Feb 11, 2011

गुप्त सेवा


बसंत पंचमी की शाम को गैस खत्म हो गई थी । पानी कहाँ से गरम होता सो हमने तो नहाने का कार्यक्रम केंसिल कर दिया मगर पत्नी ने नहाने की हिम्मत कर ली और खा बैठी सर्दी । दिन भर नाक बही और रात को तो हल्का बुखार भी । चाय की आदत ठहरी सो किसी तरह अँगीठी जलाकर बनाई । आज चाय पीना हमसे ज्यादा पत्नी के लिए आवश्यक था । जब वह बारहों महीने हमारे लिए चाय बनाती है तो आज उसे चाय बनाकर देना हमारा कर्त्तव्य ही नहीं, धर्म भी था । पत्नी को चाय देने के बाद हम सँडासी से भगोना पकड़े-पकड़े ही चबूतरे पर ले आए । अपने लिए चाय छानी और बची हुई भगोने में ही छोड़ कर ढँक दी ।

कुछ देर बाद तोताराम आया और चाय पी । तब तक हमारी चाय भी समाप्त हो गई । हमने कहा- तोताराम, तेरी भाभी की तबियत आज ठीक नहीं है सो बंधु, गिलास खुद ही धो कर रख देना । और हो सके तो हमारा गिलास और भगोना भी धो देना ।

तोताराम बोला- भाई साहब, पहले वाली बात होती तो मैं सारे बर्तन माँज देता मगर अब ज़माना बदल गया है ।

हमें आश्चर्य हुआ- क्या ज़माना बदल गया ? हम, तू, तेरी भाभी सब तो वही हैं ।

कहने लगा- सोच, कल को यदि मैं राष्ट्रपति बन गया तो लोग मेरी इज्जत का भी कचरा कर देंगे और कह देंगे कि तोताराम को मास्टर ने राष्ट्रपति इसलिए बनाया कि वह उसके चाय के बर्तन साफ़ किया करता था । जब वर्तमान राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को ही नहीं छोड़ा तो मुझे क्या छोड़ेंगे ?

हमने कहा- तोताराम, इस दुनिया की मानते रहो तो यह गधे को कंधे पर चढ़वा देती है । वह कहानी नहीं सुनी ? एक बाप और बेटा शहर जा रहे थे । बेटा गधे पर बैठा था और बाप पैदल चल रहा था । लोगों ने कहा- देखो, बेटे को शर्म नहीं आती । बाप पैदल और बेटा सवारी कर रहा है । तो बेटा नीचे उतर गया और बाप बैठ गया । थोड़ी दूर जाने पर कुछ औरतें मिलीं, कहने लगीं- क्या ज़माना आगया है । छोटा बच्चा तो पैदल और बाप गधे पर । अबकी बार दोनों गधे पर चढ़ गए तो लोगों ने कहना शुरू कर दिया- कैसे निर्दय हैं । बेचारे जानवर को मार ही देंगे । अबकी बार बाप-बेटे दोनों ही उतर गए । फिर कुछ लोग मिले और कहने लगे- बड़े बेवकूफ हैं । जानवर होते हुए भी पैदल चल रहे हैं । अंत में हारकर दोनों ने गधे को दो-दो पैरों में रस्सी बाँध कर एक लाठी से लटका लिया । अब तो अजब तमाशा हो गया । बच्चे चिल्लाते हुए उनके पीछे-पीछे चलने लगे । अब वे एक पुल पर से जा रहे थे । तभी गधा चमक गया और उछल कर रस्सी तुड़ाकर पिता-पुत्र सहित नदी में गिर गया ।

तोताराम कहने लगा- मास्टर, एक बार बात उछल जाती है तो फिर उसे वापिस लेना बहुत कठिन होता है । यह तो मैं और तुम जानते हैं कि यह घटना उस समय की बताई गई है जब इंदिरा जी प्रधान मंत्री नहीं थीं । और उस समय प्रतिभा जी महाराष्ट्र में किसी न किसी पद पर थीं । अब क्या यह हो सकता है कि वे अपना वहाँ का काम छोड़कर तीन साल तक दिल्ली में रहकर इंदिरा जी का खाना बनाती रही होंगी ।

