Oct 17, 2025

2025-10-17 साहित्य का नोबल पुरस्कार


2025-10-17  

 

साहित्य का नोबल पुरस्कार  

 

आज तोताराम कुछ अतिरिक्त उत्साह में था । अगल-बगल के चार-छह मकानों तक सुनाई दे जाए इतने जोर से बोलाबधाई हो मास्टर ।  

हमने उसकी तरफ़ ध्यान ही नहीं दिया । उसने हमारे हाथ से अखबार छीनते हुए कहा- न खिला बादाम का हलवा लेकिन इस तरह किसी लोकनायक की तरह मणिपुर जैसी महत्वपूर्ण घटनाओं से जबरदस्ती तटस्थ रहने का नाटक तो मत कर ।  

हमने कहा- किस बात की बधाई ? छह महीने से कभी जी एस टी का उत्सव तो कभी तीन परसेंट की डी. ए. की बल्ले बल्ले का हल्ला । जब तक मिलता है तब तक महँगाई छह प्रतिशत बढ़ लेती है ।  

बोलायह इस प्रकार तुच्छ खबर नहीं है ।  

हमने कहातो फिर क्या है ? क्या हमें साहित्य का नोबल पुरस्कार मिल गया ? 

बोलामोदी जी को विभिन्न देशों के कोई 25 सर्वोच्च सम्मान मिल चुके हैंलेकिन नोबल नहीं मिला। ट्रम्प ने  सारे घोड़े खोल लिए लेकिन नोबल तो उन्हें भी नहीं मिला । गाँधी जी को भी नोबल नहीं मिला लेकिन उनकी लोकप्रियता में कोई कमी आई क्या ? बाद में तो नोबल कमेटी वालों ने इस बात के लिए माफी माँगी कि उन्होंने गाँधी जी को नोबल न देकर बड़ी गलती की  हो ता है कल को बल ले ट्र्प और दी जी को संयु्त ूप से शाति का ोबल न ने के िए फी मांगें । और यह भी हो ता है कि वे झे भी साहि्य का ोबल न िए ने पर गे कर फी मांगें ।  

अटल जी के समय में एक राजसी खानदान के नेता हुआ करते थे जिनका एक आध्यात्मिक डाइलॉग हैपैसा भगवान नहीं लेकिन भगवान से कम भी नहीं । तो बस समझ ले कि तेरी यह पलब्धि नोबल नहीं तो नोबल से कम भी नहीं ।  

अब तो वास्तव में हमारी उत्सुकता बढ़ गई क्योंकि नोबल के लिए व्यक्ति को खुद न तो पुस्तक भेजनी पड़ती है और न ही कोई फॉर्म भरना पड़ता है । कोई भी विशिष्ट व्यक्ति या राष्ट्र किसी की भी सिफारिश कर सकता है जैसे पाकिस्तान जैसे दुनिया के शांतिप्रिय देश ने ट्रम्प जैसे शांतिप्रिय व्यक्ति की शांति के नोबल के लिए सिफारिश की । यह पता नहीं नोबल वालों ने किसको कितना महत्व दिया लेकिन नोबल मिला नहीं । हो सकता है किसी ने मज़ाक में हमारा नाम नोबल के लिए भेज ही दिया हो लेकिन साहित्य  का नोबल घोषित हो चुका और वह हंगरी के एक लेखक को मिला है सो हमें इस वर्ष साहित्य का नोबल मिलने का प्रश्न नहीं फिर भी तोताराम जिस प्रकार से जैसी बात कर रहा है उसमें कुछ तो दम है । आशा बहुत बुरी चीज होती है । अगर झूठमूठ ही कोई अफवाह उड़ा दे तो लगने लगता है कि क्या पता किसी ने हमारी प्रतिभा को पहचान लिया है जैसे नारद मोह में वानर रूप धारी नारद जी स्वयंवर में उस भुवनमोहिनी द्वारा उड़ाये गए उपहास को भी अपने प्रति आशक्ति या आकर्षण समझ लेते हैं ।  

अब तो हमने अपने स्वर में मिठास भरते हुए कहा- तेरे मुँह में घी शक्कर तोताराम लेकिन बात को साफ कर, क्यों हमारे   दिल की धड़कनें बढ़ा रहा है । दिल  ‘आज मैं  ऊपर, आसमाँ नीचे’ हुआ जा रहा है ।  

