क्यों बैठे हो घर के अंदर ?
बड़े सेठों और ट्रम्प पर तो जोर चलता नहीं लेकिन मोदी जी हम पेंशनरों को जब चाहें गर्दन पकड़कर झिंझोड़ देते हैं । कभी कोरोना के टीके के बहाने खर्चे को पटाने के बहाने डीए का एरियर हजम कर जाते हैं तोो कभी अर्थव्यवस्था को दस-बीस ट्रिलियन की बनाने के बहाने आठवें पे कमीशन को सदैव के लिए डकार जाते हैं । इसलिए जब से वे तीसरी बार चुनकर आए हैं हमारे घुटनों में दर्द रहने लगा है । पिछले साल बाएं घुटने में दर्द शुरू हुआ । किसी तरह कुछ घरेलू कोशिशों और पथ्य परहेजों से और कुछ आदत पड़ जाने से सहज हो गए थे लेकिन कल शाम को जब पानी आया तो हमने दो-तीन घड़े बाहर नल के पास से उठाकर रसोई में रख दिए । फिर क्या था अचानक चाल अमित शाह जी की मस्त चाल से बिगड़कर महाभारत के मामा शकुनि की तरह बल खाने लगी ।
रात के बारह-एक बजे तक का तो याद है, दर्द के मारे नींद नहीं आई । इसके बाद कब आँख लग गई पता नहीं । बाहर बरामदे में लगातार चंदर, अंदर, बंदर जैसे काफिया वाले शब्द सुनाई दिए । इनमें एक शब्द ‘रमेश चंदर’ भी सुनाई दिया तो हमने अनुमान लगाया कि हो सकता है कोई हमें ही पुकार रहा है ।
वैसे जब हमने लिखना शुरु किया था तब उपनामों का चलन था विशेषरूप से कवियों और शायरों में तो लगभग अनिवार्य रूप से । हमारे राजस्थान के एक शायर हैं जिन्हें मुशायरों और शायरों ं के बीच पहचान बनाने के लिए और कुछ नहीं सूझा तो अपने नाम शिव कुमार से ‘शीन काफ’ ही बना लिया । हमने भी उपनाम रखा था लेकिन कुछ तो पिताजी की डाँट और कुछ प्रेमचंद, यशपाल,राहुल सांकृत्यायन, मैथिलीशरण गुप्त, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी, इकबाल, दुष्यंत कुमार आदि के बिना उपनाम के ही अच्छा रचनाकार बन जाने से उपनाम त्याग दिया और उस समय के फैशन के अनुसार बीच का नाम जैसे लाल, प्रसाद, कुमार आदि की तरह ‘चंद्र’ निकाल दिया । लेकिन आज सुबह-सुबह अपने बीच वाले नाम को सुनकर लगा कोई परिचित और हम उम्र ही है । अपनों के बीच, अपने गाँव में तुलसी इसी से परेशान होकर कहते हैं-
तुलसी तहाँ न जाइए जहाँ बाप को गाँव ।
दास गयो, तुलसी गयो भयो तुलसियो नाँव
वैसे उम्र बढ़ जाने के कारण कुछ बुजुर्ग लोग जोशीजी, कुछ मास्टर जी कहते हैं और युवा और बच्चे ताऊजी या दादाजी कहते हैं । लेकिन यह ‘रमेश चंदर’ ! बड़ा अजीब लगा ।
ध्यान से सुना तो यह केवल ‘रमेश चंदर’ ही नहीं बल्कि एक मुकम्मल शायरी थी । मतला और एक शे’र-
जोशी मास्टर रमेश चंदर
क्यों बैठे हो घर के अंदर
अगर नहीं लड़ने का दम तो
बाहर आओ करो सरेंडर ।
उठकर देखा तो बरामदे में तोताराम ।
हमने कहा- यह क्या है ? हमेशा की तरह ‘मास्टर’ कहकर नहीं बुला सकता ? हमें चिढ़ाने के लिए यह राहुल गाँधी वाले ट्रॉलीय शब्द ‘नरेंदर- सरेंडर’ की तरह ‘रमेश चंदर’ ‘रमेश चंदर’ लगा रखी है । यह ‘चंदर’ हम व्यवहार में कब का छोड़ चुके । बस, सरकारी कामों, पासपोर्ट, आधार आदि में बचा हुआ है यह ‘चंदर’ । और फिर यह क्या भाषा है और क्या विषय ? नितांत स्तरहीन ।
