राजनीति की अक्षय ऊर्जा
यह है लाला का दिमाग |कचरे के करोड़पति बनने की कला |अब तक लोग दिल्ली में जगह-जगह कचरे के पहाड़ इकट्ठे करते रहे और लोग बदबू में सड़ते रहे |सफाई के नाम पर बिल बनाते रहे और दिल्ली के गाजीपुर जैसे कई इलाकों में कूड़े के पहाड़ खड़े कर दिए | लेकिन कहते हैं, बारह बरस में तो घूरे के भी भाग बदलते हैं |सो अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली के घूरे के भाग बदलने का इंतजाम कर लिया है |लाला, इंजीनीयर और फिर ईमानदार |यह तो होना ही था |
जैसे ही तोताराम आया हमने उसे लपेटा- देखा छोरे का कमाल ! लोगों ने नए-नए कपड़े पहनकर साफ़ जगह पर झाड़ू लगाते हुए फोटो खिंचवाकर 'स्वच्छाग्रह' के नाम पर गाँधी के 'सत्याग्रह' को पीछे धकेल दिया |अब इतिहास के विद्यार्थी कन्फ्यूज होते रहो कि देश को आज़ादी मोदी जी के 'स्वच्छाग्रह' से मिली या गाँधी जी के 'सत्याग्रह' से ? तरह-तरह के टेक्स लगाकर अपना विज्ञापन किया और सफाई के नाम पर जीरो |वही सड़ती हुई दिल्ली और अकड़ते हुए उपराज्यपाल |न कुछ किया और न ही किसीको कुछ करने दिया |खींचते रहे केंद्र सरकार के इशारे पर छोरे की टाँग |
बोला- बातचीत का मतलब किसी की सुनना भी होता है |केवल अपनी-अपनी ही दले जाना बातचीत नहीं, 'मन की बात' होती है |मैं एक चाय में ऐसा इकतरफा एकालाप वाला 'आस्था चेनल' नहीं सुन सकता |
अब चुप हो और ध्यान से सुन | जिस कचरे से अब बहुत सा पानी,बिजली और ईंधन बनेगा वह कचरा यह तुम्हारा केजरीवाल लाया कहाँ से ? यह उससे वर्षों पहले जनता की सेवा करते आ रहे चौकीदारों की सजगता का कमाल है जिन्होंने न कूड़ा चुराया और न किसी को चुराने दिया, न खुद उठाया और न ही किसी को उठाने दिया, न खुद खाया न किसी को खाने दिया |अब उसीसे कमाई करके केजरीवाल मुफ्त में श्रेय ले रहा है |इसे कहते हैं पूर्वजों की कमाई पर पुण्य कमाना |और फिर जो कहावत तूने शुरू में कही थी उसका क्या मतलब है ? यदि कुछ न करो तो भी सहेज कर रखा गया घूरा बारह बरस में कुछ न कुछ दे ही जाता है |इसमें केजरीवाल का क्या कमाल है ?
हमने कहा- तोताराम, आज हमारा मन तेरे चरण छूने को कर रहा है |इतना सकारात्मक पलटीमार हमने आज तक नहीं देखा-सुना |रपट पड़े तो 'हर-हर गंगे' जपने लगे |
बोला- ज़र्रानवाज़ी के लिए धन्यवाद लेकिन मैं ऐसा धृष्ट भी नहीं हूँ कि बुजुर्गों के हाथ जोड़ने को भी अनदेखा कर दूँ |चल, इस उत्साहवर्द्धन के लिए मैं ही तेरे चरण छू लेता हूँ |
ऐसा कह कर तोताराम ने हमारे चरण छुए |
हमने कहा- तोताराम, जब कचरे से भी कुछ न कुछ उपयोगी बन सकता है तो हम पिछले हजारों वर्षों में हुए दो-चार कामों के साथ-साथ हो चुके बहुत से युद्धों, उतार-चढ़ावों, मन मुटावों, दुष्टताओं, शोषण, अत्याचारों और बुरे कामों से भरे इतिहास के कचरे से क्या कुछ बेहतर नहीं बना सकते ? क्या हम इस अनुभव को ऊर्जा में नहीं बदल सकते ? क्या कटुताओं के कचरे को प्रकाश में बदलकर घरों को रोशन नहीं कर सकते ? क्या इसके ईंधन को रोटी सेंकने वाली आग के रूप में काम में नहीं ले सकते ?
बोला- तुम्हारा कहना ठीक है लेकिन फिर सत्ता-सुख का क्या होगा ? आज तक चतुर और दुष्ट लोगों ने इतिहास के इस कचरे को कालिख, कुतर्क और कटुता के काम में ही लिया है |यह कचरा ही इनकी अक्षय राजनीतिक ऊर्जा है |ये इसे नष्ट नहीं होने देंगे बल्कि नए-नए मुद्दों और तर्कों से इसे जीवन के हर क्षेत्र में ले जाएँगे | रंग, पशु-पक्षी, कला, साहित्य, धर्म, खान-पान, पहनावा, बोली-भाषा आदि सबके नाम पर भेदभाव फ़ैलाने के लिए |और यह हाल अपना ही नहीं, दुनिया के सभी धर्मों-समाजों के तथाकथित संतों-पीरों-औलियाओं और उच्च चरित्र के नेताओं का है |
यह कचरा ही इन सबकी अक्षय ऊर्जा है |
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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