मोदी जी को यह क्या हो गया ?
आज जैसे ही तोताराम आया, हमने उसे बैठने का भी मौका नहीं दिया जैसे कि ट्रम्प मोदी जी को चार दिन की मोहलत नहीं देते और कह देते हैं कि मैंने युद्ध विराम करवाया या मेरे कहने से भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया है; और कहा- मोदी जी को यह क्या हो गया है ?
बोला- कुछ नहीं हुआ । वैसे ही गोरे-चिट्टे स्मार्ट, तन कर चलते, बिना चश्मे में 2047 का भारत और अच्छे दिन देख लेने वाले, पूरे 56 इंच के सीने वाले, बड़े-बड़ों को लाल आँख दिखा सकने वाले, सिर पर पूरे बाल, स्वस्थ, भव्य । अभी कुछ दिन पहले ही नए बने बहादुरगढ़ की तरफ जाने वाले फॉर लेन मार्ग पर मॉर्निंग वाक करते नज़र आये तो थे ।
हमने कहा- हम उनके शारीरिक स्वास्थ्य की बात नहीं कर रहे । वह तो अच्छा रहेगा ही । योगा करते हैं, मशरूम खाते हैं और ब्रह्मचारी हैं, माया मोह से मुक्त तो पहले से ही थे । हम तो उनके मानसिक और बौद्धिक स्तर में कमी आने की बात करते हैं ।
बोला- उसमें भी कोई कमी नहीं है । आज भी कांग्रेस की पुरानी से पुरानी बातें ढूंढ ढूंढकर लाल किले ही नहीं, जहाँ तहाँ सुनाते रहते हैं । याददाश्त में कोई कमी नहीं । एक दम सजग ।
हमने कहा- दो चार दिन पहले मोदी जी ने बिहार में चुनाव प्रचार में एक भाषण में गठबंधन के बारे में जिस प्रकार से तुकबंदी करते हुए प्रधानमंत्री की भाषा का स्तर गिराया उसको लेकर हमारे मित्र एक विश्लेषक ने कहा कि लगता है मोदी जी का बौद्धिक स्तर गिर गया है । इसीलिए वे विदूषकों की तरह बचकानी तुकबंदी करते हुए ओछी और बचकानी बातें करने लगे हैं जो प्रधानमंत्री को शोभा नहीं देती ।
बोला- चुनाव में सब कुछ उसी तरह उचित है जैसे कि प्रेम, जुआ, मजाक, महिलाओं के बीच में और युद्ध में । चुनाव भी इसका एक प्रकार है । और फिर जहाँ तक तुक की बात है तो तुक मिलाना कोई मज़ाक नहीं है । अच्छे अच्छे कवि तुक के अभाव में चार लाइनों से आगे नहीं बढ़ सकते । मैंने भी इमरजेंसी के बाद मोरारजी के प्रधानमंत्रित्व काल में एक मुक्तक लिखने की सोची थी लेकिन इंदिरा जी के बीस सूत्र और मोरारजी भाई के स्वमूत्र के बाद तीसरी टुक न मिल पाने के कारण मुक्तक आज तक पूरा नहीं हो सका और मोदी जी को देखे ।
सब काम तुक में, कोई भाषण कथ्य में बेतुका हो सकता है लेकिन तुक के मामले में एकदम फिट । अभी समस्तीपुर की चुनावी सभा में क्या तुक मिलाई है- लटक, झटक, पटक ।
हमने कहा- अब देखना मोदी जी पर भी इसी प्रकार की तुकबंदी बनेगी । हम अभी सुना देते हैं तुम्हें । चटक, मटक, गटक ।
बोला- मतलब ?
हमने कहा- चटक मतलब प्रदर्शन के लिए तरह तरह के रंग बिरंगे, नए नए वस्त्र पहनना । क्या कभी नेहरू, गांधी, पटेल, राजेन्द्र बाबू, शास्त्री जी, राजीव और राहुल को ऐसे बार बार नए नए वस्त्रों में देखा है ? ऐसे ही बच्चे और नादान युवतियाँ नए नए कपड़े पहन कर बनावटी चाल से चलते हैं उसे मटकना कहते हैं ।
बोला- लेकिन यह ‘गटक’ क्या है ?
हमने कहा- जब कोई कुछ चुराकर या छुपाकर खाता-पीता है तो उसे तसल्ली नहीं, होती और कुछ डरा हुआ भी होता तो वह उसे जल्दी से हलक के नीचे उतार लेता है उसे गटकना कहते हैं जैसे सरकार आर्थिक अपरधियों से घूस के रूप में इलेक्शन बॉन्ड, पी एम केयर फंड का पैसा लेकर गटक गई । इरादा तो कुछ भी बताने का नहीं था लेकिन जब जोर पड़ा तो बड़ी मुश्किल से बताया कि किसने, कितने के इलेक्शन बॉन्ड खरीदे । इनमें नकली दवा बनाने वाले और घाटे में चलने वाली कुछ कंपनियां तक थीं । और घाटे में दिखाकर भी अरबोंब का चंदा देने का क्या मतलब है ?
इसे कहते हैं ‘चोर-चोर मौसेरे भाई’ ।
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
No comments:
Post a Comment