Sep 5, 2022

आधी रात को खेला हो गया

आधी रात को खेला हो गया 


आज तोताराम ने आते ही हाँक लगाई- भाई साहब, खेला हो गया. 

हमने पूछा- कौन सा खेला ? क्या राज्यपाल रमेश बैंस ने सूर्योदय का इंतज़ार किया बिना ही आधी रात को फडणवीस की तरह किसी मरांडी या मुंडा को शपथ दिलवा दी ? या किसी सिसोदिया को जेल में डाल दिया ? 

बोला- ऐसे खेलों को खेला नहीं कहते। ये तो 'ऑपरेशन लोटस' होते हैं. जैसे कि कोई किसी से सहानुभूति दिखाते हुए उसे पेट दर्द के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती करवाए और होश आने पर दर्दी को पता चले कि डॉक्टर साहब बीमार का गुर्दा ही बेच चुके।मैं जिस खेका की बात कर रहा हूँ वह तो 'ऊँचा ही खेला' है.

हमने पूछा- तो क्या बंगाल में फिर चुनाव होने को घोषणा हो गई या राष्ट्रपति शासन लागू हो गया ? 

बोला- धनकड़ साहब को भेजा तो इसीलिए था कि ऐसा-वैसा कुछ कर-करा दें लेकिन पार पड़ी नहीं। वहाँ तो ममता दीदी ने ही खेला कर दिया।  टैगौरी बाना भी काम नहीं आया. लेकिन यह बंगाल जैसा खेला भी नहीं है. वैसे इस समय मोदी जी की लोकप्रियता है उसे देखते हुए वे कहीं भी खेला कर सकते हैं. 

हमने कहा- तो फिर बताता क्यों नहीं। क्यों बिना बात हमारी धड़कनें बढ़ा रहा है. 

बोला- तो ध्यान से सुन. वह ब्रिटेन जिसके राज में सूरज नहीं डूबता था, जो हमें काला, जमीन पर हगने वाला आदमी कहता था, उसी से खेला कर दिया। 

हमारा रोमांच चरम पर, पूछा- तो क्या अपना ऋषि सुनक ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बन गया ?

बोला- वह भी कोई बड़ी बात नहीं। ब्रिटेन ही क्या अब तो अमरीका में भी अपना डंका बजता है. कल को कमला हैरिस को ही राष्ट्रपति बनना है. 

हमने कहा- यह ठीक है कि उसकी माँ भारतीय थी. उनके नाना एक भारतीय सिविल सर्वेंट थे. पक्के ब्राह्मण।लेकिन कमला में ब्राह्मणीय उच्चता-ग्रंथि नहीं है. इसीलिए वह डेमोक्रेटिक पार्टी में है.  ट्रैम्प से मोदी जी की मित्रता के चलते बहुत से भक्तों ने कमला को वोट नहीं दिया।

बोला- उसकी बात छोड़. जब कोई भी किसी पद पर पहुँच जाता है तो हम उससे किसी न किसी प्रकार का कोई न कोई रिश्ता निकाल लेने में सिद्धहस्त हैं.  सो कमला से भी कोई न कोई रिश्ता निकाल ही लेंगे। वैसे हो सकता है अबकी बार फिर अपने मोदी जी का मित्र ट्रैम्प ही आ जाए. 

हमने पूछ- यह संभावना तुझे कैसे लग रही है. 

बोला- अबकी बार न्यू जर्सी में इंडियन बिजनेस एसोसिएशन ने भारत की आज़ादी के अमृत महोत्सव पर बड़ी शानदार परेड निकाली जिसकी शोभा हिन्दुत्त्व के पैरोकार संबित पात्रा बढ़ा रहे थे. उसमें प्रेम, सद्भाव और कानून व्यवस्था के भारतीय मॉडल से परिचित करवाने के लिए 'बाबा का बुलडोज़र' भी परेड में शामिल किया गया था. उत्साही भारतीयों ने मानवीय सद्भाव बढ़ाने वाले मुस्लिम विरोधी नारे भी लगाए। 

अब अगला खेला अमरीका में ही करेंगे। 

हमने कहा- तोताराम, यह अमरीका की उदारता है जो दूसरे देशों से आये और अमरीका की नागरिकता लेकर मौज कर रहे अन्य देशों के लोगों को इतनी छूट दे रहा है. ऐसे भारत मूल के लोगों को चाहिए कि वे अमरीका की उदारता का दुरुपयोग न करें और वहाँ अपना वैचारिक कचरा न फैलाएं। 

इन विभेदकारी भारतीयों की वहाँ बहुत आलोचना हो रही है. अब उनमें से कुछ माफ़ी भी मांग रहे हैं.   

