Aug 27, 2020

शिलान्यास का प्रसाद



शिलान्यास का प्रसाद 

हम बरामदे में बैठे थे |आज तोताराम बड़े रुआब में था |

बोला- उठो, अन्दर जाओ |अच्छी तरह हाथ धोकर आओ |

हमने कहा- क्या हमारे हाथ पर कोई कोरोनासुर बैठा हुआ है ? जैसे कहते हैं- शेरों के मुँह कौन धोता है ? सो मास्टरों के हाथ सदा पवित्र ही रहते हैं |लोग तो देश का गला दबाकर भी हाथ नहीं धोते |क्या लगा हुआ है हमारे हाथों में ?

बोला- तुझे नहीं रोकूँगा तो तू इस हाथ धोने और न धोने के बारे में ही दस घंटे प्रवचन झाड़ता रहेगा |तुम बकबकियों के साथ यही समस्या है |कोई भी विषय हो; हो जाते हैं शुरू |एक महिला फोन पर घंटों बात किया करती थी |एक दिन कोई फोन आया और उसने आधे घंटे में ही रख दिया |

पति ने पूछा- क्या बात है ? आज बात जल्दी कैसे ख़तम हो गई ?

पत्नी बोली- रोंग नंबर था |

सो तुम भी उन्हीं में से हो जो रोंग नंबर पर भी कम से कम आधा घंटा तो बात कर ही लेते हैं |

हमने कहा- लेकिन ऐसा कौन सा काम है जो हमारे हाथ धोये बिना नहीं हो सकता ?

बोला- पवित्र प्रसाद है |रामजी के मंदिर के शिला-पूजन का |

हमने कहा- कल ही तो शिला पूजन था और आज सुबह तू प्रसाद भी ले आया | हमने तो सुना है कि योगी जी ने प्रसाद का पहला पैकेट महाबीर नाम के किसी दलित के यहाँ पहुंचाया है |लगता है उससे भी पहले तुझे उपकृत कर दिया |लगता है योगी जी से तेरा कोई कनेक्शन है |

बोला- तुझे आम खाने हैं कि पेड़ गिनने ?

हमने कहा- ज़माना खराब है |सरकार राष्ट्र-रक्षा के नाम पर जाने किन-किन को बुलाकर प्रश्न करने लगी है |फोन भी रख लेती है जिससे पता चल सके कि वह किसी राष्ट्रद्रोह की गतिविधि में तो शामिल नहीं है |इसलिए आम खाने को मिले या नहीं लेकिन पेड़ ज़रूर गिन लेने चाहियें जिससे वक़्त ज़रूरत यह बताने में सुविधा रहे कि जब लोग आम चूस रहे थे तब तुम क्या कर रहे थे ?

बोला- मास्टर, मैं चलता हूँ |तुझसे बात करने का कोई फायदा नहीं |किसी भी बात को टालने में, मुद्दे का सत्यानाश करने में संबित पात्रा की तरह तेरा भी कोई ज़वाब नहीं | 

हमने हाथ फैलाते हुए कहा- तो ला प्रसाद |राम के प्रसाद से तो मुर्दों को खाने वाले जटायु का उद्धार हो गया तो हम भी पवित्र हो जाएँगे |




तोताराम ने एक सूखा लड्डू हमारे हाथ पर रख दिया |हमने भी पूरा का पूरा मुंह में रख लिया |
नाक के छेद भी तो मुँह में ही खुलते हैं जैसे कि अपराधियों के घरों से सुरंगें सेवकों के तहखाने में खुलती हैं |एक अज़ीब सी गंध का भभका नाक में भर गया |

हमने पूछा- क्या बात है ?  कहीं ये लड्डू गाय के घी की बजाय अयोध्या के किसी 'लोकल के लिए वोकल' घी निर्माता द्वारा सप्लाई घी से तो नहीं बने हैं ?

बोला- तेरी रोग प्रतिरोधक क्षमता दुरुस्त है |तुझे कुपोषण हो सकता है लेकिन कोरोना पोजिटिव नहीं है |

हमने कहा- हम प्रसाद की बात कर रहे हैं और तू हमें कोरोना में घसीट रहा है |

बोला- कोरना पोजिटिव वाले को गंध नहीं आती लेकिन तुझे मुँह में रखते ही पता चल गया |मतलब कोरोना तो नहीं है |

हमने खीझकर पूछा- लेकिन यह है क्या ?

बोला- ओरिजिनल है, १० नवम्बर १९८९ वाला |

हमें गुस्सा आया, पूछा- यह १० नवम्बर का क्या ममला है ?


बोला- 9 नवंबर १९८९ की सुबह ठीक 9 बजकर 33 मिनट पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में शिलान्यास के लिए जमीन की पूजा की गई। स्वामी वामदेव ने भूमि पूजन किया। नींव की खुदाई के लिए पहला फावड़ा महंत अवैद्यनाथ ने चलाया। परमहंस रामचंद्र दास, स्वामी वामदेव और सत्यमित्रानंद गिरि ने भी बारी-बारी से खुदाई की। बाद में नृत्य गोपाल दास, अशोक सिंघल, एचवी शेषाद्रि, स्वामी चिन्मयानंद, रामानंदाचार्य-रामानुजाचार्य और धर्मदास ने भी नींव की खुदाई की। दूसरे रोज 10 नवंबर को एक बजकर चालीस मिनट पर उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में शिलान्यास हुआ। बिहार के एक हरिजन कामेश्वर चौपाल के हाथों मंदिर की पहली शिला रखी गई।


हमने कहा- तो फिर दुबारा शिलापूजन का यह नाटक करने की क्या ज़रूरत थी ?




Head of Ram Janmbhoomi Nyas, Mahant Nritya Gopal Das' security has ...

बोला- यह तो मैं क्या बता सकता हूँ |नृत्य गोपाल दास जी के अतिरिक्त ओरिजिनल शिला पूजन के सभी लोग राम के पास पहुँच चुके हैं |जब महंत जी ही कुछ नहीं बोल सके तो मेरी कौन सुनेगा ?

वैसे हमें राम मंदिर का श्रेय लेने वाली भाजपा और संघ से भी क्या मतलब ? जिन्हें राम की सियासत करनी है उसकी वे  जानें |

हमने कहा- तोताराम, हमारे हिसाब से तो राम का मंदिर कभी टूटा ही नहीं |कभी लगा ही नहीं कि राम का मंदिर नहीं है |घट-घटवासी का मंदिर कौन तोड़ सकता है ?

बैठ, हम खिलाते हैं तुझे एकदम ताज़ा प्रसाद |कल बच्चे जयपुर गए थे वहाँ से मोती डूंगरी के गणेश जी का प्रसाद लाए हैं |

मुँह में लड्डू रखते हुए तोताराम बोला- विनायक जी राम के इस देश की मर्यादा सलामत रखें |
















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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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