बीके-बिके, अनबिके
जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- ले सँभाल, एक और रिकार्ड |
बोला- रिकार्ड क्या नई बात है ? यह देश तो है ही रिकार्डों का देश |अब योग-दिवस या बिहार में एक सप्ताह में १५ लाख शौचालय के निर्माण की तरह और कौनसा रिकार्ड बन गया ?
हमने कहा- संसद में कल १० अगस्त को सत्रावसान के दिन पहली बार यह रिकार्ड बना है कि किसी प्रधान मंत्री की टिप्पणी को संसद की कार्यवाही से निकाला गया हो |
बोला- उससे क्या फर्क पड़ता है ? कौन देखता है रिकार्ड ? सामान्य जनता की बात तो छोड़, ९०% माननीय ऐसे हैं जो कभी संसद की लाइब्रेरी के अन्दर नहीं गए होंगे |कैंटीन में बैठे-बैठे की पेंशन के हकदार हो गए |सच्ची टिप्पणी तो वह होती है जो जनता के दिमाग में दर्ज हो जाती है |अब जनता के दिमाग में तो दर्ज हो गया कि मोदी जी ने राज्यसभा के उपाध्यक्ष पद के लिए कांग्रेसी उम्मीदवार 'बी.के. हरिप्रसाद' को 'बिके हरिप्रसाद' कहा |
हमने कहा- देखो तोताराम, मोदी जी कटु व्यंग्य और प्रतिशोध के अप्रतिम और अप्रतिहत योद्धा हैं | वे कभी अपने किसी शत्रु को भूलते नहीं हैं | क्षमा करना तो दूर, वे स्वप्न में भी उसके लिए निर्दय, मारक, घातक और प्राणान्तक बने रहते हैं |अपने अमूल्य समय में से भी वे देश-विदेश, संसद के अन्दर-बाहर कहीं भी नेहरू-गाँधी परिवार और कांग्रेस को नहीं भूलते और उन पर व्यंग्य का कोई अवसर नहीं चूकते |वे अपनी व्यंग्यकार की भूमिका से एकाकार हो गए है | वैसे ही जैसे कोई मंचीय कवि यमराज के फोन को भी कवि सम्मेलन का निमंत्रण समझता है |
बोला- वैसे कीमत ठीक मिले तो बिकाऊ होने में क्या बुराई है ? छुटभैय्ये से लेकर बड़े से बड़े तक कौन बिकाऊ नहीं है ? फिर बिकाऊ तो बिकाऊ होता है जैसे चोर तो चोर होता फिर चाहे वह हजारों करोड़ का चोर हो या मुर्गी-चोर | हालाँकि 'बिकाऊ' असंसदीय शब्द है पर संसद में अब 'संसदीय' जैसा रह क्या गया है ? सच्चे योद्धा के लिए रक्तपात ही उत्सव है, हाहाकार ही उसका आनंद है,अनहद नाद है |
हमने कहा- तोताराम, जो लोग जैसे होते हैं वे हर उस बात को अपने जैसा ही बना देते हैं |बिकना और खरीदना क्या कोई बुरी टर्म है ? मीरा कहती है-
माई री, मैं तो लियो गोविन्दो मोल |
कोई कहे मुहँगो, कोई कहे सस्तो, लियो री तराजू तोल |
कोई कहे छाने, कोई कहे चौड़े, लियो री बजंता ढोल |
और मीरा तो बिकने में भी संकोच नहीं करती थी, कहती है-
मैं तो गिरधर हाथ बिकानी, लोग कहें बिगड़ी |
सत्यवादी हरिश्चंद्र काशी में बिकते ही नहीं बल्कि सरेआम खुद को नीलाम करते हैं |
और आज़ादी के दीवाने 'बिस्मिल' तो खुले आम सर-फरोशी का धंधा करते थे |
बोला-मास्टर, किनकी किनसे तुलना कर रहा है ? उस गंगाजल को इस दारू में मत मिला | चाहे तो दूसरी टिप्पणी का मज़ा ले कि अब संसद 'राम भरोसे' की तरह 'हरि भरोसे' |
हमने कहा- ठीक भी है |सेवकों में तो कोई भरोसे लायक रहा नहीं |अब 'राम' और 'हरि' का ही भरोसा है |
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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