धोती : व्यापक विनाश का हथियार
तमिलनाडु में क्रिकेट क्लब में आयोजित एक समारोह में उच्च न्यायालय के एक जज हरिपरंथम को धोती पहने हुए होने के कारण अन्दर नहीं घुसने दिया गया | इस खबर को पढ़कर हमारा तो सिर भन्ना गया | तोताराम और हमारी दौड़ तो मस्जिद तक भी नहीं है | तो दिल्ली और इंग्लैण्ड तक कहाँ होगी ? एक दूसरे से दुःख-दर्द की बातें कर लेते हैं, बस |
आते ही हमने अखबार उसके सामने रख दिया |
बोला- मुझे पता है | दुःखी होने की आवश्यकता नहीं है | सबके अपने-अपने नियम हैं |इसी में संतोष कर ले कि मुख्य-द्वार पर यह नहीं लिखवाया -
'कुत्तों और धोती पहनने वालों का प्रवेश वर्जित है' |
अमरीका जाने वाले अडवाणी, जोर्ज फर्नान्डीज़, अब्दुल कलाम ही क्या, शंकराचार्य तक की तलाशी ली जाती है, भारतीय राजनयिक की पगड़ी और केविटी चेक हो सकती है, लेकिन पोप और इंग्लैण्ड की महारानी की कोई तलाशी नहीं ले सकता | कोई गोरा अमरीकी पिस्टल और जिंदा कारतूस लेकर प्लेन में चढ़ जाए तो उसे उसकी भूल मानकर क्षमा कर दिया जाता है |हम मंदिर या किसी की समाधि या मज़ार पर जूते उतार कर जाते हैं लेकिन बुश के सुरक्षा दस्ते के कुत्ते सुरक्षा कारणों से गाँधी की समाधि पर चढ़ सकते हैं | अपने-अपने नियम हैं | अब यदि क्रिकेट क्लब वाले धोती नामक इस व्यापक विनाश के हथियार के साथ अन्दर नहीं जाने देते तो यह उनका व्यक्तिगत मामला है | वैसे भी जो जींस न पहने, तिरंगे पर बोतल रखकर दारु न पिए, अधनंगी लड़कियों के साथ डांस न करे, जो मैच फिक्सिंग या सट्टे में शामिल न हो वह क्लब में जाए ही क्यों, दूसरों का मज़ा बिगाड़ने के लिए ?
हमने कहा- लेकिन वहाँ कोई क्रिकेट का कार्यक्रम नहीं था | वहाँ तो किसी पुस्तक का विमोचन होना था | और फिर यह बता, धोती कोई आर.डी.एक्स. है या ए.के. ४७ है जिससे किसी को खतरा हो सकता है ?
बोला- इसे तू क्या समझेगा ? इसे क्रिकेट की जन्मभूमि ब्रिटेन ही समझ सकता है या फिर उसके मानस-पुत्र | और फिर जब धोती आती है तो उसके साथ और भी बहुत सी खतरनाक चीजें आ जाती हैं जैसे- टोपी, पगड़ी, देसी जूते, खादी, मातृभाषा, भारतीय संस्कृति, स्वदेशी, स्वाभिमान आदि | धोती पहनने वाले तिलक, गोखले, लाला लाजपतराय, गाँधी, राजेंद्र प्रसाद, पटेल आदि ने ही तो अंग्रेज बहादुर का जीना हराम कर दिया था | जिन्ना जैसों से उन्हें कभी कोई परेशानी नहीं रही |और फिर इन धोती वालों की देखा-देखी एशिया और अफ्रीका के देशों को भी स्वाधीनता की बीमारी लग गई और देखते ही देखते योरप के सारे उपनिवेश हाथ से निकल गए |
आज भी धोती वाले अन्ना जैसे लोग ही उपभोक्तावाद, बाजारवाद और आर्थिक उपनिवेशवाद के लिए खतरा बने हुए हैं | इन्हें विज्ञापन और विलासिता के साधनों से उल्लू नहीं बनाया जा सकता | इस प्रकार के लोगों की क्लब और माल्स में कोई रुचि नहीं होती | ये हजारों रुपए खर्च करके न होटल में जाना पसंद करते हैं और न ही क्रिकेट मैच देखना |ये हर समय मितव्ययिता के बारे में सोचते हैं | इनके भरोसे अर्थव्यवस्था का विकास नहीं किया जा सकता | धोती एक वस्त्र नहीं, एक मनोवृत्ति का प्रतीक है जो भारत को विकसित बनाने की राह में सबसे बड़ी बाधा है |
हमने कहा-तोताराम, हम तो तुम्हारे तर्क से कनफ्यूज़ हो गए हैं कि अच्छे दिन धोती पहनकर आएँगे या भारत की धोती उतरवाकर ?
