Sep 23, 2022

५६ इंच मोदी थाली


५६ इंच मोदी थाली 


आज इतवार है. हमारे लिए तो सभी 'वार' बराबर हैं. कुछ कर नहीं सकते. हर 'वार' को निहत्थे और नंगी पीठ सहना है फिर चाहे वह बाज़ार का वार हो या सरकार का. दोनों ही बिना पूर्वसूचना के इकतरफा निर्णय ले लेते हैं. ये तो मोदी जी हैं जो चाहे नोटबंदी हो या घरबंदी, कम से कम चार घंटे का नोटिस तो देते हैं. 

सोचा, आज घर में किसी को ड्यूटी जाने की जल्दी नहीं है सो दूध देर से लाया जा सकता है. और बरामदे में बैठकर तोताराम का इंतज़ार करने लगे. यह हम जानते हैं कि तोताराम की बात में नेताओं के जुमलों और बड़ी-बड़ी योजनाओं की घोषणाओं की तरह कोई काम की चीज नहीं निकलने वाली फिर भी इनके चक्कर में छुटभय्ये नेता कुछ धंधा करने और फिर उसके माध्यम से नेतागीरी और दलाली करने ई मित्र के खोखे पर पहुँच जाते हैं. 

टीवी में किसी धारावाहिक को ऐसे मोड़ पर लाकर छोड़ा जाता है कि अगली कड़ी तक रोमांच बना रहे जैसे एक पात्र ने किसी पर बन्दूक तानी और 'कट' . अब आप सोचते रहिये कि गोली चली या नहीं, निशाना सही लगा या नहीं, पुलिस के बारे में तो खैर कुछ सोचने की बात ही नहीं क्योंकि वह तो विलंब से ही पहुंचेगी.हाँ, पीड़ितों के जाति-धर्म से दर्शक यह तो तय कर ही लेता है कि ऍफ़ आई आर लिखी जायेगी या नहीं. और लिखी जायेगी तो किस प्रकार. 

कल तोताराम ने मोदी जी के जन्मदिन पर दिल्ली का कार्यक्रम केंसिल कर दिया लेकिन २६ सितम्बर तक ज़रूर चलने का संकेत भी दे दिया तो सस्पेंस था कि क्या मोदी जी का जन्म दिन एक सप्ताह तक मनेगा ? क्या जन्म दिन का कोई विकल्प हो सकता है ? वैसे कुछ भी हो सकता है. बड़े आदमी और फिर मोदी जी जितने बड़े आदमी, कंगना के अनुसार विष्णु के अवतार. वैसे विष्णु को तो अजन्मा भी कहा गया है. फिर कैसा जन्म दिन ?

ज्यादा कन्फ्यूज होने से पहले ही तोताराम प्रकट हो गया. 

हमने पूछा- अब कब, क्यों और कहाँ चलना है. और जन्मदिन से हमारे चलने का क्या संबंध होगा ? क्या वहाँ मोदी जी के दर्शन संभव होंगे ?

बोला- दिल्ली में १७ से २६ सितम्बर २०२२ तक कनाट प्लेस स्थित 'आर्डार २.१' नाम के एक रेस्टोरेंट ने एक स्कीम शुरू की है जिसके अंतर्गत उनकी '५६ इंच मोदी थाली' को ४० मिनट में ख़त्म कर देने वाले को ८ लाख रूपए का ईनाम दिया जायेगा. और केदारनाथ की फ्री यात्रा भी करवाई जायेगी. 

हमने कहा- इसका क्या मतलब है ? क्या इस थाली का घेरा ५६ इंच है ? क्या मोदी जी दिन में रोज दो-तीन बार इतनी बड़ी थाली में भोजन करते हैं ? क्या इस थाली को खाने से किसी की छाती ५६ इंच की हो जायेगी ? क्या इस स्किल डेवलपमेंट या आत्मनिर्भर भारत या वोकल फॉर लोकल में मोदी जी की कोई पार्टनरशिप है ? 

बोला- तेरे जैसे आदमी न कुछ कर सकते हैं और न ही किसी को कोई निर्णय लेने दे सकते हैं. यदि मोदी जी तुझ जैसे किसी लीचड़ विचारक से पूछते तो आज तक देश की अर्थव्यवस्था को उछाल प्रदान करने वाले नोटबंदी, जीएसटी और लोक डाउन जैसा कोई क्रांतिकारी कदम नहीं उठा सकते थे. अरे, एक कोई सच्चा देशभक्त मोदी जी के जन्मदिन पर उत्साहित होकर एक ऑफर दे रहा है. और तू है कि बिना बात की मीन-मेख निकाल रहा है. 

चलते हैं दिल्ली. आने जाने का किराया ही तो लगेगा. यदि मोदी जी उपलब्ध हुए तो व्यक्तिगत रूप से बधाई दे आयेंगे, 'कर्तव्य पथ' से कर्तव्य की प्रेरणा ले आयेंगे. और यह भी देख आयेंगे कि मोदी जी द्वारा गुलामी का अंतिम चिह्न मिटा देने के सच्ची और सम्पूर्ण स्वतंत्रता की अनुभूति कैसी होती है ? 

हमने कहा- लेकिन बार के भोजन के लिए दो-तीन हजार का दिल्ली आने जाने का खर्च क्या उचित रहेगा ?

