Jul 29, 2024

2024-07-29 झूठ तो मर्दों की शोभा है


2024-07-29 


झूठ तो मर्दों की शोभा है 





माई फ्रेंड मिस्टर ट्रम्प,

वैसे तो हम आपसे कभी मिले नहीं । 2019 में आए थे अमरीका लेकिन कुछ तो हमारा शिड्यूल टाइट था और कुछ बिना बुलाए मेहमान बनना ठीक नहीं लगा । फिर भी जब आपसे चार साल छोटे नरेंद्र भाई आपको ‘फ्रेंड’ कह सकते हैं तो आपसे चार साल बड़े हम भी आपको फ्रेंड कह सकते हैं । आपने बाइडेन को बूढ़ा कहकर मज़ाक बनाया । वैसे 78 और 81 में कोई खास अंतर नहीं होता । अगर आप चाहते तो अपने कार्यकाल में ही 75 साल का नियम बनाकर आडवाणी जी की तरह बाइडेन को चुनाव से पहले ही बरामदे में बैठा सकते थे लेकिन मोदी जी की तरह आपको आइडिया ही नहीं आया ।अब हम बता रहे हैं तो आप 78 के हो गए । लेकिन नियम दूसरों के लिए बनाए जाते हैं अपने लिए नहीं जैसे कि मोदी जी के बारे 75 का नियम लागू  नहीं होगा । अब तो वे 75 से 100 तक का एजेंडा घोषित कर चुके हैं जब वे भारत को नंबर 1 बना चुके होंगे । 


हमारे यहाँ तो एक बार ‘अबकी बार मोदी सरकार’ चल गया लेकिन आप इस मंत्र की ढंग से साधना नहीं कर सके तो मंत्र ने काम नहीं किया ।कमजोर  तो हमारे यहाँ भी हो गया ।  400 पार के नारे के साथ चले थे लेकिन रह गए 240 और वह भी तरह तरह के धत कर्म करने के बाद । लेकिन कोई बात नहीं देश को नंबर 1  बनाने के लिए इतना भी कम नहीं है ।इरादे पक्के हों तो वैशाखी के सहारे भी मैराथन दौड़ी जा सकती है । ब्लेड रनर  तो आपको याद ही होगा ।  


तो लगे रहिए । जैसे हम शिक्षा का बजट कम करके, पेपर आउट करके, कोर्स से विकासवाद और पीरियोडिक टेबल हटाकर देश को विश्वगुरु बनाने में लगे हुए हैं वैसे ही आप भी अमरीका को फिर ग्रेट बनाकर ही छोड़ना । वैसा ही ग्रेट जैसा कालों को गुलाम बनाकर बनाया था ।


अब बाइडेन के बुढ़ापे वाला मुद्दा तो रहा नहीं ।  जवान तो आप भी नहीं हैं लेकिन लालची, लंपट और झूठा कभी बूढ़ा नहीं होता । बूढ़ा क्या, परिपक्व भी नहीं होता । काला कुत्ता बूढ़ा होने पर भी काला ही रहता है । समय के साथ आदमी के बाल भी सफेद होते हैं, तृष्णा भी कम होती है और वैराग्य का उदय भी होता है,  वह सन्यास भी लेता है लेकिन कुत्ता कभी कुत्तागीरी नहीं छोड़ता ।  

 

तो अब मुकाबला कमला से है तो बुढ़ापे वाला कार्ड तो चलेगा नहीं । कोई बात नहीं, और बहुत से आरोप हैं जो किसी भी विपक्षी पर लगाए जा सकते हैं बस, थोड़ा सा साहस मतलब झूठ और बेशर्मी चाहिए । आपके राष्ट्रपति रहते लोगों ने आपके गले में एक मीटर लगा दिया जिससे आपके झूठों की गिनती कर ली गई । हमारे यहाँ तो ऐसी व्यवस्था नहीं है । यदि कोई मीटर लगाया जाता तो वह भी कब का फुँक गया होता । 


हमने तो यहाँ के न्यूज चेनलों और आलेखों में पढ़ा कि आपने अमरीकी लहजे में स्तरहीन भाषा में कमला को ‘लिन’ कहा ।  पहले तो हमारी समझ में नहीं आया लेकिन फिर बच्चों से पता किया तो मालूम हुआ कि LYING को अमरीका में G को साइलेंट करके ‘लिन’ कर दिया जाता है । इसके दो मतलब होते हैं- एक तो झूठ बोल रहा और दूसरा झूठा । यह तो कोई बड़ा आरोप ही नहीं है ।सच के किसी का कोई काम चला है ?  देख लो, सुकरात, ईसा, गांधी का हश्र । आपके वहाँ पता नहीं  लेकिन हम तो यहाँ उस बूढ़े गांधी की रोज मिट्टी कूटते हैं । अजी, सच बोलकर किसी का राज चला है ? , सच बोलकर किसी ने धंधा किया है ? झूठ के बिना एक पत्नी को संभालना मुश्किल होता है । आपने तो कई पत्नियाँ और प्रेमिकाएं कबाड़ी हैं । झूठ का महत्व आपसे अधिक कौन जानता है ?  


हमारे यहाँ झूठ को सबसे बड़ा पाप माना गया है- झूठ बरोबर पाप । 

लेकिन चूंकि झूठ है बड़े काम की चीज इसलिए इसका महत्व भी बताया गया है ।  इस्लाम में युद्ध, किसी को मनाने मतलब पटाने के लिए, संधि करवाने के लिए आदि में झूठ जायज है । ऐसे ही महाभारत में भी कहा गया है-

न नर्मयुक्तं वचनं हिनस्ति न स्त्रीषु राजन्न विवाहकाले ।

प्राणात्यये सर्वधनापहारे पञ्चानृतान्याहुरपातकानि ॥ १६॥


स्त्रियों के साथ, परिहास में, विवाह के समय, प्राण और सर्वस्व अपहरण के समय झूठ बोलने में कोई बुराई नहीं है । अब तो सत्ता मतलब जीवन मरण और सर्वस्व अपहरण का प्रश्न है । हमारे यहाँ भी तो दो करोड़ नौकरियां, हर खाते में 15 लाख जैसे झूठ बोले ही गए थे और उनके लिए जब कोई शर्मिंदा नहीं है तो आप भी निधड़क और बेफिक्र रहिए । 


सुना है आपने कमला को पागल और चट्टान सी गूंगी कहा है । क्या हो गया तो । हमने भी तो शुरू में इंदिरा को गूंगी गुड़िया ही कहा था और अपने मुख्य विरोधी को पागल-पप्पू प्रचारित करके 10 साल निकाल दिए । अब उसे बालबुद्धि कह रहे हैं लेकिन उसने हमें बैलबुद्धि सिद्ध कर दिया है । लेकिन हम बाज कहाँ आ रहे हैं । झूठ की निरन्तरता और ऊंचे स्वर में बोला जाना ही उसकी शक्ति होती है । वैसे कितनी समानता है हम दोनों में ! वास्तव में सभी महान लोग एक ही तरह से सोचते हैं । 


