Aug 23, 2018

अठारह अगस्त का महत्त्व

 अठारह अगस्त का महत्त्व 

कल हमारा जन्म दिन था |सबका ही कोई न कोई जन्मदिन होता है |हर दिन कोई न कोई जन्म लेता है |एक नहीं, करोड़ों जीव जन्म लेते हैं और मरते हैं |लेकिन आदमी है कि अपने से परे न देखता है न सोचता है |यदि थोड़ी देर के लिए आत्मरति से मुक्ति प्राप्त कर ले तो समस्त तत्त्व ज्ञान एक क्षण में ही हो जाता है | समस्त ज्ञात-अज्ञात जानकारी के अनुसार जितना बड़ा ब्रह्माण्ड है उसमें पृथ्वी का अस्तित्तव ही इतना सूक्ष्म और लगभग नगण्य है तो उस पृथ्वी पर पैदा होने वाले एक क्षणभंगुर मनुष्य का अस्तित्त्व क्या मायने रखता है ?लेकिन मनुष्य है कि पता नहीं किस भ्रम में पड़ा जाने कहाँ-कहाँ सेल्फी लेता फिरता है |अपने आप को समाचारों, स्मारकों, मीडिया और साक्षात्कारों में टाँगता फिरता है |तभी कवि कहता है- 
पानी केरा बुदबुदा अस मानुस की जात |

लीजिए, हम तो दार्शनिक हुए जा रहे हैं | सर्विस रिकार्ड में हमारा जन्मदिन ५ जुलाई है क्योंकि आज़ादी से पहले न तो जन्म का कोई प्रमाण-पत्र हुआ करता था और न ही मृत्यु का |सब कुछ परम पिता परमात्मा के हवाले |पाठशाला में प्रवेश के दिन गुरूजी बच्चे को पाँच वर्ष का बना दिया करते थे |इस आधार पर कहा जा सकता है कि हमारा शाला-प्रवेश ५ जुलाई को हुआ था |

वास्तव में हमारा जन्म दिन १८ अगस्त १९४२ ईसवी सन है |भारतीय गणना के हिसाब के श्रावण शुक्ल सप्तमी संवत १९९९ |कुछ विद्वानों के अनुसार कहते हैं इस दिन तुलसीदास जी का जन्म भी हुआ था |जन्म दिन एक होने से हम कोई तुलसीदास तो हो नहीं सकते |और हो भी जाएँ तो आजकल तुलसीदास जी महत्त्व ही क्या रह गया है ? तुलसी के नाम से लोग 'तुलसी ज़र्दा' समझते हैं |

शाम को बेटों, बहुओं और पोते-पोतियों के फोन आए |वैसे उसके बिना भी हमें याद था कि अस्सी साल की उम्र में सवाई होने वाली पेंशन में अभी चार साल दूर है |हमारा फेसबुक अकाउंट भी नहीं है कि  'झूठा ही सही ...'  गाने की तर्ज़ पर कोई बधाई दे देता |

कल तोताराम सुबह नहीं आया |शाम को आया और हमारे मुँह में रसगुल्ला ठूँसते बोला-खा मिठाई |

हमने कहा- धन्यवाद | वैसे हमारे जन्म दिन पर इतना खर्च करने की क्या ज़रूरत थी ?तेरा प्रेम ही हमारे लिए बहुत बड़ी नेमत है |

बोला- तेरे लिए किसने खर्च किया है सौ का नोट ?

अचानक हमें वैसे ही एक हल्का-सा धक्का लगा जैसे जनवरी २०१८ के उपचुनावों में भाजपा को लगा था | फिर भी २०१९ के चुनावों के अतिविश्वास की तरह हिम्मत बाँध कर कहा- तो फिर लगता है यह मिठाई केंद्रीय विद्यालय के रिटायर्ड कर्मचारियों को सातवें पे कमीशन के एरियर की ख़ुशी में है ? 

बोला- पहले तो सातवें पे कमीशन के एरियर के बारे में सरकार वैसे ही खामोश है जैसे मोब लिंचिंग के बारे में मोदी जी | और यदि अब मिल भी गया तो इसमें ख़ुशी जैसा रह ही क्या गया है ? वैसे सुना है सरकार का इरादा २०१६-१७ का एरियर हजम कर जाने का है |

हमने कहा- तो क्या अच्छे दिन आ गए ?

बोला- अच्छे दिन आ गए और लोग उनका मज़ा भी ले रहे हैं |इसलिए इस बात को तो उपलब्धि मानकर प्रसन्न होने का नाटक कर |नहीं तो स्वामी अग्निवेश की तरह तेरा भी अभिनन्दन हो जाएगा |

हमने कहा- तो फिर अब तू ही बता कि इस एक रसगुल्ले का किस भाव से आनंद लें ?  तूने तो हमारी वह हालत कर दी जब किसी राजनीतिक स्वार्थ के लिए सरकारें किसी शोक समाचार को इतना निचोड़ती हैं कि नागरिक सोचने लग जाते हैं कि इससे तो अच्छा तो 'अमुक' की जगह हम ही मर जाते |

बोला- शांत हों आदरणीय | आप तो ऐसे ही छोटे-मोटे समाचारों में खोए रहते हैं |पता होना चाहिए, आज प्रियंका चोपड़ा का अपने से दस साल छोटे अमरीकी गायक निक के साथ 'रोका' हो गया है |यह रसगुल्ला उसी की ख़ुशी में है |

हमने कहा- ठीक है लेकिन मोदी जी के राहुल के लिए 'नामदार' की तरह यह 'दस साल छोटे'  वाला फच्चर बीच में फँसाने का क्या मतलब है ?और इसमें हमारे लिए खुश होने जैसी क्या बात है ?

बोला- सभी महान विवाह ऐसे ही होते हैं जैसे अभिषेक, सचिन दोनों अपनी बीवियों से छोटे हैं |कहते हैं राधा भी कृष्ण से उम्र में बड़ी थी | और तेरे लिए खुश होने की बात यह है कि तू किसी को भी बता सकता है कि तेरा जन्म उस दिन हुआ था जिस दिन प्रियंका का निक के साथ रोका हुआ था |

हमने कहा- तोताराम, ये सब मीडिया और विज्ञापन के खेल हैं अन्यथा भारत का  स्वतंत्रता-दिवस और जेल की हवा खा रहे राम-रहीम का जन्म दिन १५ अगस्त को ही पड़ते हैं |अब, इसे क्या मानें ? स्वाधीनता-दिवस या लम्पटता-दिवस या अंध-श्रद्धा -दिवस  हैं ?  


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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