Jun 7, 2025


क्यों बैठे हो घर के अंदर ?  

 

बड़े सेठों और ट्रम्प पर तो जोर चलता नहीं लेकिन मोदी जी हम पेंशनरों को जब चाहें गर्दन पकड़कर झिंझोड़ देते हैं ।  कभी कोरोना के टीके के बहाने खर्चे को पटाने के बहाने डीए का एरियर हजम कर जाते हैं तोो कभी अर्थव्यवस्था को दस-बीस ट्रिलियन की बनाने के  बहाने आठवें पे कमीशन को सदैव के लिए डकार जाते हैंइसलिए जब से वे तीसरी बार चुनकर आए हैं हमारे घुटनों में दर्द रहने लगा हैपिछले साल बाएं घुटने में दर्द शुरू हुआकिसी तरह कुछ घरेलू कोशिशों और पथ्य परहेजों से और कुछ आदत पड़ जाने से सहज हो गए थे लेकिन कल शाम को जब पानी आया तो हमने दो-तीन घड़े बाहर नल के पास से उठाकर रसोई में रख दिएफिर क्या था अचानक चाल अमित शाह जी की मस्त चाल से बिगड़कर महाभारत के मामा शकुनि की तरह बल खाने लगी 

रात के बारह-एक बजे तक का तो याद है, दर्द के मारे नींद नहीं आईइसके बाद कब आँख लग गई पता नहींबाहर बरामदे में लगातार चंदर, अंदर, बंदर जैसे काफिया वाले शब्द सुनाई दिएइनमें एक शब्दरमेश चंदरभी सुनाई दिया तो हमने अनुमान लगाया कि हो सकता है कोई हमें ही पुकार रहा है 

 

वैसे जब हमने लिखना शुरु किया था तब उपनामों का चलन था विशेषरूप से कवियों और शायरों में तो लगभग अनिवार्य   रूप सेहमारे राजस्थान के एक शायर हैं जिन्हें मुशायरों और शायरों ं के बीच पहचान बनाने के लिए और कुछ नहीं सूझा तो अपने नाम शिव कुमार सेशीन काफही बना लियाहमने भी उपनाम रखा था लेकिन कुछ तो पिताजी की डाँट और कुछ प्रेमचंद, यशपाल,राहुल सांकृत्यायन, मैथिलीशरण गुप्त, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी, इकबाल, दुष्यंत कुमार आदि के बिना उपनाम के ही अच्छा रचनाकार बन जाने से उपनाम त्याग दिया और उस समय के फैशन के अनुसार बीच का नाम जैसे लाल, प्रसाद, कुमार आदि की तरहचंद्र निकाल दियालेकिन आज सुबह-सुबह अपने बीच वाले नाम को सुनकर लगा कोई परिचित और हम उम्र ही हैअपनों के बीच, अपने गाँव में तुलसी इसी से परेशान होकर कहते हैं-  

तुलसी तहाँजाइए जहाँ बाप को गाँव 

दास गयो, तुलसी गयो भयो तुलसियो नाँव 

 

वैसे उम्र बढ़ जाने के कारण कुछ बुजुर्ग लोग जोशीजी, कुछ मास्टर जी कहते हैं और युवा और बच्चे ताऊजी या दादाजी कहते हैंलेकिन यहरमेश चंदर! बड़ अजीब लगा 

ध्यान से सुना तो यह केवलरमेश चंदरही नहीं बल्कि एक मुकम्मल शायरी थीमतला और एक शे’र-  

जोशी मास्टर  रमेश चंदर  

क्यों बैठे हो  घर के अंदर  

अगर नहीं लड़ने का दम तो  

बाहर आओ करो सरेंडर 

 