अब हम आपके मार्गदर्शन के लिए कुछ और भी संस्कारी, शालीन तरीके बताते हैं हैं जो हम अपनी महान और मदर ऑफ डेमोक्रेसी का दुनिया में सम्मान बढ़ाने के लिए अपनाते हैं । 




वैसे तो हमारे शस्त्रों में कहा गया है- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते लेकिन वास्तव में हम उनका कितना सम्मान करते हैं यह तो नारी का जी ही जानता है । कभी कभी महिला पहलवानों की सड़क पर घिसाई-पिटाई या मणिपुर में उनकी निर्वस्त्र प्रदर्शनी या फिर किसी महिला के बलात्कारियों को संस्कारी बताकर अमृत महोत्सव पर मुक्त और अभिनंदित किया जाता है तो हमारा नारी सम्मान प्रमाणित हो जाता है । हम महिलाओं का धर्म, जाति, मूल देश आदि के आधार पर भी सम्मान करते हैं जैसे कि



 योरप की किसी महिला को हम ‘जर्सी गाय ‘ के विशेषण से संबोधित करते हैं लेकिन महत्व सड़क पर कूड़ा और धक्के खाने के लिए छोड़ दी गई गाय जितना भी नहीं देते । इसलिए यदि आप कमला को इसी तरह सम्मानित करना चाहते हैं तो बता दें कि वे तमिलनाडु की रहने वाली हैं । वहाँ की उम्ब्लाचेरी नस्ल की गाय का फ़ोटो भी आपकी जानकारी के लिए यहाँ दे रहे हैं । 


हम अपनी विरोधी, मुखर, अपने तथ्यों और अंग्रेजी से डराने वाली महिला सांसद को संसद से निकाल भी देते हैं और अपने भक्तों से उसे आम्रपाली (एक प्राचीन राज नर्तकी )कहकर अपनी कुंठा भी निकालते हैं । 


हमारे यहाँ देश भक्ति की आड़ में तीन एम चलते हैं। मुसलमान, मिशनरी और मार्कसिस्ट । यही हमारा दर्शन और प्रदर्शन है । अच्छा हुआ आपने एक एम (मार्कसिस्ट) तो कमला से चिपकाना शुरू कर दिया है । एक दो और भी ढूँढ़िए । 


वैसे फिलहाल आप जब तक चुनाव न हो जाएँ तब तक कान पर पट्टी बांधे रखिए और पट्टी पर खून का इंप्रेशन देने के लिए लाल रंग लगाए रहिए । यह प्रचार भी कर सकते हैं कि मुझ पर हमला अमरीका और लोकतंत्र के दुश्मनों ने करवाया है जैसे हम कहते हैं कि लोग मुझे कई कई किलो गालियां देते हैं और इस बार तो संसद में प्रतिपक्ष ने मेरा गला ही घोंट दिया था ।  

 

संपर्क बनाए रखें । हमें आपका मार्ग दर्शन करके बहुत खुशी होगी क्योंकि हम जगद्गुरु ही नहीं मदर ऑफ डेमोक्रेसी भी हैं ।


आपका मित्र 

भारत का एक अहर्निश सेवक 

जो न सोता है न किसी को सोने देता है । 




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Jul 26, 2024

240 पर अटका अहंकार और रंग-विज्ञान


240 पर अटका अहंकार और रंग-विज्ञान  



 


जब से लोगों ने सुना है कि यू ट्यूब पर वीडियो डालने से उसके देखे जाने (व्यूज) के हिसाब से पैसा मिलता है तो यू ट्यूब में वीडियो डालने का एक ऐसा भेड़ियाधसान  शुरू हो गया है कि लोग किसी दुर्घटना के समय किसी की सहायता करने के स्थान पर उसका वीडियो बनाकर डालने में अधिक फायदा देखते हैं । जहां देखो आदमी की आँखें सहज-स्वाभाविक नहीं कुछ असामान्य ढूंढती हैं जिससे कुछ ऐसा वीडियो बन जाए कि वायरल हो जाए ।कोई अपने वीडियो के प्रभाव के बारे में नहीं सोच रहा है, बस लाइक चाहियें । 


रवीश कुमार और ध्रुव राठी की यू ट्यूब वीडियो से होने वाली आय के बारे में सब सोचते हैं लेकिन उनके कंटेन्ट के बारे में नहीं । कुछ किसी पार्टी के एजेंडे के तहत भी यह काम कर रहे हैं । कुछ लाइक के चक्कर में बहुत ही असत्य, भ्रामक, अवैज्ञानिक, अंधविश्वासी और घृणा व दुष्प्रचार वाले वीडियो डाले जा रहे हैं । हालत ऐसी हो गई है कि ज्ञान की बजाय अज्ञान और झूठ अधिक फैलाया जा रहा है । तुलसीदास के वर्षा ऋतु वर्णन की तरह-


हरित भूमि तृण संकुल, समुझि परहिं नहिं पंथ 

जिमि पाखंड विवाद तें लुप्त होहिं सद्ग्रंथ 


जब से स्मार्ट फोन हाथ लगा है तोताराम भी कई बार हमें प्रमाणस्वरूप यू ट्यूब के वीडियो दिखाने लगता है । 


आज 23 जुलाई है । 400 पार का अहंकार जब किट किट करता हुआ 240 पर अटक गया तो जिसे देखो अर्थशास्त्री बनकर सरकार द्वारा सामान्य लोगों को दी जाने वाली तरह तरह की राहतों के वीडियो डालने लगा ।दुर्गति को केन्द्रीय सरकारी कर्मचारियों और पेंशनरों की नाराजगी से जोड़कर नए बजट में पुरानी पेंशन, डीए, आठवाँ वेतन आयोग, कोरोना के बहाने से खा लिया गया 18 महिने का डीए का एरियर आदि की संभावनाओं से लोग एडवांस में बल्ले बल्ले गाने लगे थे । 


एक छुटभैय्या पत्रकार तो हमसे पूछने लगा- मास्टर जी, इतने पैसों का क्या करेंगे ? हमने भी कह दिया या तो 18 अगस्त को क्रूज पर इटली में 83 वां जन्मदिन मना लेंगे या किसी पोते-पोती की दो-चार प्रीवेडिंग कर देंगे ।निर्मला जी को भी बुला लेंगे संयोग से उनका जन्म दिन भी 18 अगस्त को ही पड़ता है । 


