Feb 13, 2011

लिखे कोई, पढ़े कोई - संयुक्त राष्ट्र संघ में विदेश मंत्री कृष्णा


आज अखबार खोला तो पहले ही पेज पर छपा था- संयुक्त राष्ट्र संघ में विदेश मंत्री कृष्णा पुर्तगाल वाले का भाषण पढ़ने लगे और पूरे तीन मिनट तक पढ़ते रहे । जब उनके सहयोगी सूरी ने याद दिलाया तो फिर ठीक किया । जैसे ही तोताराम आया तो हमने उससे कहा- देख ली अपने रहनुमाओं की काबिलियत ? पा लिया मौलिकता का परिचय ?

तोताराम जोर से हँसा और बोला- तुझे यह भ्रम हुआ ही कैसे कि नेता मौलिक होते हैं ? सब किसी और का ही लिखा पढ़ते हैं । पहले भाजपा वाले सोनिया जी का मज़ाक उड़ाया करते थे कि वे लिखा हुआ भाषण पढती हैं । बाद में पता लगा कि अडवाणी जी भी किसी कुलकर्णी जी का लिखा भाषण पढ़ते हैं । नेताओं को रोजाना इतने भाषण देने होते हैं, इतने सन्देश भेजने होते हैं तो उनके पास कहाँ तो इतना ज्ञान है और कहाँ इतना समय । ये सब काम तो नीचे वाले पी.ए., शी.ए. करते रहते हैं । वे तो दस्तखत करते हैं और कभी कागज ज्यादा हुए तो दस्तखत भी स्केन किए हुए ही छाप दिए जाते हैं । नोटों पर क्या वास्वव में रिज़र्व बैंक का गवर्नर साइन करता है ? जब विधान सभा या लोकसभा के सत्र में राज्यपाल या राष्ट्रपति भाषण पढ़ते हैं तो वह सत्ताधारी पार्टी की तरफ से लिखा जाता है । नेताओं के असली भाषण और विचार तो वे होते हैं जो किसी स्टिंग ऑपरेशन में टेप किए जाते हैं ।

और फिर मान ले कृष्णा जी ने पुर्तगाल वाले का भाषण पढ़ भी दिया तो क्या हो गया ? वैसे यदि वे अपना लिखा भाषण भी पढ़ते तो क्या फाड़ कर एक के दो कर देते । होगा तो वही जो पाकिस्तान, अमरीका और चीन चाहेंगे । हाँ, तुम्हारी यह बात मानी जा सकती है कि ध्यान रखना चाहिए । मगर भैया, बड़ी जगह हो, बड़े लोगों के बीच में पढ़ना या बोलना हो तो आदमी उक-चुक हो ही जाता है । पहली बार जब एक पत्नी पति को पत्र लिखती है तो आपके ‘चरणों की दासी’ की जगह आपके ‘प्राणों की प्यासी’ लिख जाती है । एक बार एक महिला तलाक के मामले में कोर्ट में हाजिर हुई तो घबराहट में कह गई- जज, साहब आप मुझे तलाक दे दीजिए । जज साहब कहने लगे- यह नहीं हो सकता । तलाक तो वही दे सकता है जिसने आप से शादी की है । मगर आप घबराइए नहीं, शांत भाव से अपनी बात कहिए । तो बोली- क्या बताऊँ जज साहब, यह मेरा पहला-पहला तलाक है ना ।

जिस आदमी के पास अपने विचार होते हैं तो उसे किसी का लिखा हुआ भाषण पढ़ने की ज़रूरत नहीं पड़ती । गाँधी जी कभी लिखा हुआ भाषण नहीं पढ़ते थे, नेहरू जी भी एक्सटेम्पोर ही बोलते थे । अटलजी जब हिन्दी में बोलते थे तो अपना लिखा हुआ बोलते थे मगर जब अंग्रेजी में बोलना होता तो किसी और का लिखा ही पढ़ते थे । अपने देश का बजट-भाषण भी तुम समझते हो कि वित्तमंत्री का लिखा हुआ होता है ? वह भी यहाँ के उद्योगपतियों और वर्ल्ड बैंक वालों का लिखा हुआ होता है । फिल्म में तुम जिस डायलाग को सुन कर गदगद हो जाते हो, जिस गीत पर तुम झूम जाते हो उसे न तो हीरो गाता है, न कम्पोज करता है और न ही उसका लिखा होता है । वह तो प्ले बैक सिंगर, गीतकार और संगीतकार की कला का कमाल है । और श्रेय मुफ्त में ले जाता है हीरो ।

आजकल कई अखबारों के मालिक दार्शनिक और वेदों के विद्वान के रूप में छाये हुए हैं, तो वे भी किसी और के बल पर ही । लिखता अखबार का कोई कर्मचारी है और छपता है मालिक के नाम से । गुजरात के एक प्रसिद्ध संगीत निर्देशक थे । दूर-दूर से कई गायक उनके पास चांस की आशा में आते थे और वे उनकी धुनें चुराकर फिल्मों में पेल देते थे । कई संपादक नए लेखकों की रचनाएँ अपने नाम से छाप देते हैं । बेचारा छोटा लेखक कहाँ गुहार लगाने जाए । मन मार कर रह जाता है । अरे, अमरीका के राष्ट्रपति का भी शपथ-ग्रहण का भाषण कोई और ही लिखता है तथा राष्ट्रपति को कई-कई बार उसकी रिहर्सल करवाई जाती । जब वह स्टेज पर बोल रहा होता हो तो भले ही कागज दिखाई न दे मगर वह एक टेलेप्रोम्प्टर ही पढ़ रहा होता है । हम इसे उस वक्ता की योग्यता मान कर प्रभावित हो जाते हैं । और टेलेप्रोम्प्टर के खराब होने पर बौखला जाता है

हमने कहा- तोताराम, तो फिर नेताओं के असली विचार और भाषा-शैली क्या होती है ?

तोताराम ने कहा- एक बार एक राजा के दरबार में एक विद्वान आया जो कई भाषाएँ बोलता था । राजा जानना चाहता था कि इसकी मातृभाषा कौन सी है ? कोई भी पता नहीं लगा पाया । तो एक चतुर मंत्री ने रात को सोते हुए विद्वान पर अचानक पानी की एक बाल्टी डाल दी । विद्वान गुस्से में चिल्ला उठा- कौन है बे, साले ?

मंत्री ने कहा- महाराज, इसकी मातृभाषा हिन्दी है ।

१३-२-२०११

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

3 comments:

  1. ये हमारे देश के काबिल विदेश मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री है. इनकी काबिलियत केवल इतनी ही है कि ये कांग्रेस के वफादार पिट्ठू है.
    शुक्र है इस घटना के बाद विदेश मंत्रालय ने इस बात पर अपनी पीठ नहीं थपथपाई की विदेश मंत्री इतने विदेशी हो गए है कि वे भाषा के स्तर से काफी ऊपर उठ गए है. उन्हें अंग्रेजी के साथ साथ पुर्तगाली, इतालवी, फ्रेंच इत्यादि भी आती है. नहीं आती तो शायद हिंदी ही नहीं आती...

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  2. जैसा राजा/रानी
    वैसी प्रजा।

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