Sep 29, 2022

चीतायन महाकाव्य


चीतायन महाकाव्य 


रात ढंग से नींद नहीं आई। सिर में थोड़ा दर्द भी था. उठ तो समय पर ही गए लेकिन कुछ करने को जी नहीं कर रहा था. समय से थोड़ा पहले ही बरामदे में आ बैठे। आँखें बंद किये सिर को दबा रहे थे. आराम मिल रहा था. पता ही नहीं चला कब तोताराम आकर हमारे बगल में बैठ गया. जब बोला तो पता चला. 

बोला- तू तो ऐसे बैठा है जैसे कोई योगी ईश्वर से साक्षात्कार करने के लिए ध्यानस्थ हो. यदि इलहाम हो गया हो, तत्त्व ज्ञान हो गया हो तो इस तन्द्रा से बाहर निकल और अपने अनुभव से इस नश्वर जगत को लाभान्वित कर. 

 हमने कहा- कैसा ज्ञान और कैसा इलहाम।रात का सारा चौथा पहर एक अजीब तनाव में गुजरा। कुछ समझ में नहीं आता।  

बोला- समझ के चक्कर में मत पड़।  समझ के चक्कर में पड़े रहने वाले परेशान रहते हैं। सभी बड़े-बड़े काम बिना योजना के, नासमझी और धुप्पल में ही हुए हैं। हनुमान जी ने बचपन में उगते हुए सूरज को क्या कोई योजना बनाकर मुंह में रखा था. लेकिन आज तक भक्त गाते है- बाल समय रवि लील लियो तब...... . महान लोग 'क्या कर रहे हैं' सोचने से पहले कर डालते हैं।  बाद में दूसरे दुखी लोग ही आकर उसे बताते हैं- भले आदमी, तूने यह क्या कर डाला। 

हमने कहा- हमने किया तो कुछ नहीं, बस ऐसे ही रात वाले ऊलजलूल सपने के बारे में सोच रहे थे. 

बोला- मैंने तो समझा कहीं तू मोदी जी की मदद करने के लिए चीतों के नाम सोच रहा था.

हमने कहा- मोदी जी नाम रखने के मामले में योगी जी के कोई काम थोड़े ही हैं. जब चाहें, जिसका जो नाम रख दें, जिसका चाहें नाम बदल दें.  क्या किसी को तनिक सा भी आभास  हुआ कि 'पटेल स्टेडियम' या  'राजीव गाँधी खेल रत्न' का नाम बदलने वाला है ? 

बोला- लेकिन मोदी जी सब कामों में सबका साथ लेते हैं. जैसे पिछली बार गणतंत्र दिवस की झांकियों को पुरस्कृत करने से पहले भी जनता से  ई वोटिंग करवाई थी. चाहते तो अभी नामीबिया से लाये गए सभी आठों चीते-चीतियों के नाम खुद ही रख देते लेकिन नहीं वे सभी राष्ट्रीय महत्त्व के कामों में जनता की पूरी भागीदरी चाहते हैं।  सबका साथ : सबका विकास।  इसीलिए एक प्रतियोगिता कर दी- चीते-चीतियों के नाम सुझाओ और इनाम पाओ. 

हमने कहा- मोदी जी ने एक चीती का नाम 'आशा' रखकर नामों के प्रकार का संकेत तो दे दिया।  अब सरलता से चीतियों के नाम 'आशा' की तर्ज़ पर प्रज्ञा, प्रेरणा, चेतना रखे जा सकते हैं. या फिर स्मृति, समृद्धि, प्रगति, उन्नति आदि.

बोला- और चीतों के नाम- विकास, विश्वास, प्रयास, उल्लास। अनुपम, अद्वितीय, अलौकिक, अनंत ।  वैसे तेरे सपने की बात तो रह ही गई।  बता, रात के अंतिम प्रहार में तुझे ऐसा क्या सपना आया था जिसने तुझे फिर सुबह तक सोने नहीं दिया। 

हमने कहा- था तो सपना चीतों के बारे में ही लेकिन मोदी जी की तरह पिछले ७५ साल से कांग्रेस के कारण नामीबिया के वनों में वनवास काट रहे चीतों को पुनः भारत लौटा लाने जितना बड़ा और चौंकाऊ सपना नहीं था. 

बोला- मोदी जी के सपने के बारे में तो बाद में बात करेंगे, पहले तू अपने सपने के बारे में बता.

हमने कहा- सपने का क्या। छोड़।  सपने तो आल-जंजाल होते हैं।  बुढ़ापे में ऐसे ही आते रहते हैं।  ऐसे ही था, बस। 

बोला- मास्टर, बता दे।  मन हल्का हो जाएगा। दुःख और तनाव का यही मनोविज्ञान है कि बता दो तो टेंशन ख़त्म हो जाता है। तभी तो गुरुदेव टैगोर कहते थे- यदि मुक्त होना है तो खुद को अभिव्यक्त कर दो। मोदी जी को कितने काम रहते हैं लेकिन उनको क्या कभी तनावग्रस्त देखा ? और सिरदर्द तो होने का सवाल ही नहीं। 

