Sep 1, 2022

कहीं ये 'वो' तो नहीं


कहीं ये 'वो' तो नहीं 


तोताराम गुनगुनाते हुए प्रकट हुआ- कहीं ये वो तो नहीं !

हमने पूछा- कैसे 'संदेह अलंकार' से ग्रसित हो रहा है ?

बोला- मैं तो तेरे सामान्य ज्ञान की परीक्षा ले रहा था. इतना भी नहीं मालूम। क्या पढ़ाया होगा बच्चों को. बता यह- 'वो' कौन है ?

हमने कहा- यह १९६४ की फिल्म 'हकीकत' का गीत है जिसे कैफ़ी आज़मी ने लिखा, मदन मोहन के संगीत में लता जी ने गाया है.

बोला- अब लोगों के लिए ऐसी देशभक्ति की बातों में कोई रोमांच नहीं रहा. 

हमने कहा- क्यों नहीं रहा रोमांच ? मोदी जी के कहने पर करोड़ों लोगों ने अपने घरों पर झंडा फहराया कि नहीं ?

बोला- वह तो कुछ मोदी जी से डरकर, कुछ मोदी जी की गुड़ बुक में आने के लिए, कुछ राजनीति में कैरियर बनाने के लिए, कुछ सस्ते में स्थानीय अखबारों में अपना नाम छपवाने के लिए किया जाने वाला नाटक है. वरना जिस लापरवाही से, तमाशे की तरह, सिंथेटिक का झंडा फहराया गया उससे तिरंगे के सम्मान में कोई वृद्धि नहीं हुई। 

खैर, बता- कहीं ते वो तो नहीं ?

हमने कहा- हमें क्या पता यह 'वो' कौन है. बहुत बार तो घर वालों तक को पता नहीं चलता कि यह 'वो' कौन है. जब पानी सिर से गुजर जाता है, जब या तो लड़की घर से भाग जाती है, या उल्टियां करने लगती है, या रंगे हाथों पकड़ी जाती है तब पता चलता है कि यह 'वो' कौन है. 

बोला- यह वैसा मामला नहीं है.

फिर हमने दिमाग लगाया, कुछ बड़ा सोचा,पूछा- तो फिर जुमला ?

तोता - नहीं।

हम- तो नोटबंदी ?

तोता - नहीं।

हम- जी एस टी ?

तोता - नहीं।

हम- विधायक खरीद, ऑपरेशन लोटस ?

तोता - नहीं। 

हम- तो रेवड़ी ?

बोला- हम  रेवड़ी नहीं बाँटते। हम सिद्धांतवादी हैं. हम ओछी राजनीति नहीं करते। हम तो सेवा करते हैं. रेवड़ी तो केजरीवाल बांटता है. फिर भी तू नजदीक पहुँच रहा है. थोड़ा और दिमाग लगा.

हमने कहा- अब तो सन्दर्भ बताये बिना कुछ भी बता पाना संभव नहीं है.

बोला- सन्दर्भ यह है कि उत्तराखंड में ७२ पदों पर हुई एक भर्ती में एक पूर्व मुख्यमंत्री की बेटी, मंत्रियों के साले, विधान सभा अध्यक्ष का बेटा,मेयर की पत्नी, पार्टी अध्यक्ष का भाई, शिक्षा मंत्री का भांजा, विधायक का साला, नेताओं के पी आर ओ तथा ४० से ज़्यादा पत्रकारों की पत्नियां लाभान्वित हुए. 

हमने कहा- तो फिर ये रेवड़ी नहीं हुई तो क्या हुआ ? शुचिता वाली बड़ी से बड़ी पार्टी से लेकर सभी छोटी-बड़ी पार्टियों में सभी के परिवार वाले मंत्री, सांसद, विधायक, आयोगों के अध्यक्ष आदि होते हैं।  ये ही तो रेवड़ियां हैं. 

बोला- रेवड़ी तो अंधा बांटता है. ये सब तो आँखों वाले सजग, सचेत लोग हैं.

हमने पूछा- तो फिर इसे क्या कहें ?

बोला- 'सबका साथ:सबका विकास', या 'आत्मनिर्भर भारत' ।



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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