Aug 1, 2018

जगद् गुरु जुगाडानंद

जगद् गुरु जुगाड़ानंद

गुरु और आनंद का घनिष्ठ संबंध है |बिना कुछ किए, केवल बातों के बल पर धन, यश, पद मिल जाए तो फिर आनन्द तो होना ही है |तो ऐसे ही हैं जगद् गुरु |अपना कुछ नहीं लेकिन जुगाड़ हर हालत में बिठा ही लेते हैं |ज्ञान-विज्ञान, इहलोक-परलोक क्या नहीं है इनके वश में ? जिस आविष्कार के लिए लोग बरसों का जीवन, आराम और साधन खपा देते हैं उन्हें ये किसी पवित्र पुस्तक में सरलता से ढूँढ़ लेते हैं |अब ऐसे गुरु से कोई कैसे निबटे ?

आज ही खबर पढ़ी कि जगद् गुरु के चमत्कारी सेवक वायु सेना में लड़ाकू विमानों की कमी पूरी करने के लिए फ़्रांस, ब्रिटेन, ओमान आदि से पुराने विमान खरीदेंगे और उनके पुर्जों और खोखों से नए विमान सुधारेंगे |

हम तोताराम के, तत्काल ही विश्व शक्ति बन जाने को तत्पर, झूठे गर्व की हवा निकालने के लिए तैयार होकर बैठे थे कि खुद उसने ही पहला वार कर दिया | ओफेंस इज द बेस्ट डिफेन्स |जैसे किआरोप लगने से पहले ही किसी दूरदर्शी छुटभैय्ये नेता ने कह दिया- स्वामी अग्निवेश ने चर्चित होने के लिए खुद अपने पर हमला करवा लिया |हालाँकि यह वैसे ही एक बेहूदा तर्क है जैसे कोई कहे कि मोदी जी ने हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण करने के लिए गोधरा में ट्रेन का डिब्बा जलवा दिया | 

बोला- देखा, हमारा कमाल 'कम दाम : बढ़िया काम'  |तुम लोग कहते हो राफाल सौदे में तीन गुना रेट देकर भ्रष्टाचार किया है | अब देख, कबाड़ के भाव ले आए ना माल |अब अपने यहीं कौड़ियों के भाव अरबों रुपए के प्लेन बना लेंगे | 

हमने कहा- विकसित देशों में पुराने कबाड़ को रखने की जगह नहीं है |यदि तुम जैसे जगद् गुरु यह कबाड़ न उठाएँ तो उनके लिए उसे ठिकाने लगाना एक बड़ी आफत हो जाए |वह तो ऐसे ही समझदार ग्राहक ढूँढ़ते हैं कि फिंकवाने का खर्च न हो बल्कि दो पैसे की कमाई भी हो जाए |तभी तो जब-तब तुम्हारी प्रशंसा कर देते हैं |तुम्हारे गले मिलने को भी झेल जाते हैं |

अपने यहाँ पुराने अखबार और कबाड़ बिकते हैं जब कि अमरीका में लकड़ी, प्लास्टिक,अखबार, पुस्तकों, टीवी का कबाड़ उठवाने के पैसे देने पड़ते हैं |इसलिए वहाँ के लोग दान के नाम पर यह सामान तीसरी दुनिया के देशों में भिजवाते रहते हैं |हालाँकि वहाँ भी कुछ लोग ऐसे गरीब हैं जो ऐसे सामान का जोड़-गाँठ कर उपयोग कर लेते हैं |

बोला- हमारे तो शास्त्रों में कहा गया है- पड्यो अपावन ठौर में कंचन तजे न कोय |तो इसमें क्या बुराई है ? 

हमने कहा- ठीक है, कबाड़ का धंधा करने वाले अरबों कमा रहे हैं |इसे तोड़ने वाले कुछ हजार मजदूरों को दो जून को रोटी मिल जाती है लेकिन क्या यह कोई काम है ? क्या इससे खतरनाक प्रदूषण नहीं फैलता ? क्या इस काम में मजदूरों की ज़िन्दगी नहीं गल रही ?  क्या यही मेक इण्डिया है ? क्या यही 'वह' जो दशकों में नहीं हुआ और चार सालों में हो गया ?

बोला- लेकिन पहले भी एक मंत्री जी हुए हैं जो हालैंड से गोबर आयात का समझौता कर आए थे ? जबकि हमारे यहाँ गोबर की क्या कमी है ? हमारे यहाँ तो गोबर दिमागों तक ही नहीं गणेश जी तक पहुँचा हुआ है |और अब तो 'गोबर धन योजना' भी शुरू हो गई है |

हमने कहा- बन्धु, शास्त्रों का थोड़ा और मंथन करो |हो सकता है गोबर से आणविक ईंधन भी निकल आए |



पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

No comments:

Post a Comment