Sep 12, 2022

नोटों पर फोटो


 नोटों पर फोटो  


जैसे बड़े बड़े नेता आते ही या जाते समय खुद की खुद को माफ़ी दे देते हैं. कुछ दूरदर्शी अपराधी अग्रिम जमानत ले लेते हैं. कुछ पकड़े जाते ही जेल से बचने या जमानतार्थ प्रस्तुत करने के लिए डाक्टर से चालीस बीमारियों का प्रमाण-पत्र लेकर जेब में रखते हैं. ट्रंप साहब खुद को, कुछ अपने कृपापात्रों और कुछ से पैसे लेकर उन्हें भविष्य के लिए माफ़ी दे गए. वैसे ही जैसे ताकतवर नेता पुराने और असहज करने वाले मामलों को जजों से हमेशा के लिए बंद करवा लेते हैं. .

कुछ वैसे ही मनमाने और आदेशात्मक अंदाज़ में तोताराम ने फरमाया- मास्टर, अब तो छप ही जाना चाहिए. 

हमने कहा- छप तो गया. देखा नहीं,  टाइम मैगजीन के मुखपृष्ठ पर 'इंडियाज़ डिवाइडर इन चीफ'. 

बोला- वह छपना भी कोई छपना है, वह तो मोदी जी की वैश्विक प्रतिष्ठा से जलने वालों ने पता नहीं कुछ मेनेज करके छपा-छपू लिया. 

हमने कहा- अभी गए साल भी तो छपा था- द बेस्ट हॉप ऑफ़ अर्थ. दुखों में उलझी, किंकर्तव्यविमूढ़ और निराश दुनिया के लिए एकमात्र आशा की किरण हमारे मोदी जी.

बोला- छपा तो था लेकिन कुछ दिलजले लोगों को कहाँ सुहाता है. यह बात फटाफट न्यूयोर्क टाइम्स तक पहुंचा दी . न्यूयार्क टाइम्स वालों ने साफ़-साफ कह दिया कि हमने ऐसा कुछ नहीं छापा है. यह सब जालसाजी है, कोई अर्द्ध सत्य है. जैसे डाकिया अपने नाम से पहले डा. लगाकर पीएचडी या चिकित्सक का भभका मारे. 

हमने कहा- तो फिर एकदम पक्की और उत्साहवर्द्धक सकारात्मक छपन. न्यूयार्क टाइम्स ने दिल्ली के स्कूलों की अच्छी शिक्षा के बारे में जो खबर छापी है वह देश में शिक्षा  के गिरते स्तर की बुरी खबरों के बीच, वास्तव में गर्व की बात है. 

बोला- क्या गर्व की बात है ? हमारे लिए तो सर दर्द पैदा कर दिया. अब यह केजरीवाल कभी गुजरात, कभी हिमाचल प्रदेश और कभी हरियाणा जाकर नाटक करता है. कहता है मोदी जी हमारी सरकार को इसलिए परेशान और बदनाम कर रहे हैं, ईडी के छापे मरा रहे हैं क्योंकि हम शिक्षा, चिकित्सा की अच्छी व्यवस्था कर रहे हैं. पानी और बिजली मुफ्त दे रहे हैं. अब बताओ भाइयो, क्या हम कोई बुरा काम कर रहे हैं ? 

हमने कहा- तो इसमें झूठ क्या है, गलत क्या है ?

बोला- लेकिन अब हमारे गले तो यह नमाज पड़ गई ना. अब केंद्रीय विद्यालयों की तर्ज पर पीएम श्री के नाम से  १४५०० विद्यालय खोलने का झंझट पालना पड़ा कि नहीं ?

हमने कहा- तो कौन सा कल ही खोलने का वादा किया है. चुनाव तक माहौल बनाकर रखना और उसके बाद वादे को जुमला बताने में क्या देर लगाती है. कौनसा पिछले वादे पूरे न करने पर चुनाव हार गए जो आगे हारेंगे. 

वैसे तोताराम, देश के सभी सरकारी विद्यालयों में वेतनमान तो केंद्रीय विद्यालयों के समान ही है. फिर क्यों नहीं देश के सभी विद्यालय केंद्रीय विद्यालय बना दिए जाएँ. भवन और सुविधाएं ही तो जुटानी हैं. कुछ दिन सेन्ट्रल विष्ठा, विशेष विमान, विश्व रिकार्ड तोड़ ऊंची हजारों करोड़ की मूर्तियाँ बनाने का काम स्थगित किया जा सकता है. 

