Sep 26, 2022

हिंदी करने के दिन आये


हिंदी करने के दिन आये 


चाय आ गई लेकिन तोताराम फव्वारे में शिव लिंग देखने वाले भक्तों की तरह अपनी ही मस्ती में गुनगुनाने में मगन था-  ...दिन आये . ध्यान से सुना तो अंत के चार-पांच शब्द समझ में आये- हिंदी करने के दिन आये.

हमने कहा- आज तो हिंदी के श्राद्ध पक्ष का समापन दिवस है. राष्ट्रभाषा की रुदालियों की दान-दक्षिणा के पेमेंट का अंतिम दिन. मतलब हिंदी दिवस, हिंदी सप्ताह, हिंदी पखवाड़ा सब समाप्त. अब तो जनवरी में प्रवासियों को हिंदी के तथाकथित प्रचार-प्रसार के लिए 'प्रवासी हिंदी सेवी सम्मान' के जुगाड़ का गाना गा. 

हाँ, यदि इसका अर्थ विश्व में उपलब्ध ज्ञान-विज्ञान का हिंदी में अनुवाद करने से है तो बड़ी ख़ुशी की बात है. आज तक हिंदी के नाम से बजट बना और निबटाया गया है. कोई ठोस काम नहीं हुआ. ज्ञान दुनिया की सभी भाषाओं में उपलब्ध है लेकिन किसी के लिये भी सभी भाषाएँ जानना संभव नहीं है. इसीलिए लोग ज्ञान प्राप्ति के लिए दुनिया में भटके और अपनी भाषा में उस ज्ञान को अनूदित करके लाये. जापान में दुनिया की किसी भी भाषा में प्रकाशित ज्ञान-विज्ञान के शोध पत्र का जापानी अनुवाद महिने-पंद्रह दिन में उपलब्ध हो जाता है. और हम हैं कि 'इण्डिया' और 'हिंदिया' ही करते रह जाते हैं. हिंदी ही क्यों हमारा तो मानना है कि देश की हर भाषा में दुनिया भर का ज्ञान उपलब्ध करवा दिया जाए तो अंग्रेजी का साम्राज्य अपने आप ही समाप्त हो जाएगा. फिर अपनी असफलता को टांगने के लिए किसी मैकाले की खूँटी की ज़रूरत नहीं पड़ेगी. 

तोताराम ने हमारे पैरों की तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा- पता नहीं, मैं क्यों चुपचाप चाय पीकर चला नहीं जाता. कहते हैं जब गीदड़ की मौत आती है तो वह गाँव की तरफ भागता है. उसी तरह जब मेरा दिमाग खराब होता है तो मैं तुझसे कोई ज्ञान की बात कहता हूँ. मैं भूल जाता हूँ कि तेरा ब्रेक खराब है. एक बार बोलना शुरू करता है तो २०२२ से पीछे खिसकता-खिसकता गाँधी-नेहरू के काल में पहुँच कर उन्हें गरियाने से पहले रुकता ही नहीं.  

हमने कहा- 'हिंदी करने के दिन आये' गीत के शब्द तेरे हो सकते हैं लेकिन वास्तव में यह गीत 'चौदहवीं का चाँद' का है जिसे शकील ने लिखा, रवि ने धुन बनाई और गीता दत्त ने गाया है, बोल हैं-

बालम से मिलन होगा, शरमाने के दिन आये

मारेंगे नज़र सैंयाँ मर जाने के दिन आये 

तोताराम ने कहा- अब अगर तू चुप नहीं हुआ तो मैं चाय पिए बिना ही चला जाऊँगा. 

हमें लगा, यह कोई गुलाम नबी आज़ाद और अमरिंदर सिंह की तरह भाजपा की तरफ खिसकने जैसा सामान्य और पर्याप्त पूर्वानुमानित मसला नहीं है. हमारे लिए तोताराम पार्टी के एक 'खिसकूँ-खिसकूँ' सदस्य के जाने से अधिक बड़ा मामला है. इसलिए हमने उससे कहा- अब जब तक तेरी बात पूरी नहीं हो जायेगी हम कुछ नहीं  बोलेंगे. 