हमने कहा- तोताराम, बात किसी और दिशा में जा रही है. पहले वह 'खेला' वाली बात बता. 

बोला- रात को भारत ने ब्रिटेन को पछाड़ दिया। 

हमारी उत्सुकता चरम पर, पूछा- तो क्या रात को जॉनसन और मोदी जी के बीच कोई कुश्ती हुई थी  ? 

बोला- मास्टर, तू या तो बहुत चालाक है या फिर एक दम बुड़बक। अरे, रात को भारत की अर्थ व्यवस्था ब्रिटेन से आगे निकल गई. 

ब्रिटेन की अर्थव्‍यवस्‍था 816 अरब डॉलर की और भारत की  854.7 बिलियन डॉलर। 

हमने पूछा- कल शाम तक तो जब हम सोये थे सब ठीक था. 

बोला- ऐसे सभी खेले रात को ही होते हैं. लापरवाह लोग दारू पार्टी करते रहते हैं और जो संयमित लोग हैं वे रात को भी चुस्त-दुरुस्त, सक्रिय रहते हैं और खेला कर देते हैं. यदि हमारे मोदी जी भी जॉनसन की तरह दारू पार्टी करते होते तो हमारे साथ भी कोई न कोई खेला कर जाता लेकिन हमारे मोदी जी पंडित हैं- यः जागर्ति सः पण्डितः ।  

हमने कहा- वैसे मोदी जी सभी महान काम रात को ही क्यों करते हैं भले ही नोटबन्दी हो या, जी.एस. टी. या लॉकआउट। 

बोला- तभी तो चामत्कारिक वृद्धि के लिए कहा जाता है- दिन दूनी रात चौगुनी। पांच किलो अनाज की थैली में पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था पर कब्ज़ा कर लिया कि नहीं। 

हमने कहा- आदमी को किसी भी बहाने से खुश रहना चाहिए लेकिन तुझे पता होना चाहिए कि हमारी जनसँख्या ब्रिटेन से बीस गुना अधिक है. इस हिसाब से हमारी जी.डी. पी. उससे बीस गुना ज़्यादा होनी चाहिए। गणित के हिसाब से वह अब भी हमसे बीस गुना आगे है. 

वैसे कभी-कभी इस तरह बुलबुल के पंखों पर सवार होकर उड़ने से पहले देश का ह्यूमैन टाई इंडेक्स भी पता कर लेना चाहिए। इससे चोट काम लगाती है। 

बोला- मास्टर, इन सब बातों के बीच मुझे एक ख़याल आता है कि ये योरप और अमरीका के गोरे लोग बड़े चालाक हैं. ये वास्तव में कोई बहुत धनवान और तुर्रम खां नहीं। ये आंकड़ों के जाल में उलझा कर हमें उल्लू बनाते रहते हैं. इनके किसी देश में जाओ तो कहीं कुछ दिखाई नहीं देता। पता नहीं कुछ खाते-पीते भी हैं या नहीं या केवल टाई लगाकर कारों में बैठकर पता नहीं किधर भागते रहते हैं या फिर कहीं भी नाचने लग जाते हैं.जबकि हमारे यहां उपभोग के प्रमाण हर जगह सिद्ध करते हैं कि हम वास्तव में एक बहुत बड़ी और वाइब्रेंट अर्थव्यवस्था हैं. जितनी इन लोगों की जीडीपी है उतने के तो गुटकों , नमकीन के पाउच और दारू,प्लास्टिक की बोतलें सड़कों पर पड़ी मिल जाएंगी। जगह-जगह जीमण,  भंडारे और व्रत-उद्यापन के बाद पड़े डिस्पोजेबल ग्लास, प्लेटें और जूठन हमारी धार्मिकता ही नहीं, पौष्टिक भोजन की पर्याप्तता के भी प्रमाण हैं. 

कोई ढंग से देशभक्तिपूर्ण सर्वे करे तो हम विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था निकालेंगे। ऐसे ही 'सोने की चिड़िया' थोड़े हैं. 


  



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