तोताराम आज सुबह नहीं आया । 


तोताराम के न आने का कारण बारिश और खराब सड़क को तो नहीं माना जा सकता । हालांकि कल ठीक ठाक बारिश हुई थी । हमारे यहाँ की सड़कों में भी नियमानुसार कमीशन खाया गया है फिर भी वे अयोध्या के नव निर्मित ‘रामपथ’, रामलला के गर्भ गृह की छत, बिहार के पुल और भारतीय रेल नहीं है जो जब चाहे धोखा दे जाएँ ।  


तोताराम आया कोई पौने 11 बजे ।  


हमने छेड़ा- क्या बात है ? आज तो ! एकदम ऐसे जैसे मोदी जी के साथ सेल्फ़ी लेनी हो ।


   




बोला- इसमें क्या बड़ी बात है ? यह कोई नेहरू, इंदिरा, राजीव, राहुल जैसे रजवाड़ों का राज थोड़े ही है जो सात पहरों में रहते हैं, किसी सामान्य जन से मिलते तक नहीं । यह मोदी जी जैसे गरीब और पिछड़े उदार और जनसेवी का राज है । आज कोई भी कभी भी मोदी जी के साथ सेल्फ़ी ले सकता है । जगह जगह भले ही पीने का पानी उपलब्ध न हो, लेकिन मोदी जी का सेल्फ़ी पॉइंट जरूर मिल जाएगा । 


हमने कहा- ये सब अपने आत्मप्रचार के नाटक हैं कि करोड़ों रुपए खर्च करके जगह जगह प्लाइवुड के पुतले खड़े कर दिए । वास्तव में तो मोदी जी अपने और कैमरे के बीच किसी को नहीं आने देते फिर चाहे वह नड्डा हो, राजनाथ हो या जकरबर्ग । 


 


इटली की दक्षिणपंथी,  युवा, मुखर, सुंदर प्रधानमंत्री मेलोनी की बात और है । देखा नहीं, हँसता हुआ नूरानी चेहरा ? 


बोला- बात साफ कर । कोई भी बात हो भक्तों की तरह या तो मेजें पीटने लगेगा या ‘हो-ही, हो ही’ करने लगेगा या खीसें निपोरने लगेगा । 


हमने कहा- हम तो आज तेरी इस सजधज का मकसद जानना चाहते थे । 


बोला- आज मोदी 3.0 का पहला बजट आने वाला ।


हमने कहा-  इससे पहले नेहरू जी तीन बार प्रधानमंत्री बने थे । तीनों बार कांग्रेस पूर्ण बहुमत से आई थी  लेकिन ऐसा 3.0 का तमाशा, रिकार्ड और प्रचार नहीं हुआ था जो ये 240 में कर रहे हैं । और तू भी सुन ले, चाय तक तो ठीक है लेकिन उससे आगे कुछ नहीं । हमारे पास फूंकने के लिए कौनसा जनता का पैसा है जो साउथ ब्लॉक में देसी घी का मेवा डला हुआ हलवा पेलेंगे और वह भी गरीबों को दिखा दिखाकर । 


बोला- कौन तेरी चाय के लिए आता है । यह तो बचपन में रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने वाले मोदी जी प्रधान मंत्री बने हैं तब से चाय पीना और चाय पर चर्चा करना राष्ट्रीयता से जुड़ गया है । इसलिए राष्ट्रीय कर्तव्य मानकर पी लेता हूँ वरना प्राचीन भारतीय संस्कृति में विश्वास करने वाले सनातनी लोग चाय को ब्रह्मचर्य और सात्विकता के लिए हानिकारक मानते हैं ।  


हमने कहा- वैसे तेरा क्या अनुमान है ? कैसा होगा बजट ? 


बोला- मैं तो अधिक नहीं जनता लेकिन रंग विज्ञान में विश्वास करने वाले कुछ सनातनी अर्थशास्त्री मानते हैं कि रंगों से व्यक्ति और उसके आचरण का अनुमान लगा सकते हैं । आज ही नेट पर एक अखबार में पढ़ा है कि निर्मला जी ने बजट प्रस्तुत करते समय 2019 में गुलाबी सिल्क साड़ी पहनी थी तो बजट का मेसेज था स्थिरता और गंभीरता, 2020 में पीली सिल्क साड़ी थी जो आनंद और ऊर्जा का प्रतीक है, 2021 में लाल बॉर्डर की ऑफ व्हाइट साड़ी थी जो कोरोना पीड़ित देश के लिए मंगलकामना थी, 2022 में पारंपरिक बोमजई साड़ी थी स्थिरता और शक्ति की प्रतीक । तभी तो अर्थव्यवस्था पांचवें नंबर पर आ गई । 2023 में साड़ी का रंग लाल था जो संकल्प, साहस और शक्ति का प्रतीक है। तभी तो पार्टी ने 400 पार का साहसी नारा लगाया और निर्मला जी भी फोर्ब्स के अनुसार दुनिया की 100 शक्तिशाली महिलाओं में आ गई । 


हमने कहा- लेकिन वे चुनाव खर्च के लिए पर्याप्त पैसा तो नहीं जुटा पाईं । और वह चार सौ पार का नारा भी फुस्स हो गया । राम राम करके 240 पकड़ पाए वह भी घपलेबाजी से । 


इसी चर्चा में 11 बज गए । तोताराम ने अपना मोबाइल खोलकर उसमें बजट लाइव लगाकर स्टेंड पर रख दिया । 


हमने कहा- तोताराम, ध्यान से देखकर बताया कि निर्मल जी की साड़ी का रंग क्या है । 


बोला- मास्टर, आज तो साड़ी का रंग सफेद है । 


हमने पूछा- तो तेरे रंग-शास्त्र के अनुसार इसका क्या अर्थ है ? 


बोला- इसका अर्थ है कि सरकार चलाने के लिए समझौता करना है । अब एक अकेला सब पर भारी नहीं पड़ पा रहा है । अब तो एक पर दो जन भारी पड़ रहे हैं । सबसे पहले तो इन्हीं राहु-केतुओं को संतुष्ट किया जाएगा । उसके बाद जहां जहां लोकसभा में सीटें कम मिली हैं उन्हें देंगे ।


हमने पूछा- और न्यूनतम समर्थन मूल्य ? 


बोला-  दे तो दिया बिहार को साठ और आंध्र को पंद्रह हजार करोड़ । यह  ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’  ही तो और क्या है ?  


हमने कहा- लेकिन वह तो अधिकतर इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए है जिसमें आधा तो ‘एक देश : एक ठेकेदार’ को चला जाएगा । बचेगा क्या ? 


बोला- 1991 में सरकार बचाने के लिए 1-1 करोड़ में सांसद खरीदे गए थे तो 28 सांसदों के लिए इतना क्या कम है ?  फिर ये कोई अपने सांस्कृतिक  ब्रांड वाले थोड़े हैं । राह चलते लोकल ब्रांड वाले हैं । 


बातें चलती रहीं और बजट का पटाखा भी फुर्र फुस्स हो गया ।

 

हमने पूछा- तोताराम, निर्मल बाबा के अढ़ाई घंटे के इस प्रवचन का सार क्या है ?