आश्वासन पाकर तोताराम ने कहा- 'हिंदी करने के दिन आये'  से मेरा मतलब इस हिंदी दिवस, सप्ताह, पखवाड़े और माह में दो विशिष्ट लोगों ने गणित की हिंदी कर दी. राहुल गाँधी ने अध्यापक दिवस पांच सितम्बर २०२२ को आवश्यक वस्तुओं के भावों की तुलना करते हुए बताया कि आटा पहले २२ रुपए लीटर था और आज ४० रुपए लीटर. 

हमने कहा- लेकिन राहुल ने उसी समय ध्यान आते ही सुधार तो लिया.

बोला- लेकिन जिनकी ऐसी बातें खोजने की ही नौकरी है उन्हें पूरे वाक्य से कोई मतलब नहीं है. उन्हें तो अपने काम के दो शब्द निकालकर वाइरल करवाने हैं. इसके बाद अमित शाह जी ने १२ सितम्बर २०२२ को नॉएडा में वर्ल्ड डेयरी सम्मेलन में बताया कि १९६९-७० में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता ४० ग्राम थी जो अब मोदी जी के राज में बढ़कर १५५ ग्राम हो गई. 

दूध लीटर में मापा जाता है और आटा किलोग्राम में तौला जाता है.  

हमने कहा- कोई बात नहीं. राहुल ने तौलने  के गणित की हिंदी की तो शाह साहब को भी उसके ज़वाब में दूध के माप के गणित की हिंदी करने कुछ अधिकार तो है ही. और फिर वे सबसे बड़ी पार्टी के बड़े नेता हैं, और नंबर टू भी. इसलिए वे ग्राम में दूध मापेंगे और अपनी भूल सुधार कर कायरता का परिचय भी नहीं देंगे. 

बोला- तो क्या हम इसी तरह ज्ञान विज्ञान का मज़ाक उड़ाते रहेंगे ?

हमने कहा- ज्ञान-विज्ञान नेताओं का विषय नहीं है. क्या कोई मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री अपने बिजली-पानी और फोन के मीटर का ध्यान रखता है ? उसके लिए तो सब फ्री होता है. यह गणित और हिसाब-किताब तो तेरे हमारे लिए है कि कितनी महंगाई बढ़ने पर कितना उपभोग कम करना है. 

वैसे हमें तो शाह साहब की बात में भी कोई गलती नज़र नहीं आती. भई, बेचने वाले की मर्ज़ी है चाहे जैसे बेचे. जिसमें फायदा हो उसी में बेचे. जैसे दूध हल्का होता है इसलिए लीटर में बेचते हैं लेकिन कोई भी दुकानदार शहद लीटर में नहीं बेचता क्योंकि एक लीटर के पात्र में कोई तीन किलो शहद आ जाएगा. हाँ, वह पांच ग्राम चिप्स को पांच लीटर के लिफाफे में हवा भरकर पैक करके आकार के हिसाब से बेच सकता है.  

क्या तू 'अच्छे दिन' को बेचने के माप तौल का गणित बता सकता है ? तब तो कुछ नहीं पूछा और खल्लास कर आया सारे घर के वोट.  

बोला- ठीक है, अमित जी के ग्राम में दूध तौलने को तो सही बता दिया लेकिन राहुल के लीटर में आटा मापने का क्या तुक है ? 

हमने कहा- अब कांग्रेस का सीटों की कंगाली का आटा इतना गीला हो चुका है कि तौलने में नहीं आ रहा है, सिंधिया, आज़ाद और अमरिंदर के रूप में बह-बहकर भाजपा के कीचड़ में मिल रहा है तो ऐसे में आटा लीटर में ही मापना पड़ेगा. 

एक चुटकुले में हलवाई को जल्दी ठंडा करने के लिए दूध को एक बरतन से ऊंचाई से दूसरे बरतन में उंडेलते देखकर एक गणितज्ञ ग्राहक ने आधा मीटर दूध का आर्डर नहीं दे दिया था ? 

 




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