बोला- यह भी तो सोच अगर हमने ४० मिनट में थाली चट कर दी तो ८-८ लाख के हिसाब से १६ लाख रुपए भी तो जीत लेंगे. फिर १५-१५ लाख खाते में आने के चक्कर में भाजपा को वोट देने वाले अनन्त काल तक सर धुनते रहें लेकिन अपने तो न सही १५-१५ लाख ८-८ लाख तो वसूल हो ही जायेंगे. 

हमने कहा- तोताराम, जिस तरह मोदी जी के अभी कार्यक्रम किंग साइज़ के होते हैं वैसे ही यह ५६ इंच थाली भी कोई सामान्य थाली तो नहीं होगी. हम कैसे खा सकेंगे  ?

बोला- चलने से पहले दो दिन खाना नहीं खायेंगे. कहीं से मिल गई तो भांग का गोला लगा लेंगे. सोच अगर थाली चट कर दी तो ८-८- लाख खरे. खिलाड़ी भी तो इनाम और नौकरी के चक्कर में कितना पसीना बहते और रिस्क लेते हैं. ज्यादा से ज्यादा क्या होगा. दो चार दस्त लग जायेंगे, उलटी हो जायेगी. दो तीन दिन उपवास कर लेंगे. डबल हाजमोला खा लेंगे. 

हमने कहा- तो फिर कर लेते हैं हिम्मत. खेल जाते हैं यह लाटरी भी. लेकिन चलने से पहले एक बार उस समाचार को फिर पढ़ लेते हैं. आजकल लोग ऐसे लालच के चक्कर में बड़े-बड़े लोगों को फंसा लेते हैं. तुझे पता नहीं कर्नाटक में सौ करोड़ में मंत्री बनवाने के चक्कर में कई लोग ठगे गए थे. 

बोला- मोदी जी के नाम पर है तो इसमें कोई धोखा नहीं हो सकता.  मोदी जी के नाम से है तो इस थाली में उनकी पसंद का ३०-४० हजार रुपए किलो वाला कम से कम सौ ग्राम मशरूम तो होगा ही. उसीमें अपना दिल्ली आने जाने का खर्च वसूल हो जाएगा. एक बार का खाया मशरूम पांच साल तो चलेगा. 

हमने कहा- फिर भी समाचार....

तोताराम ने अपने स्मार्ट फोन में संबंधित समाचार निकाला. लिखा था- एक थाली की कीमत होगी २९००/-रु.

हमने कहा- तोताराम, हम यह छह हजार की लाटरी खेलने के पक्ष में कतई नहीं हैं. 

इससे बेहतर तो हम इस राशि से गली के कुत्तों को दो-चार महिने रोटियाँ खिलाना समझते हैं. नरक यहाँ भोग रहे हैं, स्वर्ग में हमारा विश्वास नहीं. लेकिन इतना तय है कि कुत्ते नेताओं की तरह अहसान फरामोश नहीं होते. कभी रात-बिरात निकलना हुआ तो कम से कम काटेंगे तो नहीं.  

बोला- तो फिर दोनों परिवारों का एक वक्त का भोजन एक बड़ी परात में सजाकर उसके पास बैठे हुए फोटो खिंचवाकर फेसबुक पर डाल देते हैं या मोदी जी को ट्वीट कर देते हैं. 

और शीर्षक लगा देते हैं- दिल्ली में '५६ इंच मोदी थाली' का आनंद लेते बरामदा संसद के दो वरिष्ठ सदस्य. 

हमने कहा- क्या इसके साथ 'सेन्ट्रल विष्ठा' शब्द जोड़ा जा सकता है ?

बोला- नहीं, नखदंत विहीन उपेक्षित लोग 'बरामदा संसद' में ही बैठते हैं. लेकिन तू 'सेन्ट्रल विष्टा' की जगह बार-बार 'सेन्ट्रल विष्ठा' क्यों बोलता है. यह लोकतंत्र और संसद अपमान है. 

हमने कहा- लोकतंत्र और संसद का अपमान तब होता है जब जाति-धर्म और विचारधारा के आधार पर लोगों से भेदभाव किया जाता है, असहमत लोगों को इस-उस बहाने से जेल में डाला जाता है, उनकी जबानें बंद की जाती हैं. और जहां तक 'विष्ठा' की बात है तो पता नहीं क्यों हमें इस शब्द में 'निष्ठा' और 'प्रतिष्ठा' जैसा गर्व और रुतबा अनुभव होता है. 

बोला- कोई बात नहीं, मोदी जी वाला ३०-४० हजार रूपए किलो का मशरूम चखने का संयोग तो नहीं बना लेकिन कोई बात नहीं उसका सस्ता विकल्प तो है, मोरिंगा के परांठे. तेरे यहाँ बाड़े में लगा तो हुआ है. आज उसी के परांठे बनवाता हूँ. 

हमने कहा- ले जा जितना चाहे. हम तो उसे कोई दस बार काट चुके हैं लेकिन फिर फूट आता है. लेकिन आज तक एक भी फली नहीं लगी. पता नहीं कौन सी नस्ल है. 

बोला- किसी भी जीव की ऐसी नस्ल ही महत्त्वपूर्ण होती है जिसकी संतति नहीं चलती. सब कुछ अपने में ही समेटे हुए. अनुपम, अद्वितीय, अलौकिक. 





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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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