Sep 9, 2022

कर्तव्य पथ पर स्वागत


कर्तव्य पथ पर स्वागत   


आज तोताराम ने आते ही कहा- मास्टर, बना ले कार्यक्रम. हो आयें दिल्ली. 

हमने कहा- यह कोई मोदी जी का अमरीका जाने जैसा सामान्य कार्यक्रम है क्या, जो तू कहे और हम चल पड़ें . चलने के लिए दस-पांच दिन तैयारी के लिए चाहियें . चित्त को दृढ़ करना होगा. संकल्प लेना होगा. मोदी जी का क्या है. प्लेन में ही बोरिया बिस्तर सब रखा हुआ है. ड्राइवर को बोलना भर तो है. एक्सेलेटर दबाया और फुर्र. वैसे आज अचानक दिल्ली की उचंग कैसे चढ़ी हुई है ?

बोला- प्लेन का ड्राइवर नहीं होता. ट्रेन और बस की तरह थोड़े ही है कि चढ़े और पसर गए सीट पर. अमरीका जाने से पहले रूट, परमिशन, प्रोटोकोल जाने क्या क्या होता है. दिल्ली जाने का मन तो इसलिए हुआ कि वहाँ कल मोदी जी ने 'कर्तव्य पथ' का उद्घाटन किया है. 

उनका फोटो देखकर ऐसा लगता है जैसे नया कुरता, पायजामा और जैकेट पहनकर हम अति वरिष्ठ नागरिकों का स्वागत करने के लिए ही खड़े हैं. जब तक हम नहीं पहुंचेंगे तब तक शायद इंतज़ार ही करते रहेंगे .   

वैसे  आज जो सत्ता में बैठे हुए हैं हमने उन सबको 'घुट रुन चलत रेनु तन मंडित' देखा है. हमने तो आज़ादी से पहले से ही गाना शुरू कर दिया था- 

वह शक्ति हमें दो दयानिधे ! कर्तव्य मार्ग पर डट जाएँ. 

पर सेवा पर उपकार में हम निज जीवन सफल बना जाएँ.  

डटे रहे. जो गुरु जी ने, माता-पिता ने और बाद में पत्नी ने जो बताया सो करते रहे .  लेकिन यह कर्तव्य पथ क्या होता है ? आज तक पता ही नहीं चला. इसलिए अच्छा हो कि दिल्ली जाकर पता कर आयें कि कर्तव्य पथ क्या होता है ? और हमने अब तक जो किया वह कर्तव्य ही था या अज्ञान में वैसे ही अंड बंड करते रहे. 

हमने कहा- लेकिन तोताराम, हम बचपन में जो गाया करते थे उस में 'कर्तव्य मार्ग' की जगह  यह 'कर्तव्य पथ' फिट नहीं बैठता. दो मात्राएँ कम पड़ती हैं . ऐसे लगता है जैसे कहीं गड्ढा आ गया हो. 

बोला- लेकिन 'मार्ग' शब्द से आडवानी जी वाला 'मार्ग दर्शक मंडल' याद आ सकता है जबकि हम उससे बचना चाहते हैं. 

हमने कहा- वैसे तोताराम, मोदी जी ने जिस 'कर्तव्य पथ' का उद्घाटन किया वह इससे पहले 'राजपथ' था. आज़ादी से पहले इसका नाम 'किंग्सवे' था. लेकिन पता नहीं मोदी जी ने क्यों उसे 'किंग्सवे' से जोड़ दिया जबकि १९५५ में इसका नाम 'राजपथ' कर दिया गया. हो सकता है वे खुद को भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन से सीधे सोधे जोड़ना चाहते हों. वैसे जब इस इलाके में राज काज चलाने वाले ही बैठते, रहते हैं तो 'राजपथ' में क्या बुराई है.  'कर्तव्य पथ' बनाने की क्या जरूरत थी.

बोला- लेकिन राज करने वाले का भी तो कोई 'कर्तव्य' होता है.  उसे अपना कर्तव्य याद दिलाने के लिए अच्छा है इस रोड  (राजपथ) को 'कर्तव्य पथ' बना दिया जाए जिससे जब भी कोई सेवक अपनी मर्सडीज में बैठकर इस पथ से गुजरे और बोर्ड पर उसकी निगाह पड़े तो उसे अपने 'कर्तव्य' की याद आ जाए. क्योंकि आजकल राज काज में इतने दंद-फंद हैं कि 'कर्तव्य' याद ही नहीं रहता . 

हमने कहा- राजा का कर्तव्य तो 'राजधर्म' होता है. इसलिए हमारे अनुसार तो  इसका नाम 'राजधर्म पथ' होना चाहिए. 

बोला- मास्टर, 'राज धर्म' की बात मत कर. इस नाम और शब्द से  'उस व्यक्ति' की 'उस बात' की याद आ जाती है और अच्छा-भला मूड ख़राब हो जाता है.

हमने कहा- लेकिन यह तो पता चले कि मोदी जी ने सुभाष की प्रतिमा के अतिरिक्त इस उद्घाटन में और क्या शामिल किया है ?

बोला- नया तो कुछ नहीं किया बस, सड़क को पक्का करवा दिया है और कुछ खम्भे और बिजली की बत्तियां लगवा दी हैं.  

हमने कहा- तो फिर यह वैसा ही है जैसे दक्षिण भारत में शादी के ५०-६० साल बाद बुड्ढे-बुढ़िया की 'शादी के प्रहसन' का आयोजन किया जाता है. 

बोला- इससे जनता और मीडिया से नाता बना रहता है और नेता के अत्यावश्यक कर्तव्य - शिलान्यास, उद्घाटन का अभ्यास बना रहता है. 

हमने कहा- तब एक दिन में जितना काम होता है उसका सुबह शिलान्यास किया जाय और फिर शाम को उतने काम का उद्घाटन कर दिया. और संभव हो तो चुनाई से पहले हर ईंट का शिलापूजन भी किया जाए. 

काल करे सो आज कर. 










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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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