बोला- सार यही है कि अब मुसलमानों वाली हरी और कम्यूनिस्टों वाली लाल चटनी की जगह संतों वाली भगवा चटनी खाया कर और गर्व के पेट फुलाया कर ।


हमने कहा- एक अंतिम प्रश्न । हम अभी तक निर्मला जी के बालों के रंग को लेकर भ्रमित हैं । कभी सफेद और कभी काले । 


बोला- वे पहले बाल रँगा करती थीं और अखबार वाले मोदी जी के फ़ोटो की तरह और किसी के लिए इतने सतर्क नहीं रहते । जो भी फ़ोटो आगे पड़ गया सो लगा देते हैं ।  वैसे अब उन्होंने निश्चय किया है कि वे बाल नहीं रँगेंगी । मोदी जी की तरह ज्ञान, विद्वत्ता और वैराग्य की प्रतीक दुग्ध धवल केशराशि ।   


-रमेश जोशी  


 




 


 


 


 



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Jul 25, 2024

13 जुलाई को मोदी जी कहाँ थे ?


13 जुलाई को मोदी जी कहाँ थे ? 


आज तोताराम ने आते ही ईडी अधिकारी के लहजे में पूछा- 13 जुलाई को मोदी जी कहाँ थे ? 

हमने कहा- हमारी क्या औकात जो मोदी जी से कह सकें कि जब कहीं जाएँ तो हमें बताकर जाया करें । महान लोग किसी को कुछ बताते नहीं । क्या बुद्ध ने अपनी पत्नी यशोधरा को बताया कि मैं इतने बजे तुम सब को छोड़कर कर चुपचाप निकल जाऊंगा । हालांकि उनकी पत्नी को इसी बात का बहुत दुख रहा और उसने अपनी यह पीड़ा अपनी एक सहेली से साझा की- 

सखि, वे मुझसे कहकर जाते 

कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ बाधा ही पाते । 

जाने का उतना दुख नहीं है जितना उपेक्षा का । फिर सहचरी, अर्धांगिनी का क्या मतलब । जब कोई दुनिया से मन की बात कर सकता है तो क्या घर वाली को इतना भी कॉन्फिडेंस में नहीं लिया जा सकता ! हो सकता है कि बुद्ध इसी झेंप को जीवन भर झेलते रहे हों । जब आदमी बड़ा हो जाता है तो  मन की असली बात किसी से भी कहना और अपने अपराध को स्वीकार कर पाना उसके लिए बहुत कठिन हो जाता है ।रेडियो पर बतरस ठोंक देना और बात है । पता नहीं, मोदी जी ने भी विश्व के कल्याण के लिए घर छोड़ते समय जसोदा बेन को बताया था या नहीं । 

लेकिन हम सच कहते हैं कि मोदी जी ने हमें नहीं बताया कि वे 13 जुलाई को कहाँ थे । 


बोला- मैंने तो एक छोटा सा सामान्य प्रश्न किया था और तू पहुँच गया भगवान बुद्ध तक । 

हमने कहा- अभी गूगल पर देखते हैं । 

देखा तो पाया कि उस दिन मोदी जी मुंबई में थे और हमेशा की तरह उन्होंने कई तरह के उद्घाटन, शिलान्यास किए, रोड़ शो करके भक्तों को दर्शन दिए , फ़ोटो खिंचवाए आदि आदि । 

और रास्ते में कहीं कोई ट्रेन दिखाई दे गई होगी तो उसे हरी झंडी भी दिखा दी होगी । 

बोला- लेकिन थे तो भारत में ही या फिर कहीं विदेश चले गए थे ? 

हमने कहा- वैसे तो मोदी जी पर सारी दुनिया की जिम्मेदारी है । जगद्गुरु और विश्व नेता जो ठहरे । पता नहीं कब किस को ज्ञान या सलाह की जरूरत पड़ जाए । पता नहीं कब कहाँ युद्ध रुकवाना पड़ जाए । वे जगत के लिए वैसे ही महत्वपूर्ण हैं जैसे हरियाणा के आध्यात्मिक विकास के लिए राम रहीम । तभी तो उन्हें जब तब पेरॉल पर छोड़ दिया जाता है कि वे  भक्तों का कल्याण कर सकें ।  हेमंत सोरेन की तरह  खतरनाक अपराधी थोड़े हैं जो जमानत के समय भी अनेक शर्तें लगाई जाएँ कि वे उसी दिन जेल में लौट आएंगे, किसी से कोई राजनीतिक चर्चा नहीं करेंगे । या केजरीवाल को 50 हजार का बॉन्ड भरना पड़ेगा, किसी फाइल पर हस्ताक्षर नहीं करेगा, सचिवालय नहीं जाएगा । 

 

बोला- मास्टर, तू फालतू बात बहुत करता है । वैसे ही जैसे कोई मोदी जी से पूछे कि वे मणिपुर कब जाएंगे तो वे कहेंगे कि नेहरू जी कितनी बार मणिपुर गए थे । जो पूछ रहा हूँ उसका सीधा सीधा जवाब दे ।  





 


हमने कहा- तोताराम, तू जिस तरह से मोदी जी के कार्यक्रम के बारे में पूछ रहा है उससे हमें शंका होने लगी है । बड़े लोगों के सभी कार्यक्रम गुप्त रखे जाते हैं ।  वे 140 करोड़ भारतीयों के एकमात्र और सर्वसम्मत नेता हैं । वे जहां चाहें जाएँ, बताकर जाएँ या बिना बताए जाएँ उनकी मर्जी । वे कोई सरकस के शेर थोड़े हैं जो एक पिंजरे में दर्शकों के लिए उपलब्ध रहेंगे । फिर भी साफ साफ बता कि तुझे विशेषरूप से मोदी जी के 13 जुलाई के कार्यक्रम के बारे में ही रुचि क्यों है ?


बोला- मुझे लगता है कि मोदी जी 13 जुलाई को मुंबई नहीं गए थे । वहाँ उन्होंने अपने किसी डुप्लिकेट को भेज दिया होगा और खुद अमरीका गए होंगे । 

हमने पूछा- तू यह सब इतने आत्मविश्वास से कैसे कह सकता है ? 

बोला- यह मैं नहीं खुद ट्रम्प ने कहा है । 

हमने कहा- यह लंबी लंबी छोड़ने वाले नेताओं की तरह से एक और गप्प । फोन आया था क्या ट्रम्प का ? 

