कपिल सिब्बल जी,
जय राम जी की । आज के अखबार में आपकी भविष्यवाणी पढ़ी । तभी आपको 'जय राम जी की' कह दिया वरना आज कल राम की याद किसे रह गई है । भाजपा तक राम को भूल गई है फिर आप तो धर्म निरपेक्षता वाले हैं आपको राम से क्या काम । भले ही आपको राम की याद यू.पी. में कांग्रेस की वापसी के सन्दर्भ में ही आई हो पर आई तो सही । वैसे बताते चलें कि आप ने कहा कि कांग्रेस का २३ वर्ष का बनवास २०१२ में समाप्त हो जाएगा और इसके बाद रामराज होगा ।
एक बार आपकी ही तरह किसी ने रामायण या महाभारत के प्रतीक का प्रयोग करते हुए कोई बात कही थी । उन्हीं दिनों कांग्रेस से निकाले गए नटवर सिंह जी ने कहा था कि कांग्रेस में रहने से क्या फायदा । कांग्रेसियों को रामायण-महाभारत के बारे में ही नहीं मालूम । यह भी कोई बात हुई । अजी, लोग राजनीति में राज करने के लिए आते हैं या कोई रामायण-महाभारत के बारे में प्रवचन करने के लिए ? आपको रामायण का कुछ तो ज्ञान है ही कि बनवास से आने के बाद राम का राज्याभिषेक हुआ था । अब इससे क्या फर्क पड़ता है कि रामायण में बनवास चौदह वर्ष का हुआ था और आपने उसे बढ़ा कर २३ वर्ष का कर दिया । गलती आपकी भी नहीं क्योंकि कांग्रेस यू.पी. में सत्ता से २३ वर्ष से बाहर है तो बनवास को भी २३ वर्ष का ही बताना पड़ेगा ।
वैसे बताते चलें कि राम का बनवास रावण को मारने के लिए ही हुआ था और रावण को मारने के बाद उनका राज्याभिषेक हुआ था । कांग्रेस ने कौन सा रावण मार लिया पता नहीं । यू.पी. ही क्या, सारे देश में ही महँगाई, जातिवाद, गुंडागर्दी के रावणों का मरना तो दूर, अब भी गद्दी पर बैठे हुए ठहाके लगा रहे हैं । हमें तो लगता है कि सारी ही पार्टियाँ रावणों से मिलकर ही राज चला रही हैं । रावणों के समर्थन से ही उनकी कुर्सियाँ बची हुई हैं । तभी तो सभी विधान सभाओं और लोक सभा में, सभी दलों के आधे से ज्यादा अपराधी किस्म के लोग बैठे हुए हैं । जनता जानती है, विभिन्न सर्वेक्षणों की रिपोर्टें आतीं हैं, मुकदमें चल रहे हैं, सी.बी.आई. जाने कैसे-कैसे लोगों को, कैसे-कैसे बचा रही है फिर भी आप कह रहे हैं कि रामराज होगा । लेकिन शर्त यह है कि कांग्रेस के आने के बाद होगा ।
अगर कांग्रेस की सरकार नहीं बनी तो राम जी को फिर बनवास में रहना पड़ेगा । बड़ी अजीब और कठिन शर्त लगा दी राम पर आपने । राम ने तो एक धोबी के कहने से ही सीता जी बनवास में भेज दिया था और आज की सरकारें हैं कि अपराधियों को बचा रही हैं और आरोप लगने पर यह कह कर बचाव भी करती हैं कि सारे आरोप राजनीति से प्रेरित हैं । राम के बारे में संयुक्त मोर्चे की सरकार ने तो दूरदर्शन के 'ग्रामीण जगत' कार्यक्रम में शुरू में 'राम-राम' के संबोधन पर भी रोक लगा दी थी । कुछ समय पहले कुछ लोगों ने रामसेतु का मुद्दा उठाया तो वह भी राजनीति से प्रेरित था तो आपकी पार्टी द्वारा राम के अस्तित्व को ही नकारने का काम भी कौन सा राष्ट्र सेवा का कृत्य था ?