हमने भी तोताराम का समर्थन किया- ये तो ऐसे लिख रहे हैं जैसे कि प्रतिभा जी तीन साल तक दिल्ली में खाना ही बनाती रहीं । अरे, ज्यादा से ज्यादा यह हो सकता है कि कभी दिल्ली आई होंगी और इंदिरा जी से मिलने गई होंगी । इंदिरा जी उस समय प्रधान मंत्री न होने के कारण उदास होंगी । ऐसे में उनका मन बढ़ाने के लिए प्रतिभा जी ने चाय बनाकर पिला दी होगी और अब लोग हैं कि ऐसे लिख रहे हैं जैसे कि प्रतिभा जी इंदिरा जी के यहाँ तीन साल तक बाई का काम करती रही थीं । अब क्या किया जाए । मारते का हाथ पकड़ा जा सकता है, बोलते की जुबान तो नहीं पकड़ी जा सकती ना ।

तोताराम कहने लगा- तभी तो कहता हूँ, ज़माना बड़ा खराब है, मास्टर । लोग सेवा, मदद और चापलूसी में फर्क नहीं समझते और यदि समझते हैं तो भी जानबूझकर तथ्यों को तोड़ते-मरोड़ते हैं । किसी हारे हुए नेता के पास कोई जाता है तो वह सच्ची सहानुभूति होती है । जीते हुए नेता को तो चमचे साँस ही नहीं लेने देते । लालू जी को पी.एच.डी. दिलवाने की तैयारी हो गई थी, अटल जी की कविताएँ मेरठ यूनिवर्सिटी के कोर्स में लगने वाली थीं । वह तो लोगों ने हल्ला मचाना शुरु किया तो बात टल गई । जब अटल जी प्रधान मंत्री थे तो सुरेन्द्र शर्मा उनकी अध्यक्षता में दिल्ली में कवि सम्मलेन करा रहे थे और अब चार लाइनें सुनाना तो दूर, कभी हाल पूछने भी नहीं गए होंगे । पहले इंदौर के एक वकील साहब अटल जी का मंदिर बनवा रहे थे । अब शायद उसमें शिवराज सिंह चौहान की प्रतिमा स्थापित कर दी होगी । पहले लालू, राबड़ी, अटल जी और वसुंधरा पर काव्य लिखे जा रहे थे । धड़ाधड़ खबरें छाप रहे थे और अब हाल यह है कि ढूँढ़े से भी कहीं अखबार में नाम नज़र नहीं आता । और तुम्हें याद होगा डाक्टर राणावत घुटनों का ऑपरेशन तो जाने कब से कर रहे थे मगर पद्मश्री मिली अटल जी के घुटने का ऑपरेशन करने के बाद । उमा शर्मा को भी अटल जी की कविताओं पर नृत्य करने के बाद ही पद्मश्री मिली ।

अब ये गिलास और भगोना धोने का काम मैं एक ही शर्त पर कर सकता हूँ कि तू दरवाजे पर खड़ा रहे और यदि कोई इधर आ रहा हो तो मुझे तत्काल सूचित कर दे जिससे मैं बर्तनों को छोड़कर हट जाऊँ और कोई मुझे यह तुच्छ काम करते हुए देख नहीं सके और यह भी कसम खा कि तू और भाभी यह बात जीते-जी किसी को भी नहीं बताओगे । किसी को सेवा का महत्त्व समझाने के चक्कर में भी उदाहरण तक नहीं दोगे राजस्थान के पंचायत मंत्री अमीन की तरह ।

तभी पत्नी अंदर से निकल आई, कहने लगी- देवर जी, तुम तो राष्ट्रपति बनो । बर्तनों का क्या है देर-सबेर हम ही माँज लेंगे ।

१०-२-२०११


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

2 comments:

  1. बसंत पंचमी के दिन तो लोग स्‍नान कर ही लेते हैं, चाहे सर्दी भर नहीं करें। खैर आप तो इस दिन भी नहीं नहाए! तोताराम ने ठीक किया, नहीं तो बेकार में ही फंस जाता।

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