बोला- एक चुनावी सभा में खुद पर हुए हमले के बाद ट्रम्प ने खुद कहा है- मैंने खुद को सुरक्षित महसूस किया क्योंकि ईश्वर मेरे साथ थे ।  

अब इस दुनिया में आज के दिन साक्षात ईश्वर और है कौन मोदी जी के अलावा । विश्वास नहीं हो तो चंपतराय से पूछ ले । 

हमने कहा- लेकिन हादसे वाले किसी भी फ़ोटो में कहीं कोई सफेद दाढ़ी वाला दिखाई तो नहीं दिया । 


बोला- तुझे पता होना चाहिए कि भगवान कभी भी कोई भी रूप धारण कर सकता है । भक्त उसे हर रूप में पहचान लेते हैं । तेरे जैसे नास्तिक के भाग्य में यह सब कहाँ ? 



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Jul 21, 2024

सड़ा नारियल

सड़ा नारियल 


आजकल सबसे ज्यादा बेकदरी आम की हो रही है । आम आदमी पार्टी के छुटभैये तो क्या मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, सांसदों तक को बात-बिना बात जेल में ठूँस दिया जाता है । ऐसे ही आम आदमी, कोई भी तत्काल न्याय के नाम पर 50-50 साल पुरानी बस्तियों पर बुलडोजर चलवा देता है । भले ही महिलाओं, दलितों और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करने वालों को तत्काल जमानत दे दी जाती है और जानबूझकर बरसों तारीख नहीं दी जाती लेकिन किसी खास के लिए खास मकसद से रात को भी न्यायाधिपति बैठ जाते हैं । खुले में नकली, अमानक और अप्रामाणिक दवाइयाँ बनाने वालों से बॉन्ड के नाम पर चन्दा लेकर छोड़ दिया जाता है लेकिन मात्र पुलिस के प्रायोजित अनुमान पर हिरासत में लिए गए लोगों की सुनवाई करने के लिए न्यायाधिपतियों को बरसों समय नहीं मिलता । वैष्णव ढाबों और मिष्ठान्न भंडारों में नकली पनीर और मावे की मिठाइयां बेचने वालों को एक दिन चुपचाप माफी दे दी जाती है, प्रमाणित बलात्कारियों को  संस्कारी बताकर ‘अमृत महोत्सव’ के शुभ अवसर पर रिहा कर दिया जाता है और पार्टी के लोग बड़ी बेशर्मी से उन्हें मिठाई खिलाकर स्वागत करते हैं । यहाँ तक कि उनकी पत्नियाँ भी उन्हें बलात्कारी नहीं मानती वे उन्हें  धर्म योद्धा मानकर धन्य होती हैं ।असत्य, भ्रम और पक्षपात का अंधकार बहुत घना है । 


और तो और अब तो काँवड़ यात्रा के पवित्र मार्ग पर हरे रंग के मुस्लिम आम पर भी किसी ‘काँवड़ जिहाद’ की आशंका के कारण अपनी पहचान प्रदर्शित करने का फरमान जारी कर दिया गया है । शायद पीले या भगवा रंग के फल या आम इससे प्रतिबंध से मुक्त हैं । 


आजकल सब्जियां महंगी हैं और आम सस्ता । कोई आने वाला टमाटर, अदरक और लहसुन नहीं लाता । जो भी आता है बस आम ही लाता । हमारे इस इलाके में सब्जी और फलों के विक्रेता अधिकतर मुसलमान ही है । ऐसे में बहुत शंका होती है कि कहीं कोई मुसलमान आम न ले आए । अब तक तो पता नहीं था कि मुसलमान के ठेले से खरीदे आम से धर्म भ्रष्ट हो जाता है ।मंदिरों तक में पुजारी ऐसे वाहियात प्रश्न नहीं पूछते थे । लेकिन आज कोई भी लफंगा एक खास रंग का गमछा गले में डालकर शंकराचार्य बन जाता है और धर्म की ध्वजा उठा लेता है । 


आज पता चला कि हिन्दू धर्म कितना नाजुक है । पहले हिन्दू धर्म इतना कमजोर नहीं था । स्कूलों में हर त्योहार के पहले दिन प्रार्थना सभा में उस त्योहार के बारे में अध्यापक और उस धर्म के विद्यार्थी भी कुछ न कुछ  बताया करते थे ।स्कूल में सभी धर्म के बच्चे त्योहार के अगले दिन मिठाइयां, मूंगफलियाँ, रेवड़ियाँ आदि लाया करते थे और क्लास के सभी बच्चे और हम मजे के खाया करते थे ।  


कहा जाता है जब आदि शंकराचार्य काशी में श्मशान घाट जा रहे थे तब उनका सामना एक चांडाल से हो गया। आदि शंकराचार्य ने उन्हें हटने को कहा। जवाब में चांडाल हाथ जोड़ कर बोला- महाराज क्या हटाऊं, शरीर या आत्मा ?  चांडाल के दार्शनिक विचार से प्रभावित होकर उन्होंने चांडाल को अपना गुरू बना लिया था। वह ज़माना और था !बोलना तो दूर, आज तो बच बचकर चलते भी लिंचिंग हो जाती है ।  



आज के गली गली घूमने वाले हिन्दू धर्मज्ञ वज्र लंठ हैं, न बात करते हैं, न सुनते हैं । उनके पास  संवाद का एकमात्र साधन लट्ठ ही है । 


तो बात आम से शुरू हुई थी । चूंकि आम खपत से ज्यादा थे तो फ्रिज में रखे रखे भी उनका स्वरूप ईडी के चक्कर में फँसाये गए विपक्षी नेता की तरह विरूपित होने लगा था । हमने बहू से कहा- बेटा, आज रविवार है । सो समय मिले तो फ्रिज को भी ठीक कर लेना । जो आम जल्दी खराब होने वाले लगें उन्हें अलग कर देना । चाय से पहले हमें और तोताराम अंकल को भी एक दो आम दे देना । 


मोदी जी ने एक बार कहा था कि वे ड्रोन भेज कर कहीं भी बैठे बैठे देश में कहीं भी हो रहे निर्माण कार्यों की निगरानी कर लेते हैं । शायद इन दिनों अपने तीसरे कार्यकाल के अमृत काल के 50 दिन का एजेंडा बनाने के चक्कर में बिहार के पुलों की तरफ ध्यान नहीं दे पाए । तभी 15 दिन में 10 पुल गिर गए ।ऐसे ही कभी कभी तोताराम भी मोदी जी के बादलों और रडार के विज्ञान के अनुसार हमारे यहाँ एयर स्ट्राइक कर देता है । आज भी पता नहीं कहाँ छुपा खड़ा था ।


बोल पड़ा- ठीक है । सड़ा नारियल होली में और सड़ा आम तोताराम को । अरे कंजूस मास्टर,  परोपकार में ऐसा निकृष्ट कर्म तो अंबानी की प्री वेडिंग में एक पत्रकार को हाथी वाली खिचड़ी खिलाते समय भी नहीं किया गया होगा । लेकिन क्या किया जाए । आजकल लोगों ने सबसे अधिक गंदगी धर्म-पुण्य और उत्सव-त्योहार के नाम पर फैला रखी है । तभी जितने लोग मंदिरों का प्रसाद, शादी की मिठाइयां खाकर और तथाकथित सबीलों पर मुहर्रम या निर्जला एकादशी को मीठे जल की सेवा से मरते हैं उतने तो कोरोना से  नहीं मरे होंगे । 


