Feb 17, 2011

सौंदर्य के शत्रु


आज तोताराम आया तो खासा नाराज था । कारण पूछा तो कहने लगा- मास्टर इन आयकर वालों का दिमाग खराब हो गया है या फिर ये महानिर्दय हैं । अब देख, इनकम-टेक्स का छापा भी मार रहे हैं तो कहाँ ? बेचारी दो मासूम कन्याओं के यहाँ । एक के यहाँ तो चलो एक मर्द सहायक मित्र निकल आया वरना हो सकता है कि इनमें से कोई कुछ उठा भी ले जाता तो बेचारी बालिका क्या कर लेती ?

हमने कहा- बंधु, यह तो कानून का काम है । चलता रहता है । सब हमारी-तुम्हारी तरह नौकरीपेशा तो हैं नहीं कि प्रिंसिपल तनख्वाह देने से पहले की टेक्स काट ले । इन फिल्म वालों का क्या पता कितना कमाते हैं और कितना टेक्स देते हैं ? सो समय-समय पर सँभालते तो रहना ही पड़ता है ।

तोताराम कहने लगा- अरे, सँभालना ही है तो नेताओं के यहाँ सँभालो ना ? हजारों करोड़ में खेलते हैं । बड़े-बड़े सेठों के यहाँ सँभालो जो शादियों में सैंकडों करोड़ खर्च कर देते हैं । हजारों करोड़ के मकान बनवाते हैं, ‘दुनिया को मुट्ठी’ में किए बैठे हैं ।

हमने कहा- उनको भी सँभालते ही हैं । लालू को बीस बरस से खँगाल रहे हैं कि नहीं, अब तक जयललिता की साड़ियाँ गिन ही रहे हैं, अभी मायावती को कौन सा बरी कर दिया ? अब यह बात और है कि कुछ निकल ही नहीं रहा है । ऐसे ही तो किसी को सजा नहीं दी जा सकती ना ? और फिर इन हीरो-हीरोइनों की कमाई का क्या ठिकाना ? कहते हैं शादी, न्यू ईयर की पार्टी में एक रात के एक-दो करोड़ लेते हैं ।

कहने लगा- तो क्या कोई ऐसे ही दे देता है ? तू यहाँ आराम से बैठा बातें बना रहा है । ठुमके लगाते-लगाते बेचारियों की कमर टूट जाती है । तू सर्दियों में एक-एक हफ्ते नहीं नहाता, एक कुर्ते पायजामे को दस-दस दिन घसीटता है पर इन्हें तो किसी डिजायनर से पकड़े बनवाने पड़ते हैं, एक-एक नाच में दस-दस ड्रेसें बदलनी पड़ती हैं । एक कार्यक्रम में जाने से पहले लाखों रुपए खर्च कर पूरा दिन मेकअप करवाना पड़ता है ।

हमने कहा- यह सारा खर्चा काटकर भी तो बहुत बच जाता होगा ? मजे ही मजे हैं इनके ।

तोताराम चिढ़ गया- क्या ख़ाक मजे हैं । न ढंग से खा सकती हैं, न ढंग से पहन सकती हैं । तेरी तरह दिन उगते ही दो रोटियाँ नहीं खा जातीं । जरा सा शहद, नींबू पानी और ब्रेड का एक टुकड़ा । वजन बढ़ने का डर रहता है । जीरो साइज बना कर रखना पड़ता है । और कपड़ों का भी क्या सुख है । कैसी भी सर्दी हो, बेचारी पूरे कपड़े भी नहीं पहन सकतीं । प्रायः एक कंधा तो खुला ही रहता है और यदि कार्यक्रम वाला टॉप लेस की फरमाइश कर दे तो फिर दोनों कंधे भी खुले रखने पड़ते हैं । और यदि कहानी की माँग हो तो सारे कपड़े भी उतारने पड़ते हैं । और फिर इनकी कौनसी तेरी तरह पेंशन होती है । बुढ़ापे की भी फ़िक्र करनी पड़ती है । इन्हें कौन सरकार वृद्धावस्था पेंशन देती है । नेताओं का क्या वे तो एक दिन भी सांसद रह जाते हैं तो ज़िंदगी भर पेंशन लेते हैं । और फिर शादी के लिए भी तो दहेज इन्हें खुद को ही जुटाना पड़ता है ।

मैं तो कहता हूँ कि सरकार इन पर छापे न मारे बल्कि उन लोगों से कलेक्ट करके लाख दो लाख रुपया महीना इन्हें दे जो मुफ्त में ही तेरी तरह इनकी फोटो देखकर मजे ले रहे हैं और जो अखबार वाले इनके फोटो छाप कर अपनी बिक्री बढ़ा रहे हैं । तूने भी तो इनकी फोटो देखी होंगीं ?

हमने कहा- तो ले भाई, आज के तो ये दो रुपए पकड़ । आगे फोटो देखेंगे तो चुकाते रहेंगे ।

२७-१-२०११

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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