचानकर सही समय पर प्रतिरोध नहीं करेगा तो फिर एक दिन ऐसा आएगा कि बोलने लायक भी नहीं रहेगा । 





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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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