हमें तो लगता है कि इस देश में सब कुछ राजनीति से ही प्रेरित है । दान-धर्म, पदयात्रा, रोड़-शो, किसी गरीब से सहानुभूति दिखाना, उसके साथ फोटो खिंचवाना, उसे सहायता देना, साल में एक सौ दिन का रोजगार देना, दो रुपए किलो अनाज देना, साड़ी बाँटना, किसी मंदिर में जाना, छात्रवृत्ति की घोषणा करना आदि सभी कुछ हमें तो राजनीति से प्रेरित लगता है । सरकारों ने सभी को किसी न किसी राजनैतिक उद्देश्य से छात्रवृत्तियाँ दीं मगर सब के पीछे कोई न कोई राजनीति थी । किसी को अनूसूचित जाति के कारण, किसी को जनजाति, तो किसी को अल्पसंख्यक होने के कारण मगर असली बात तो है पैसा । पैसा है तो नीची जाति का ही क्या; अपराधी, कलंकित, चोर, उचक्का भी परमादरणीय और पूज्य हो जाता है । सो असली आधार तो गरीबी है किसी की मदद करने का, मगर उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया ।
पिछले साल अगस्त के महीने में एक घोषणा हुई थी कि जिस विद्यार्थी के माता-पिता की संयुक्त आमदनी साढ़े चार लाख से कम है उसे उच्च अध्ययन के लिए बिना ब्याज के कर्ज दिया जायेगा । भले ही इसके पीछे किसी थिंक टेंक में सवर्ण वोट की राजनीति, कोई सड़ी मछली रही होगी पर हमें तो यह घोषणा अब तक की सभी सरकारों की सभी घोषणाओं से अच्छी लगी क्योंकि इसमें एक तार्किकता और संवैधानिक समानता नज़र आई । मगर संयोग देखिये कि इसी योजना का क्या हश्र हुआ ? इस इंटरनेट के युग में भी आज तक बैंकों तक इस के आदेश नहीं पहुँचे हैं । इतने दिन में तो आदमी दिल्ली से चलकर रामेश्वरम तक आदेश पहुँचा आता ।
आपके विभाग की इस काहिली के कारण हमारे मित्र ने हमें ढपोरशंख की कहानी सुनाई । ढपोरशंख की कहानी तो अपने सुनी ही होगी जो केवल घोषणा करता है मगर करता धरता कुछ नहीं । मगर हम आपको ढपोरशंख नहीं मानते । आपकी समस्या तो यह है कि आप इतनी घोषणायें करते हैं कि आपको याद ही नहीं रहता कि पिछली का क्या हुआ जैसे कि पवार साहब को क्रिकेट के कारण याद ही नहीं रहता कि खेत में कुएँ पर बिजली आ गई है और मोटर चालू करनी है या अनाज गोदाम का ताला खुला रह गया है और चूहे घुस कर अनाज खा रहे हैं या बरसात में रेलवे के प्लेटफार्म पर खुला पड़ा अनाज भीग रहा है ।
अब आपका ज़वाब आने पर ही स्थिति साफ़ होगी कि माजरा क्या है ? हमारा तो कहना है कि आदमी भले की काम कम करे मगर करे अच्छी तरह से । सारे काम ही घटिया तरीके से करने की बजाय एक काम ही आदमी ढंग से करले तो बेड़ा पार हो जाए । आप कभी सिलेबस बदलने की बात करते हैं, कभी ग्रेड की, कभी विदेशी यूनिवार्सिटियों को यहाँ बुलाने की मगर अभी तक हुआ कुछ नहीं । हाँ, नए-नए घोटाले ज़रूर सामने आ रहे है- कभी दो करोड़ की रिश्वत लेकर किसी मेडिकल कालेज को मान्यता देने का तो कभी नकली डिग्रियों से नौकरी करने का, कभी जाली यूनिवर्सिटियों की सूची छपती है जो दिल्ली सहित देश के सभी राज्यों में धड़ल्ले से चल रही हैं मगर पता नहीं क्यों उन पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती है ।