हमने कहा- तोताराम, तुझे पता है, हमारे पिताजी थाली में एक कण भी जूठा नहीं छोड़ते थे, हमारे नानाजी थाली धोकर पीते थे । जब हम जूठी रोटी गाय या कुत्ते को देने का तर्क देते थे तो कहते थे- गाय और कुत्ते को भी अछूती रोटी ही देनी चाहिए । हम तुझे कोई अखाद्य वस्तु थोड़े देंगे, ऐसा तूने सोच भी कैसे लिया । 


बोला- यह कोई किसी अनुशासित पार्टी की मीटिंग थोड़े ही है जिसमें एक ही आदमी बोलेगा और सब मेजें थपथपाएंगे । यह कोई सेंगोल वाली सेंट्रल विष्ठा थोड़े है, यह बरामदे की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वाली उन्मुक्त बरामदा संसद है । क्या मजाक भी नहीं कर सकते ?  हर लोकतान्त्रिक व्यक्ति हास्य को पसंद करता है और उसका आनंद लेता है । लोकतान्त्रिक के वेश में छुपे डिक्टेटर की बात और है ।  


 

बस इतना बता दे कि यह आम हिन्दू है या मुसलमान ?


हमने कहा- कपड़ों और संतानों की संख्या से पहचान करने वाले ईश्वर के अवतार या ईश्वर के द्वारा सीधे किसी महान कार्य के लिए विशेषरूप से भेजे गए अवतारी पुरुष की बात हम नहीं जानते लेकिन हमें तो आजतक समझ में नहीं आया कि इनमें फ़र्क कैसे करें ?फलों का न खतना होता है न ये किसी खास तरह की दाढ़ी रखते ।  किसी भारतीय मुसलमान की गाय के दूध का क्या धर्म होगा ? पाकिस्तान की गायें किस धर्म की मानी जाएंगी ? 


ठीक है अगर किसी के कमजोर हिन्दू धर्म को बचाने के लिए काँवड़ मार्ग में सभी मुसलमानों के ठेलों और दुकानों पर उनका नाम लिखवा दिया जाएगा तो सत्य का सम्पूर्ण ज्ञान हो जाएगा ? हमारे साथ लीलाधार नाम का एक मुसलमान लड़का पढ़ता था । हमारे एक मामा का नाम हरिबख्श था । हमारे गाँव में एक पंडित जी थे जिनका नाम हनुमानबख्श था । हमारे भाई साहब का एक सहपाठी बख्शाराम था । हमारे जोधपुर के एक शायर है शीनकाफ निजाम । क्या समझे ? यह नाम उन्होंने शायद मुसलमानों शेयरों में प्रतिष्ठित होने के लिए अपने वास्तविक नाम ‘शिव किशन बिस्सा’ से निकाला है ।  


और फिर अपने कृष्ण प्रेम के कारण  ब्रजभूमि में बस जाने वाले रसखान को किस केटेगरी में रखेंगे जिनके बारे में भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने लिखा है- 


इन मुसलमान हरिजनन पर कोटिन हिन्दू वारिए ।  


बोला- क्या बताऊँ, धर्म और राष्ट्र का मामला है । 


हमने कहा- याद रख, डिक्टेटरों के ये दो प्रिय और सुरक्षित हथियार हैं । अगर इनकी भूमिका को पहचानकर सही समय पर प्रतिरोध नहीं करेगा तो फिर एक दिन ऐसा आएगा कि बोलने लायक भी नहीं रहेगा । 





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Jul 17, 2024

जो होता है अच्छा होता है


जो होता है अच्छा होता है 



कल रात जबसे  हमने एडवोकेट रवींद्र कुमार का उनके चेनल हिन्द वॉइस पर अनंत अंबानी की शादी के बारे में एक वीडियो देखा है तभी से हम परेशान हैं । 


वैसे हमारा इस शादी से कोई संबंध नहीं सिवाय इसके कि हम भारत के नागरिक है या फिर हम ईशा की ससुराल की तरफ से होने के कारण मुकेश अंबानी के लिए उच्च मान्य समधी हैं । स्पष्ट कर दें कि हम पीरामल परिवार के मूल स्थान बगड़ (राजस्थान) के पास से हैं । सुना है, इस शादी में दुनिया भर से तरह तरह के विशिष्ट और विचित्र तीन-चार हजार लोग शामिल हुए ।  उत्सुकताववश दो अनामंत्रित मनुष्य उस शादी में समस्त सिक्योरिटी को धता बताकर घुस गए । हम इतना साहस नहीं कर सकते । 


हमें न तो इस शादी में बुलाया गया और न ही हम गए ।फिर भी पता नहीं क्यों हम सामान्य नहीं हो पा रहे थे और बरामदे में चुप बैठे थे कि तोताराम ने हमारा ध्यान भंग किया, बोला- क्यों मुहर्रमी सूरत बनाए बैठा  है ? 


हमने कहा–  आज वास्तव में मोहर्रम ही तो है लेकिन हम कोई मातम नहीं मना रहे हैं । ये सब बातें अब प्रतीकात्मक रह गई हैं । किसी भी समाज के इतिहास को समझने के अवसर । अब किसी हुसैन को कोई खतरा नहीं है तो हथियारों और आत्मप्रताड़ना का भी कोई अर्थ नहीं रह गया है ।और मोहर्रम के जुलूस में  फिलस्तीन का झण्डा फहराना तो शुद्ध रूप से धर्म में राजनीति का विष घोलना है ।


इसी तरह अब जब गरीब के पास रोटी पर लगाने तक को तेल नहीं है तो सरयू तट पर लाखों दीये जलाना एक तमाशा, आतंक और जनता के धन का अपव्यय है । मोहर्रम पर रोक और काँवड़ियों पर हेलिकॉप्टर से पुष्प वर्षा दोनों इकतरफा फैसले हैं । रामनवमी के दिन तलवार लेकर किसी मस्जिद पर चढ़कर भगवा झण्डा फहराना न तो राम की मर्यादा है और न कोई भक्ति । 


न हम दुखी है, न सुखी । हाँ, एक दुविधा और आशंका जरूर है । 


बोला- मैं इसमें क्या सहायता कर सकता हूँ ? 


हमने कहा- तुम हमारे कुछ प्रश्नों का सही-सही संक्षिप्त उत्तर देना और उसके बाद यदि आवश्यक हुआ तो उनका सत्यापन भी कर देना । 


हमने पूछा- हमने तुम्हारे साथ अनंत अंबानी की शादी का वीडियो कितनी देर तक देखा था ?


