Sep 11, 2015

शराब, साहित्य और शौर्य

  शराब, साहित्य और शौर्य 

इस शीर्षक में केवल समास ही नहीं एक सामासिक संस्कृति भी झलकती है | शराब विभिन्न विचारधाराओं, जातियों, समाजों,धर्मों आदि के भेद को समाप्त कर देती है |भले ही दो देश या पड़ोसी या चार भले आदमी साथ मिल बैठ नहीं सकते लेकिन चार शराबी सारे भेदों के बावजूद शाम को मिल बैठ ही लेते हैं |और जब थोड़ा शुरूर आ जाता है तो, न तो अपने गिलास का ध्यान रहता है और न ही अपने पराए का ख्याल |
जीवित तो जीवित, निर्जीवों तक के साथ अन्तरंग रिश्ते स्थापित कर लेते हैं |

 हजार नौकरी लेकिन मरने-मारने की भी क्या नौकरी ? कैसे कोई शराब के बिना किसी को मार सकता है ? तभी फिल्मों में जब कोई किसी की हत्या करने जाता है तो पहले एक बोतल बिना पानी के चढ़ाता है  | हमारे एक कवि मित्र हैं जो अपनी दो-चार कविताओं के बल पर भारत क्या विदेश-यात्रा तक कर आए हैं |भले ही लोग उनकी उम्र का लिहाज़ करके जूते नहीं फेंकते लेकिन कवि महोदय जानते हैं कि वे एक ही कविता पिछले पचास वर्षों से सुना-सुनकर श्रोताओं पर अत्याचार कर रहे हैं |पहले वे सूफी थे लेकिन एक बार उनसे मिलने गए |उस समय में वे मंच पर उतरने की तैयारी कर रहे थे अर्थात एक अन्य कवि के साथ एक ही गिलास में लगे हुए थे |हम यह पहली बार देख रहे थे |पूछने पर बोले- क्या करूँ बन्धु, अब डर लगने लगा है कि कहीं दर्शक हूट न कर दें सो थोड़ा साहस जुटा रहा हूँ |

अब विश्व हिंदी सम्मलेन से एक दिन पहले पूर्व सेना प्रमुख और वर्तमान मंत्री जी ने कह दिया कि पहले साहित्यकार सिर्फ खाने के लिए आते थे और शराब पीने के बाद ही काम के बारे में बातें करते थे | हमारे हिसाब से पहले शराब और फिर खाना होना चाहिए अन्यथा खाना खाने के बाद शराब पीने से उल्टी होने की संभावना रहती है | साहित्यकार खाने और शराब के बाद कम से कम बातें तो करते हैं |यह  बात और है कि बात क्या होती है यह न तो खुद उन्हें पता होता है , न सुनने वालों को और न ही उन्हें बुलाने वालों को |  ये बेचारे साहित्यकार कम से कम उस सलाही से तो ठीक ही हैं जो बिना बुलाए ओबामा द्वारा दी गई पार्टी में आया और शराब पीकर चला गया |


अरे भाई, कैसे भी हैं , कैसे भी करके घुसे हैं , कहने को तो तुम्हारे मेहमान ही हैं | होना तो यह चाहिए था कि प्रेम से ठहराते और जाते समय सब को एक-एक क्रेट व्हिस्की का दे देते |सच मानिए, ज़िन्दगी भर सारे देश में आपके गुण गाते फिरते |एक ने तो अपनी पीड़ा भी सुना दी कि लेखकों तो सस्ते किस्म की दारू मिलती है | वैसे यदि इन सम्मेलनों से ही कुछ होता तो अब तक पता नहीं विश्व शांति, पर्यावरण सुधार, हिंदी का विकास आदि न जाने क्या-क्या हो चुका होता |ठीक है, काम निबटा |अब इसके बिल बनाएँ और अगले सम्मेलन के लिए बजट आवंटन जुगाड़ें |

वैसे यदि शराब इतनी ही बुरी है तो क्यों राष्ट्राध्यक्षों के भोज में परोसी जाती है ? इस्लाम और सिक्ख धर्म में इसे हराम माना जाता है फिर भी सेना में समान भाव सबको दी जाती है और सेवन की जाती है | यदि इतनी ही बुरी है तो इसे बंद क्यों नहीं कर दिया जाता ? लेकिन बंद कैसे करें,कमाई का जरिया जो है |बिहार के एक जिले सहरसा में ही एक अरब रुपए का राजस्व मिलता है | अब जोड़ लो सारे देश का | 

वैसे हमारा मानना है कि सबसे बड़ा नशा तो धर्म और संस्कृति  का है जिसके बल पर सारी नेतागीरी हो रही है और चुनाव जीते जा रहे हैं |लगता कुछ नहीं, करना कुछ नहीं; बस अहंकार और गर्व जागृत कर दो और लोग बावले हो जाएंगे | बस, हो गया काम |

No comments:

Post a Comment