चलिए पवार साहब के पास तो चार-चार विभाग है सो भूल-चूक समझ में आती है मगर आपके पास तो एक ही विभाग है । मगर आपके सामने समस्या यह है कि आप अभी तक यही तय नहीं कर पाए हैं कि भारत में क्या पढ़ाया जाए, सिलेबस में क्या-क्या रखा जाए, भारत को अमरीका बना दिया जाए या कि इसका भारत बने रह कर भी काम चल सकता है ? अभी आपने इतिहास बदलने का अभियान नहीं चलाया है मगर आपको याद होगा कि १९७७ में जनता पार्टी का राज आते ही इंदिरा गांधी द्वारा गड़वाया गया कालपात्र खुदवाया गया । यह बात और है कि उसमें बेचारी इंदिरा जी का खुद का ही नाम नहीं निकला । इसके बाद इतिहास की नवीं और ग्यारहवीं कक्षा की किताबें बदलवाई गईं । इसके बाद कांग्रेस का राज आया तो फिर इतिहास की किताबें बदली गईं । इसके बाद जब भाजपा का राज आया तो फिर इतिहास बदलने की ज़रूरत आ पड़ी । मतलब कि इतिहास न हुआ तमाशा हो गया । और इस इतिहास बदलने के चक्कर में देश में कश्मीर, अरुणांचल आदि का भूगोल बिगड़ने लगा ।
जब किसी के पास करने के लिए कोई सार्थक काम नहीं होता तो वह उलटे सीधे काम करता है । जब कोई दुकानदार खाली होता है तो वह व्यस्त दिखने के लिए या मन बहलाने के लिए बीच रस्ते में आकर सामान साफ़ करने के बहाने धूल और कूड़ा फ़ैलाने लगता है । आपकी बात और है आप निठल्ले नहीं हैं बल्कि ज्यादा व्यस्त हैं और वह भी बिना बात । इसी स्थिति के लिए कहा गया है कि टके की कमाई नहीं और फुर्सत घड़ी भर की नहीं । अजी, पढ़ने और पढ़ाने के लिए दिल और इच्छाशक्ति चाहिए फिर क्या पेड़ों के नीचे और सड़क के बल्ब की रोशनी में पढ़कर भी लोगों ने कमाल नहीं कर दिखाया ? आप तो नाटक छोड़कर शिक्षा का वातावरण पैदा कीजिए- समानता का, जिज्ञासा का, भले और शिक्षित लोगों के आदर का, बजाय व्यक्ति को जाति और धर्म के आधार पर पहचानने के । वातानुकूलित पाँच सितारा स्कूलों की बजाय गुरुकुल की संस्कृति को समझने की कोशिश कीजिए । भारत का भला वहीं से निकलेगा ।
वैसे आप भी क्या करें । डाक्टर, वकील और नेता सभी काम को लंबा खींचने में विश्वास करते हैं । डाक्टर और वकील लगातार मिलते रहने वाली फ़ीस के लिए और नेता अपने कार्यकाल के पाँच साल निकालने के लिए । और फिर आप तो वकील और नेता दोनों हैं और क्या पता पी.एच.डी. वाले डाक्टर भी हों । और अगर सारे सपने एक ही कार्यकाल में पूरे हो गए तो फिर अगले कार्यकाल में क्या करेंगे ?
२६-७-२०१०
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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Jhootha Sach
जोशी जी,
ReplyDeleteनमस्कार !
इस बार का झूठा सच कड़वा सच बन गया है ! अच्छी खिचाई की है !! धन्यवाद !!!
धन्यवाद
ReplyDeleteवैसे सच तो कडवा ही होता है मगर लोगों को अपने मतलब का झूठ ही सच लगने लग जाता है
:)
ReplyDeleteAabhar
aur ha agar baar baar jhoot bola jae to lagne laggata hai kanhee ye sach to nahee...........
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