बोला- देखा क्या, दो मिनट में ही सिर दर्द का बहाना बनाकर भाग लिया । 

हमारा दूसरा प्रश्न था- क्या हम अंबानी की शादी के इस छमाही कार्यक्रम फरवरी से जुलाई 2024 तक कभी जामनगर, इटली, मुंबई गए ?


बोला- इटली, मुंबई ? चार साल से रीको मोड़ वाले एसबीआई तक महिने में एक बार पेंशन लेने के अतिरिक्त बस मई 2024 में सीकर के साहित्यकार गोरधन सिंह शेखावत की शोक सभा में बस डिपो तक जरूर गया था । 


हमने कहा- तो फिर यही बात एक कागज पर लिखकर दे दे । 


बोला- कहीं कोई ईडी, इनकम टेक्स या यूएपीए का चक्कर तो नहीं पड़ गया । आजकल सरकार सतर्क हो गई है और लिखने पढ़ने वालों पर कुछ ज्यादा ही । वैसे तो तेरी बुद्धिजीवियों में कोई गिनती होती नहीं कि तुझे स्टेंस स्वामी की तरह बिना जमानत के हिरासत में ही मार दिया जाए या पुरकायस्थ की तरह यूँ ही गिरफ्तार कर लिया जाए । फिर भी जो सरकार कोई अध्यादेश पास करवाने के लिए सौ से अधिक सांसदों को बाहर निकाल दे, जिसके दिमाग में ‘विभाजन विभीषिका दिवस’ और ‘लोकतंत्र हत्या दिवस’ जैसे उत्सव आते हों वह कुछ भी कर सकती है ।  कहीं स्टेटमेंट देकर फंस तो नहीं जाऊंगा क्योंकि अगर सरकार नीचता पर उतर आए तो कुछ भी कर सकती है । 


हमने कहा- हालांकि संसद में जैसे ‘सेंगोल’ के सामने साष्टांग हुए थे वैसे तो नहीं पर  2014 में मोदी जी ने संसद की सीढ़ियों पर मत्था तो टेका था और अबकी बार संविधान को माथे से लगाया था । मोदी जी लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं । कुछ भी ऐसा वैसा नहीं होगा । 


बोला- फिर भी बात अच्छी तरह स्पष्ट कर। बिना सब कुछ जाने कुछ भी लिखकर नहीं दूंगा । 


हमने कहा- हमने कल अंबानी की शादी के बारे में हिन्द वॉइस पर एडवोकेट रवींद्र कुमार की किसी के साथ बातचीत सुनी थी । वे बता रहे थे कि शादी का कार्ड एक डेढ़ लाख का था, कुछ को रिटर्न गिफ्ट में 2-2 करोड़ की घड़ियाँ भी दी गईं । अब उन सबको लाखों का टेक्स देना पड़ेगा । 




बोला- तो तू क्यों परेशान हो रहा है ? तुझे न तो शादी का कार्ड मिला, न कोई गिफ्ट । और न अब कुछ आना ।शादी के बटेरे के चार लड्डू भी नहीं । तेरी तो अंबानी के हाथी की खिचड़ी खाने तक की हैसियत नहीं है । 


हमने कहा- तोताराम, अभी तो तूने भी सरकार की शक्ति का वर्णन किया था । हम भी सरकार की ताकत को मानते हैं । राज का रास्ता जनता के सिर के ऊपर से होता है । जो सरकार सालों पुराने केस में किसी मोदी का नाम लेने पर राहुल की सदस्यता छीन सकती है वह कुछ भी कर सकती है । यह ठीक है कि हम कहीं नहीं गए लेकिन थोड़े देर के लिए तेरे यहाँ शादी के फ़ोटो तो देखे ही थे । 


बोला- तो उससे क्या होता है ।


हमने कहा- कुछ भी हो सकता है । तूने वह भैंस वाला का किस्सा तो सुन ही होगा ।

एक भैंस भागी जा रही थी । उसे देखकर चूहे ने पूछा- बहिन, क्यों भाग रही हो ? 


भैंस ने कहा- सुना है कुछ सरकारी कर्मचारी हाथियों को पकड़ने के लिए जंगल में आए हुए हैं । 


लेकिन तुम तो भैंस हो- चूहे ने कहा ।

 

भैंस बोली- हूँ तो मैं भैंस लेकिन यह सिद्ध करने में कि ‘मैं भैंस हूँ’ दिल्ली के उपमुख्यमंत्री सिसोदिया की तरह पता नहीं कितना समय लग जाए । 


उसकी बात सुनकर चूहा भी उसके साथ भागने लगा ।  



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Jul 15, 2024

हैप्पी का जलवा


हैप्पी का जलवा 



कल हम तोताराम के घर पर उसके साथ बैठकर देश के सबसे धनी व्यक्ति के बेटे की विश्व-चर्चित और ‘हम आपके हैं कौन’ के बाद पहली बार भारतीय संस्कृति के अनुसार सर्वांगपूर्ण शादी लाइव देखने का धैर्य नहीं जुटा सके और चले आये। इसके लिए हम भारतीय संस्कृति के सभी उद्दंड भक्तों से क्षमा मांगते हैं ।

 

आज तोताराम ने आते ही बरामदे से ही हांक लगाई- मास्टर, चाय के साथ कल का बचा हलवा भी गरम करवाकर लेते आना । उसके साथ ही आज दोनों भाई मेरे फोन पर अनंत की शादी के फ़ोटो भी देखते रहेंगे । 


हमने कहा- तोताराम, जैसे देश भक्ति सिद्ध करने के लिए ‘मन की बात’ सुनना ही नहीं बल्कि उसे सुन-देखते हुए अखबार में फ़ोटो छपवाकर ऊपर भेजना भी जरूरी होता है क्योंकि उसी के आधार पर आपकी जनसेवा प्रमाणित होती है और चुनाव में टिकट मिलता है ।


हमारे बस का यह सब नहीं है क्योंकि हमारी ऐसी कोई राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक महत्वाकांक्षा नहीं है । वैसे हम मोदी जी की तरह अपने ‘मन की बात’ सबको सुनाना तो चाहते हैं लेकिन किसीके मन  की सुनना नहीं चाहते । अगर कभी किसी स्थानीय कवि गोष्ठी में शामिल होते हैं तो हम कविता सुनाकर खिसक लेते हैं । लेकिन जिनकी कोई महत्वाकांक्षा होती है उन्हें सुनना ही नहीं पड़ता बल्कि और भी कई तरह के नाटक करने पड़ते हैं- संसद में मेजें भी थपथपानी पड़ती है और तब तक  ‘हो-ही, हो-ही’ ’ का घोष करते रहना पड़ता है जब तक यह कनफर्म न हो जाए कि प्रभु ने देख लिया है; जैसे कि बूढ़ी रंडी को भारी जेब वाले बदसूरत और घोंचू ग्राहक को बहकाने-बहलाने के लिए ‘मुग्धा नायिका’ का झूठा अभिनय करना पड़ता है जबकि दोनों पक्ष अपनी अपनी वास्तविकता से वाकिफ होते हैं।