इसका कारण है कि वे नियमित रूप से हर महिने अपने 'मन की बात' करते रहते हैं।  यदि अधिक सिर दर्द होने लगता है तो बीच में भी एक बूस्टर डोज़ दे देते हैं। अपना सिर दर्द शेयर कर लेते हैं।  वैसे ही जैसे एक बार एक किरायेदार रात को दो बजे अपने मकान मालिक के पास गया और बोला- मैं इस महिने का किराया नहीं दे पाऊँगा। 

मकान मालिक ने कहा- यह बात तुम दिन में भी कह सकते थे।  

किरायेदार ने उत्तर दिया- मैंने सोचा- मैं अकेला ही टेंशन में क्यों रहूं।  

सो तू भी अपना सपना कह ही डाल।  

हमने कहा- कुछ ख़ास नहीं है फिर भी सुन।  रात को तीन साढ़े तीन बजे की बात रही होगी। हमने देखा- कई जंगली पशु दौड़ते हुए हमारे पास आए। ज़्यादा तो नहीं देख पाए लेकिन उनके शरीर पर चकत्ते, धब्बे, धारियां जैसा कुछ था। हम डर गए और भागने लगे। वे भी हमारे पीछे दौड़े। हम भी जान बचाने के लिए जी जान से वैसे ही दौड़े जैसे कूनो के जंगल में चीतों के भोजन के लिए राजस्थान से ले जाकर छोड़े गए चीतल दौड़े रहे होंगे। जब तक वे हिंस्र पशु हमें पकड़ पाते, हमारी आँखें खुल गईं। 

क्या बताएं तोतराम, था तो स्वप्न लेकिन डर वास्तविक जैसा ही लगा।  हम एकदम पसीने में तर-बतर। लगा जैसे सारे शरीर की जितनी भी थोड़ी बहुत जान थी, सब निचुड़ गई। उसी के मारे अब तक सिर दर्द हो रहा है।   

बोला- इसीलिए महान लोग सोते नहीं हैं।  बस, कोई न कोई खुराफात करते रहते हैं सोने वालो की नींद खराब करने के लिए। लेकिन तेरे जैसे सामान्य व्यक्ति के लिए न सो पाना संभव नहीं।ऐसा महान सेवक तो युगों-युगों में कोई ही पैदा होता है जो बिना सोये जनता की सेवा करता रह सके। 

हमने कहा- तोताराम,  इस दुःस्वप्न का क्या अर्थ हो सकता है ? क्या अखबारों में रोज  'मोदी जी का केन्द्रीय कर्मचारियों को दिवाली का तोहफा' के नाम से बहुप्रचारित समाचार के सच होने से पहले ही हमें मृत्यु रूपी ये जंगली पशु फाड़ खाएंगे ? क्या किसी स्वप्न विचारक वैज्ञानिक से पूछा जाए ? 

बोला- आजकल हिन्दुत्त्व के चक्कर में बहुत से ज्योतिषी, तांत्रिक और लम्पट सक्रिय हो रहे हैं।  एक विश्वविद्यालय में तो ऐसे बदमाशों ने डॉक्टर से इलाज से पहले मरीजों की जन्मपत्री देखने का नाटक शुरू कर दिया है। लेकिन ये सब फालतू बातें हैं।  मुझे तो मोदी जी की तरह तेरी इस आपदा में एक अवसर दिखाई दे रहा है। 

जिन्हें तू कोई चित्तीदार, धारीदार या धब्बेदार प्राणी बता रहा है वे चीते ही थे।  यह बात और है कि टी वी और मीडया पर मोदी जी को खुश करने के लिए चीतामय हुए जा रहे भक्तों, एंकरों और मंत्रियों को उसी तरह चीता, शेर, तेंदुआ, बघेरा, बाघ और जगुआर में फर्क नहीं मालूम जैसे कि कृषिमंत्री को जौ और गेहूँ, गेंदे और गाजर घास में फर्क नहीं मालूम। 

लगता है,  ये चीते खुद को नेहरू जी द्वारा नामीबिया भगा दिए जाने के बाद की अपनी करुण-कथा तुझे सुनाना चाहते हों। और चाहते हों कि तू अपनी कविता में इनकी पीड़ा को वाणी देकर इन्हें अमर कर दे ।  मास्टर, हो सकता है ये चीते-चीतियाँ तेरे सपने में वैसे ही आये हों जैसे किसी भक्त को सपने में किसी खेत में कोई मूर्ति या किसी मस्जिद के नीचे मंदिर बनाये जाने हेतु शिव लिंग दिखाई दे जाता है।  

इसलिए अब तू इन चीतों की पीड़ा पर करुणरस का एक महाकाव्य लिख मार जिसके नायक हों उन्हें ७५ वर्ष के वनवास से नामीबिया से लाने वाले कल्कि अवतार मोदी जी. 

हमने कहा- देखते हैं।  कुछ बना तो।  वैसे आजकल ज़माना तो चुटकलों, जुमलों और मिमिक्री का है, फिर भी।  

बोला- फिर भी-विर भी कुछ नहीं।  लिख ही नहीं, पहले जल्दी से जल्दी 'चीतायन' नाम से इस महाकाव्य का रजिस्ट्रेशन भी करवा ले.  

हो सकता है अब तक प्रसून जोशी ने इस नाम से महाकाव्य का और अक्षय कुमार ने किसी फिल्म का नाम रजिस्टर न करवा लिया हो. 



पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

No comments:

Post a Comment