खैर, वैसे बता, तू कहाँ और क्या छपवाना चाहता है ? कुछ लिखें, लिखवायें, जुगाड़ लगाएं, चर्चा-विमर्श करें. 

बोला- यह तेरे वश का काम नहीं है. करेंगे तो मोदी जी खुद ही करेंगे लेकिन वे कुछ भी करते हैं तो जनता से पूछे बिना नहीं करते. जैसे जनता पीछे ही पड़ गई तो उन्होंने 'राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार' को ध्यानचंद के नाम से किया . इसी तरह जनता का मन रखने के लिए पटेल स्टेडियम का नाम नरेन्द्र मोदी क्रिकेट स्टेडियम करना पड़ा. अब यदि हम छपने के बारे में जनमत और आग्रह से कुछ दबाव बनाएं तो वे शायद विचार करें. वैसे उनकी इन झूठी प्रशंसा वाली बातों में कोई विशेष रुचि नहीं है. 

हमने कहा- क्या छपना है वह तो बता. ऐसे हवा में बात मत कर. 

बोला- अब तो मोदी का फोटो नोटों पर छप ही जाना चाहिए .

हमने कहा- आज तक तो भारत में किसी प्रधानमंत्री का फोटो नोटों पर छपा नहीं. अब यह नई रीत कैसे चले ? 

बोला- क्यों, ब्रिटेन की महारानी का फोटो वहाँ के नोटों पर छपता है कि नहीं ? अब चार्ल्स का छपेगा. ब्रिटेन में तो महारानी/महराजा का पद सांकेतिक ही है.जबकि मोदी जी १४० करोड़ भारतीयों के दिलों पर राज करते हैं. लोग उनके एक इशारे पर ताली थाली बजाने लगते हैं, दीये जलाने लगते हैं. वे अपनी विनम्रता के कारण खुद को 'प्रधान सेवक' कहते हैं लेकिन वास्तव में वे इस देश के चक्रवर्ती सम्राट हैं. उनका फोटो नहीं छपेगा तो किसका फोटो छपेगा. क्या केजरीवाल का छपेगा ? 

हमने कहा- यह तो कोई ठोस कारण नहीं हुआ. राजीव गाँधी को देश के इतिहास में सबसे ज्यादा सीटें मिली थीं लेकिन नोटों पर फोटो तो उनका भी नहीं छापा. 

बोला- लेकिन सत्तर साल में जो काम नहीं हुआ, कोई नहीं कर सका वह मोदी जी ने कर दिखाया. सात साल में ब्रिटेन को पीछे छोड़ कर अर्थव्यवस्था को पांचवें नंबर पर ले आये. 

हमने कहा- तोताराम, इस हिसाब से तो हक़ बनता है. लेकिन मोदी जी तो पल-पल में रूप बदलते हैं. वे अनेक रूपों में लोगों के दल में अंकित हैं, नोटों पर कौनसा फोटो छापा जायेगा. काली दाढ़ी में, सफ़ेद दाढ़ी में, लम्बी दाढ़ी में या छोटी दाढ़ी में ? काले चश्मे में या सादे चश्मे में, सोने के तारों में नाम कढ़े सूट में या कुरते पायजामे में, गंगा से निकलते सद्यस्नात रूप में या मंजीरा या डमरू बजाते हुए, या मगरमच्छ के बच्चे को घर लाते हुए. या प्रगति मैदान में प्लास्टिक की पानी की खाली बोतल उठाते हुए या हजार करोड़ के प्लेन से, बरसात न होते हुए भी, डिज़ाईनर छाता लेकर उतरते हुए. 

गाँधी का क्या है. वही शाश्वत बाल्ड हैडेड और पोपली मुस्कराहट. न सावन सूखे न भादों हरे. बोरिंग फोटो.

बोला- उम्र के हिसाब से सबसे छोटे नोट पर सबसे कम उम्र का फोटो और सबसे बड़े नोट पर लेटेस्ट फोटो. 

हमने कहा- लेकिन उनके साथ तो ५५ फोटोग्राफर हर समय कैमरा लिए फिरते रहते हैं. अब तक अरबों फोटो खिंच चुके होंगे. बहुत मुश्किल है चुनाव. 

बोला- यह भी हो सकता है कि हजारों डिनोमिनेशन के नोट छापे जाएँ जैसे रु. का नोट, दो रु. का नोट, तीन रु. का नोट. फिर भी फोटो बच जाएँ तो डेढ़, अढ़ाई के नोट भी हो सकते हैं. और हर पांच साल बाद जब भी मोदी जी शपथ ग्रहण करें तब नोटों की नए फोटो के साथ एक नई शृंखला. 

 




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