तमिलनाडु में क्रिकेट क्लब में आयोजित एक समारोह में उच्च न्यायालय के एक जज हरिपरंथम को धोती पहने हुए होने के कारण अन्दर नहीं घुसने दिया गया | इस खबर को पढ़कर हमारा तो सिर भन्ना गया | तोताराम और हमारी दौड़ तो मस्जिद तक भी नहीं है | तो दिल्ली और इंग्लैण्ड तक कहाँ होगी ? एक दूसरे से दुःख-दर्द की बातें कर लेते हैं, बस |
आते ही हमने अखबार उसके सामने रख दिया |
बोला- मुझे पता है | दुःखी होने की आवश्यकता नहीं है | सबके अपने-अपने नियम हैं |इसी में संतोष कर ले कि मुख्य-द्वार पर यह नहीं लिखवाया -
'कुत्तों और धोती पहनने वालों का प्रवेश वर्जित है' |
अमरीका जाने वाले अडवाणी, जोर्ज फर्नान्डीज़, अब्दुल कलाम ही क्या, शंकराचार्य तक की तलाशी ली जाती है, भारतीय राजनयिक की पगड़ी और केविटी चेक हो सकती है, लेकिन पोप और इंग्लैण्ड की महारानी की कोई तलाशी नहीं ले सकता | कोई गोरा अमरीकी पिस्टल और जिंदा कारतूस लेकर प्लेन में चढ़ जाए तो उसे उसकी भूल मानकर क्षमा कर दिया जाता है |हम मंदिर या किसी की समाधि या मज़ार पर जूते उतार कर जाते हैं लेकिन बुश के सुरक्षा दस्ते के कुत्ते सुरक्षा कारणों से गाँधी की समाधि पर चढ़ सकते हैं | अपने-अपने नियम हैं | अब यदि क्रिकेट क्लब वाले धोती नामक इस व्यापक विनाश के हथियार के साथ अन्दर नहीं जाने देते तो यह उनका व्यक्तिगत मामला है | वैसे भी जो जींस न पहने, तिरंगे पर बोतल रखकर दारु न पिए, अधनंगी लड़कियों के साथ डांस न करे, जो मैच फिक्सिंग या सट्टे में शामिल न हो वह क्लब में जाए ही क्यों, दूसरों का मज़ा बिगाड़ने के लिए ?
हमने कहा- लेकिन वहाँ कोई क्रिकेट का कार्यक्रम नहीं था | वहाँ तो किसी पुस्तक का विमोचन होना था | और फिर यह बता, धोती कोई आर.डी.एक्स. है या ए.के. ४७ है जिससे किसी को खतरा हो सकता है ?
बोला- इसे तू क्या समझेगा ? इसे क्रिकेट की जन्मभूमि ब्रिटेन ही समझ सकता है या फिर उसके मानस-पुत्र | और फिर जब धोती आती है तो उसके साथ और भी बहुत सी खतरनाक चीजें आ जाती हैं जैसे- टोपी, पगड़ी, देसी जूते, खादी, मातृभाषा, भारतीय संस्कृति, स्वदेशी, स्वाभिमान आदि | धोती पहनने वाले तिलक, गोखले, लाला लाजपतराय, गाँधी, राजेंद्र प्रसाद, पटेल आदि ने ही तो अंग्रेज बहादुर का जीना हराम कर दिया था | जिन्ना जैसों से उन्हें कभी कोई परेशानी नहीं रही |और फिर इन धोती वालों की देखा-देखी एशिया और अफ्रीका के देशों को भी स्वाधीनता की बीमारी लग गई और देखते ही देखते योरप के सारे उपनिवेश हाथ से निकल गए |
आज भी धोती वाले अन्ना जैसे लोग ही उपभोक्तावाद, बाजारवाद और आर्थिक उपनिवेशवाद के लिए खतरा बने हुए हैं | इन्हें विज्ञापन और विलासिता के साधनों से उल्लू नहीं बनाया जा सकता | इस प्रकार के लोगों की क्लब और माल्स में कोई रुचि नहीं होती | ये हजारों रुपए खर्च करके न होटल में जाना पसंद करते हैं और न ही क्रिकेट मैच देखना |ये हर समय मितव्ययिता के बारे में सोचते हैं | इनके भरोसे अर्थव्यवस्था का विकास नहीं किया जा सकता | धोती एक वस्त्र नहीं, एक मनोवृत्ति का प्रतीक है जो भारत को विकसित बनाने की राह में सबसे बड़ी बाधा है |
हमने कहा-तोताराम, हम तो तुम्हारे तर्क से कनफ्यूज़ हो गए हैं कि अच्छे दिन धोती पहनकर आएँगे या भारत की धोती उतरवाकर ?
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