बोला- आजकल सब बातों का स्टेंडर्ड गिर चुका है । जब संसद, विधानसभाओं, धार्मिक स्थानों और शिक्षण संस्थानों तक में अपराधी घुसे हुए हैं तब तू भाषा की बात कर रहा है । आजकल तो टीवी चेनलों में चर्चाओं में संस्कारी पार्टी वाले माँ-बहन कर रहे हैं ।
हमने कहा- तो तेरे इन रदीफ़-काफ़ियों में अब चुकंदर, छछूंदर, बंदर, भगन्दर आदि और जोड़ ले ।
बोला- आई टी सेल को बैठा तो रखा है लेकिन उन्हें मुसलमान कब्रिस्तान, पाकिस्तान, झटका और हलाल से आगे सूझ ही नहीं रहा है । यह ससुर ‘’नरेंदर सरेंडर’ ऐसा चिपका है कि छूट ही नहीं रहा है ।
हमने कहा- तोताराम, ऐसे में बहर, छंद, रदीफ़, काफिये नहीं देखे जाते । अपने रमेश विधूड़ी की तरह कटुए, आतंकवादी, की तरह शुरू हो जा । भक्तों को बचाने के लिए संसद में ओम बिरला की तरह न्यायालयों में रंजन गोगोई बैठा ही रखे हैं । तू तो धर दे मियाँ के सिर पर कोल्हू ।
बोला- मतलब ?
हमने कहा- जर्सी गाय और 50 करोड़ की गर्ल फ्रेंड में कौन सा छंद था । लेकिन पटक दिया सिर पर जैसे मियाँ ने कहा- जाट रे जाट, तेरे सिर पर खाट ।
जाट भी आशुकवि था । बोला- मियाँ रे मियाँ, तेरे सिर पर कोल्हू । मियाँ ने कहा- तुक तो नहीं मिली । जाट ने कहा- लेकिन बोझ तो मरेगा ।
सो मौका है । और कुछ नहीं तो गाली-गलौज ही करो लेकिन चुप मत रहो ।
बोला- क्या करें मास्टर, हाऊ डी मोदी में जिसका चुनाव प्रचार किया, यहाँ कोरोना में रिस्क उठाकर नरेंद्र मोदी स्टेडियम में अरबों खर्च करके ‘नमस्ते ट्रम्प’ कार्यक्रम किया, जिससे भाग भागकर भेंटे वही ट्रम्प ढोल पीट रहा है कि मैंने युद्ध विराम करवाया है । अब कौन मानेगा कि हमारी सेना के युद्ध कौशल और कूटनीति के कारण पाकिस्तान घुटनों पर आ गया तो हम क्यों और कैसे अचानक युद्ध विराम करने को विवश हो गए ।
रही सही कसर पाकिस्तान को अरबों की सहायता देकर और आतंकवाद विरोधी समिति का सदस्य बनाकर पूरी कर दी । अब किस मुँह से क्या कहें ?
हमने कहा- फिर भी जैसे राहुल की दाढ़ी की सद्दाम की दाढ़ी से तुलना की थी वैसे ही 'राहुल' के साथ बाबुल, काबुल मिला कर कुछ बनाओ । लगाओ आई टी सेल को ड्यूटी पर ।
बोला- तू भी तो शायर की दुम बना फिरता है, सोच कुछ । सीकर के दीनदयाल विश्वविद्यालय में भारतीय ज्ञान परंपरा पर पुस्तकें प्रकाशित करने की योजना बन रही है । तुझे भी घुसड़वा देंगे कहीं संपादक मण्डल में ।
हमने कहा- राहुल तो नहीं, प्रियंका के साथ लंका, शंका जैसा कुछ सरलता से जोड़ा जा सकता है ।
बोला- जो करना है जल्दी कर । इस समय साहब का डंका, हिन्दुत्व और राष्ट्र सब खतरे में हैं । देखा नहीं, फ्रांस में ग्लो करने वाले फेस पर कैसे 12 बजे हुए हैं ।
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