बोलातुम्हारे व्यंग्य साहित्य पर एक शोधार्थी को पीएचडी की उपाधि मिली है ।  

हमने कहातो यह कोई सरकारी नौकरी मिलने की गारंटी थोड़े है । हमने तो पीएचडियों को मनरेगा में काम करते देखा है । अभी चपरासी की सरकारी नौकरी के लिए कई पीएचडी और आई आई टी वाले लाइन में लगे देखे हैं । प्राइवेट कॉलेज में 15 हजार रुपये देते हैं और 12-12 घंटे काम करवाते हैं ।  

और जहाँ तक ‘उपाधि’ की बात है तो तुझे पता होना चाहिए संस्कृत में इसके कुछ खतरनाक अर्थ भी है जैसे उपद्रवधोखाछल-कपट आदि ।  

बोलाअच्छा ! तभी एक नेता ने अपने बड़े नेता की डिग्री टीवी पर दिखा दी जिसे लेकर अब तक बड़ा उपद्रव मचा हुआ है । कोर्ट की मदद लेकर बड़ी मुश्किल से पीछा छुड़वाया है ।  

 

 

 

 

     

 

 

 

 

 

 

 

हमने कहालेकिन तुझे कैसे पता चला कि हमारे व्यंग्य साहित्य पर किसी को पीएचडी की उपाधि मिली है ?  

बोला- भले ही सच्चे सनातनी किसी मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष न ढूंढ पाएं लेकिन हमारे भक्त सब खबर रखते है । अगर कोई पोस्टर न लगाए तो भी वे चेहरा और कपड़े देखकर बताया सकते हैं कि कौन मोहम्मद को लव करता है और कौन महादेव को । और फिर उसे इसके लिए दंड या पुरस्कार का विधा भी तत्काल कर देते हैं क्योंकि कहा गया है कि जस्टिस डिलेड ईज़ जस्टिस डिनाइड ।  

हमने कहाजब उपाधि का कोई आर्थिक लाभ ही नहीं तो चाहे ऑर्डिनरी हो या एन्टायर हो क्यों चक्कर में पड़ना । तुझे पता होना चाहिए इस पीएचडी के चक्कर में तो हंगरी के राष्ट्रपति पॉल श्मिट ने चोरी की थीसिस सम्मिट कर दी तो इस्तीफा देन पड़ था । अगर कि ने इसें को गड़ कर ली हो तो बि बा हम फँसेंगे ।  

बोलाफँसने का क्या है ? इस समय साहित्य ही नहीं सभी क्षेत्रों में भक्ति काल चल रहा है । इसलिए वैसे ही व्यंग्य एक जोखिम का काम है । क्या पता कब किसी की भावना आहत हो जाए और वह एफआईआर कर दे तो बिना बात बंधा बंधा फिरेगा । और मान ले किसी को भगवान ने आदेश दे दिया और उसने जूता ही फेंक मारा तो हजार गुस्सा आने पर भी उसे माफ करने के अलावा तेरे पास कोई चारा नहीं रहेगा ।  

हमने कहा- यह तो सच है तोताराम कि बातें बहुत बदल गई हैं । पहले जो अखबार हफ्ते में मनमोहन जी पर हमारे दो तीन आलेख छाप दिया करते थे अब हाथ जोड़ने लगे हैं । तो इस पीएचडी का क्या करें । हम तो यही खैर मनाते हैं कि किसी भक्त ने हमारे आलेख न पढ़ लिए हों अन्यथा बेचारे शोधार्थी को लेने के देने पड़ जाएंगे ।   

अच्छा है आजकल सब कामों में औपचारिकता अधिक है और वास्तविक अध्ययन के चक्कर में कोई नहीं पड़ता ।  

और अगर जब इन उपाधियों से कुछ होना हवाना ही नहीं तो क्या फ़र्क़ पड़ता है कि हम ही आज से डी लिट लिखना शुरु कर दें ।  

वैसे भी हाईकोर्ट ने डिग्री दिखाने की बाध्यता खत्म कर दी है ।  

बोला- कुछ सेलेब्रेट नहीं करना तो कोई बात नहीं मत कर लेकिन ‘डाक्टरेट’ की इतनी बेकदरी तो मत कर । हो सकता है तू पीएचडी नहीं हो सका इसलिए हार्ड वर्क की आड़ में हार्वर्ड वालों का मज़ाक उड़ा रहा है ।  

 

-रमेश जोशी  

 


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