Apr 20, 2021

वेल इन एडवांस


वेल इन एडवांस 


तोताराम आया, चाय आई लेकिन यह क्या ?

बोला- बस, चाय ! पिओ, दो बातें करो और जाओ. कभी कुछ दीन-दुनिया की भी सोच लिया कर.

हमने कहा- रोज और करते ही क्या हैं ? दीन-धर्म तो देख, किसी का रहा नहीं है. चाहे कुम्भ स्नान हो या रमजान की नमाज़; भेदभाव के अलावा कुछ नहीं. और तो और अब तो कुर्सी के लालच में राम और दुर्गा को युद्ध में उतार दिया है. जिसे देखो हिन्दू-मुसलमान कर रहा है जैसे जनगणना कर रहा हो. अरे, भूख-प्यास, हारी-बीमारी तो सबको एक जैसी ही ब्यापती है.  कभी तो लोगों को नागरिक और देशवासी के रूप में भी देख लिया करो. और रही बात दुनिया की तो सबकी अपनी-अपनी दुनिया है जिसमें अपने-अपने चमचे और अपने-अपने स्वार्थ. दीन और दुनिया दोनों बदमाशों ने कब्ज़ा लिए हैं. हमें भी अब अपनी जान की सोचनी चाहिए. 

बोला- मेरा दीन-दुनिया से यही मतलब था. 

हमने कहा- मतलब कि हम भी टुच्चे हो जाएँ.

बोला- कुछ मामलों में तुच्छ नहीं तो कम से कम समझदार और दूरदर्शी तो होना ही चाहिए.

हमने पूछा- बता, क्या करें ?

बोला- सबसे पहले तो अस्पताल में कोरोना के इलाज़ के लिए भर्ती होने के लिए और फिर श्मशान में दाह-संस्कार के लिए बुकिंग करवा दें.

हमने कहा- हमें जर्मनी के हेस्से राज्य के वित्तमंत्री थॉमस शेफर की तरह जर्मनी की कोरोना के कारण गिरती अर्थव्यवस्था से ज़रूरत से ज्यादा संवेदनशील होकर आत्महत्या जैसे किसी कदम के बारे में नहीं सोचना चाहिए.      दुनिया भाड़ में जाए, हमें तो बेशर्मी से नकटे होकर सौ साल तक जीने और दुगुनी पेंशन पेलने का जतन करना चाहिए. हम तो स्वस्थ हैं. यह क्या अस्पताल और क्या दाह-संस्कार के लिए बुकिंग की बात करता है.

बोला- इस विश्वगुरु देश में अव्यवस्था की कोई सीमा नहीं है. राममंदिर के भरोसे राजनीति तो की जा सकती है लेकिन जान बचाने के लिए कुछ और भी करना ज़रूरी है. तोप के लाइसेंस के लिए अर्जी दो तो कहीं जाकर तमंचा मिलता है. आज की ही खबर है, लखनऊ जिले के एक कस्बे इंटौजा के मनीष त्रिपाठी ने तबीयत खराब होने पर अपने पिताजी को अस्पताल में भर्ती करवाने के लिए नंबर लगाया तो पिताजी के मरने के बाद फोन आया कि आ जाइए, बेड खाली है. इधर जब खाट ही खड़ी हो गई तो 'बेड' का क्या अचार डालेंगे. हमें ऐसी लापरवाही नहीं करनी चाहिए. इसलिए दोनों जगह एडवांस में नंबर लगा देने में कोई बुराई नहीं है. 

हमने कहा- और अगर बीमार नहीं हुए या मरे नहीं तो ?

बोला- हजार पांच सौ रुपए लेकर किसी को सीट बेच देंगे. 

हमने कहा- तोताराम, तो क्या तू भी  मरीजों की मजबूरी का फायदा उठाकर महाराष्ट्र के ऑक्सीजन विक्रेताओं की तरह अपनी श्मशान-वेटिंग तिगुने दाम में बेचेगा ?  


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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