बोला- देख ले, पिछड़े, नीरस मास्टर ! कहाँ लगता है ऐसा मेला।  कब कब उतरती है इंद्रसभा धरती पर।  इससे पहले ग़रीबों का सहारा बनकर एक बार ‘सहारा श्री’ ने रचाया था ऐसा रास और फिर सबका पैसा लेकर सुब्रत राय हो गए चम्पत राय। उनके बेटों की 500-500 करोड़ की शादियों में तथाकथित समाजवादी मुलायम सिंह से लेकर राष्ट्रवादी अटल जी तक हाजिर थे। 


 


ऐसा कहते हुए तोताराम ने हमारे सामने तरह तरह की, रंग-बिरंगी, बड़े-बड़े तथाकथित सेलेब्रिटियों के फ़ोटो की धुआंधार बारिश ही कर दी ।


हमने कहा- अपने को ‘शहंशाह’, ‘किंग’ और ‘महानायक’ कहने वाले किराये पर नाच रहे हैं । विश्व और ब्रह्मांड सुंदरियाँ छाटे-छोटे कपड़ों में कमर तोड़े डाल रही हैं कि सेठ सीधे नहीं तो किसी वीडियो में ही देख ले तो दिहाड़ी पक्की हो और आगे की बुकिंग चलती रहे । जिसकी रोटी-रोजी ही प्रदर्शन पर चलती हो उसे सेलेब्रिटी होना, होने के बाद सेलेब्रिटी बने रहना जरूरी हो जाता है । चर्चा और नज़रों में रहे बिना कौन पूछेगा ? जो दिखता है सो बिकता है फिर चाहे वह शोभा हो या शरीर । 


और जॉन सीना, जिसने ऑस्कर में बेस्ट कॉस्टयूम डिजाइन के लिए अवॉर्ड देते समय गुप्त अंगों के आगे एक प्ले कार्ड लगाकर अपनी देह यष्टि का प्रदर्शन करते हुए आवरणों की निरर्थकता का संदेश दे दिया था आज पैसे लेकर प्रॉपर ड्रेस में भांगड़ा कर रहा है ।   



और उससे भी ज्यादा दूल्हे-दुल्हन की तरह-तरह के छोटे बड़े वस्त्रों और मुद्राओं में हजारों फ़ोटो । शादी से पहले ही तरह-तरह की रस्मों में सब कुछ देख-दिखाने के बाद वह सनसनी कहाँ बचती है जो उन दिनों दुल्हन की छवि के लिए अंतिम क्षण तक दूल्हे के मन-प्राण में होती थी । वधू तो फिर भी वर को देख सकती थी । घूँघट का यही सबसे बाद फायदा है कि खुद किसी को नजर आए बिना सबको देख लो ।

 

हमारे जमाने में लड़के की पहली फ़ोटो तब खिंचती थी जब हाई स्कूल का फॉर्म भरा जाता था और लकड़ी की तब जब उसके रिश्ते की बात चलती थी ।हमारी शादी में हमारे चाचाजी ने अपने कैमरे से आठ ब्लेक-व्हाइट फ़ोटो खींची थीं । फेरों में पत्नी डेढ़ फुट का घूँघट निकाले थी । पता ही नहीं चलता था किसके साथ भाँवरें पड़ रही हैं ।  1945-50 के बीच तो फ़ोटो का कोई झंझट ही नहीं हुआ करता था । वर वधू को  एक दूसरे को देखनना तो दूर, उत्सुकता दिखाने का कोई अधिकार नहीं होता था।  


बोला- लेकिन अब समय बदल गया है । नेहरू-गांधी का ज़माना नहीं रहा । मोदी है तो मुमकिन है । आज  मोदी के भारत का ‘अमृत काल’ है । सारे दिन फोन पर जन्नत की सैर करते रहो ।   


हमने कहा- आजकल सबसे ज्यादा बेकदरी तीन चीजों की हुई है- फोन, कैमरा और घड़ी। और इंन सबसे ज्यादा बेकदरी हुई है तथाकथित विशिष्ट जनों की । क्या नेता, क्या अभिनेता । क्या पहले ऐसा देखा कि  दिलीप कुमार और बलराज साहनी सेठों की शादियों में नाच रहे हैं ? पहले सन्यासी विवाहों में कब जाते थे ? और आज तीन तीन शंकराचार्य विराजे हुए हैं धर्म-ध्वजाओं सहित । हालांकि रामदेव व्यापारी है फिर भी भगवा का भरम तो है । देखा, कैसे नाच रहा है जैसे होली में रँडुए ।  अब कहाँ है दीपिका के भगवा रंग वाले डांस पर भड़कने वाले  ?   


बोला- पहले की बात और थी। तब सबको राम नचाता था और आज  ‘सबहिं नचावत माल गुसाईं’ । सबके स्टेबलिशमेंट हैं, सबको मैनेज करना पड़ता है । चलो इस बहाने शंकराचार्य और मोदी जी का डेमेज कंट्रोल भी हो गया । 


हमने कहा-  क्या किया जाए । अगर मोदी जी 400 पार हो जाते तो देखते राष्ट्रपति भवन के परिसर में इन धनपतियों की परेड और शंकराचार्यों का जमावड़ा । 

 

बोला- तो फिर तुझे कुछ भी ढंग का नहीं लगा ? व्यर्थ ही 5 हजार करोड़ फूँक दिए लाला ने । 


हमने कहा- तो कौन से अपनी जेब से फूंके हैं । तामझाम समेटा नहीं उससे पहले ही बढ़ा नहीं दिए रिचार्ज के रेट ? मछली अपने ही तेल में भुनती है । भुगतो तमाशा देखने की सजा । मोदी जी क्या चाय के पैसों से लखटकिया सूट पहनते हैं ? 


हाँ, एक बात हमें अच्छी लगी । 


तोताराम उत्साहित हुआ, बोला- चलो कुछ तो जँचा तुझे । क्या जँचा ?


हमने कहा- अंबानी परिवार की कुतिया ‘हैप्पी’ । सबसे निरपेक्ष, सहज, स्थितिप्रज्ञ । हालांकि उसे एक गुलाबी जैकेट जैसा कुछ पहना दिया गया था । वैसे वह अपने स्वाभाविक वेश में भी ऐसे ही रहती । यही फरक है मनुष्य और अन्य जीवों में । वे अपने जन्म को जीते हैं और मनुष्य जो नहीं है वह दीखने के चक्कर में न जाने क्या बन जाता है ।  


 



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