Apr 2, 2021

श्रद्धांजलि की पात्रता


श्रद्धांजलि की पात्रता 


आज सुबह से ही मूड खराब था. बड़ा दुखद समाचार पढ़ा. जालोर के करडा में शराब पिए हुए, तेज़ आवाज़ में गाने बजाते हुए  १०० किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड से कार दौड़ा रहे दो युवकों ने नवीं-दसवीं के छह बच्चों को कुचल दिया. जिनमें पाँच की घटना स्थल पर ही मौत हो गई और छठा गंभीर अवस्था में है. 

तोताराम आया, बैठा. चाय भी आई लेकिन चुप्पी पसरी हुई थी. 

हमने कहा- किस बात की कुंठा और कैसा अभिमान ? किसे क्या दिखाना चाहते थे ? 

बोला- जब छोटे आदमी को उसकी औकात से बाहर कुछ मिल जाता है तो उसे पचता नहीं और फिर वह आते-जाते सड़क गन्दी करता फिरता है. नामांकन पत्र तो पहले भी लगो भरते ही थे लेकिन क्या कभी सैंकड़ों कारों का जुलूस, आतंक मचाती हजारों की भीड़ आगे-पीछे देखी थी ? वे शालीन और काबिल लोग थे और आज के टुच्चे नेता वार्ड मेंबर का फार्म भरेंगे तो भी दस जीपें लेकर जाएंगे. यह लोकप्रियता नहीं, आतंक है, अपने ओछेपन का प्रदर्शन है. 

हमने कहा- क्या हम इन बच्चों को श्रद्धांजलि स्वरूप दो मिनट का मौन रखें ?

बोला- हानि-लाभ, जीवन-मरण, जस-अपजस विधि हाथ. श्रद्धांजलि से क्या बच्चे वापिस आ जाएंगे ? तुझे पता है, गजानन मारणे पुणे का एक गैंगस्टर है जो हत्या के आरोप से बरी हुआ तो उसके समर्थकों ने तलोजा से पुणे तक ३०० कारों का जुलूस निकाला. अपराध का खुला महिमामंडन. क्या पता ये युवक भी सत्ताधारी दल से संबंधित हों. बिना बात क्यों सरकार की आँख की किरकिरी बनें. अपराधी सत्ताधारी दल का हो तो जेल से छूटने पर मंत्री उसका स्वागत करते हैं. 

हमने कहा- मरने पर तो दुश्मन से भी शत्रुता भुला दी जाती है. किसी अनजान की शवयात्रा हो तो भी जूते उतारकर उसे हाथ जोड़कर विदा करते हैं. 

बोला- नहीं ऐसा नहीं है. यदि सभी मृत लोग श्रद्धांजलि के योग्य होते तो दिल्ली की सीमा पर किसान आन्दोलन में मरने वाले २०० लोगों को राहुल द्वारा श्रद्धांजलि देने पर स्पीकर ओम बिरला ने क्यों कहा, 'माननीय सदस्यगण प्लीज बैठिए.  इस सदन को चलाने की जिम्मेदारी आपने मुझे दी है तो कोई भी सदस्य इस तरह श्रद्धांजलि देगा तो ठीक नहीं है. इस तरह का व्यवहार करना उचित नहीं है, गरिमामय भी नहीं है.'

और सत्ता पक्ष के सदस्यों ने 'शेम, शेम' के नारे लगाए.

हमने कहा- यह तो वैसे ही हो गया जैसे अपना सिपाही शहीद होता है और दुश्मन का सिपाही मरता है. ३०३ सीटों के बहुमत वाली सरकार के कानूनों का विरोध करने वाले तो राष्ट्र के दुश्मन जो ठहरे. वे कैसे शहीद. वैसे भी फिर कलियुग में जो विष्णु के अवतारी पुरुष पर शंका करता है वह तो राक्षस हुआ. राक्षसों को कैसी श्रद्धांजलि.

बोला- मास्टर, जब कुछ राष्ट्रवादी माननीय लोग गोडसे की देशभक्ति की गारंटी देकर लोकसभा का चुनाव जीत जाते हैं और प्रधानमंत्री उससे माफ़ी नहीं मंगवाते तो फिर बच्चों के प्रति संवेदना का क्या अर्थ रह जाता है ?

तू तो यह बता मोदी जी बंगाल में २९५ में से ३०० सीटें तो नहीं जीत लेंगे. 

हमने कहा- अब तो एकदम गुरुदेव लग रहे हैं. क्या पता लोग धोखा खा ही जाए. 


पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

No comments:

Post a Comment