उठकर देखा तो बरामदे में तोताराम ।   

हमने कहा- यह क्या है ? हमेशा की तरहमास्टरकहकर नहीं बुला सकता ? हमें चिढ़ाने के लिए यह राहुल गाँधी वाले ट्रॉलीय शब्द  ‘नरेंदर- सरेंडर’  की तरहरमेश चंदर’ ‘रमेश चंदरलगा रखी है ।  यहचंदरहम व्यवहार में कब का छोड़ चुकेबस, सरकारी कामों, पासपोर्ट, आधार आदि में बचा हुआ है यहचंदर’ । और फिर यह क्या भाषा है और क्या विषय ? नितांत स्तरहीन 

बोला- आजकल सब बातों का स्टेंडर्ड गिर चुका हैजब संसद, विधानसभाओं, धार्मिक स्थानों और शिक्षण संस्थानों तक में अपराधी घुसे हुए हैं तब तू भाषा की बात कर रहा हैआजकल तो टीवी चेनलों में चर्चाओं में संस्कारी पार्टी वाले माँ-बहन कर रहे हैं 

 

हमने कहा- तो तेरे इन रदीफ़-काफ़ियों में अब चुकंदर, छछूंदर, बंदर, भगन्दर आदि और जोड़ ले 

 

 

Picture 

 

बोला- आई टी सेल को बैठा तो रखा है लेकिन उन्हें  मुसलमान कब्रिस्तान, पाकिस्तान, झटका और हलाल से आगे सूझ ही नहीं रहा हैयह ससुर ‘’नरेंदर सरेंडर’  ऐसा चिपका है कि छूट ही नहीं रहा है 

 

हमने कहा- तोताराम, ऐसे में बहर, छंद, रदीफ़, काफिये नहीं देखे जातेअपने रमेश विधूड़ी की तरह कटुए, आतंकवादी, की तरह शुरू हो जाभक्तों को बचाने के लिए संसद में ओम बिरला की तरह न्यायालयों में रंजन गोगोई बैठा ही रखे हैंतू तो धर दे मियाँ के सिर पर कोल्हू 

बोला- मतलब ?  

हमने कहा- जर्सी गाय और 50 करोड़ की गर्ल फ्रेंड में कौन सा छंद थालेकिन पटक दिया सिर पर जैसे मियाँ ने कहा- जाट रे  जाट, तेरे सिर पर खाट 

जाट भी आशुकवि थाबोला- मियाँ रे मियाँ, तेरे सिर पर कोल्हूमियाँ ने कहा- तुक तो नहीं मिलीजाट ने कहा- लेकिन बोझ तो मरेगा 

सो मौका हैऔर कुछ नहीं तो गाली-गलौज ही रो किन चु मत रहो 

बोला- क्या करें मास्टर, हाऊ डी मोदी में जिसका चुनाव प्रचार किया, यहाँ कोरोना में रिस्क उठाकर नरेंद्र मोदी स्टेडियम में अरबों खर्च करकेनमस्ते ट्रम्पकार्यक्रम किया, जिससे भाग भागकर भेंटे वही ट्रम्प  ढोल पीट रहा है कि मैंने युद्ध विराम करवाया हैअब कौन मानेगा कि हमारी सेना के युद्ध कौशल और कूटनीति के कारण पाकिस्तान घुटनों परगया तो हम क्यों और कैसे अचानक युद्ध विराम करने को विवश हो गए ।  

रही सही कसर पाकिस्तान को अरबों की सहायता देकर और आतंकवाद विरोधी समिति का सदस्य बनाकर पूरी कर दीअब किस मुँह से क्या कहें ?  

हमने कहा- फिर भी जैसे राहुल की दाढ़ी की सद्दाम की दाढ़ी से तुलना की थी वैसे ही 'राहुल' के साथ बाबुल, काबुल मिला कर कुछ बनाओ । लगाओ आई टी सेल को ड्यूटी पर ।   

बोला- तू भी तो शायर की दुम बना फिरता है, सोच कुछसीकर के दीनदयाल विश्वविद्यालय में भारतीय ज्ञान परंपरा पर पुस्तकें प्रकाशित करने की योजना बन रही हैतुझे भी घुसड़वा देंगे कहीं संपादक मण्डल में

हमने कहा- राहुल तो नहीं, प्रियंका के साथ लंका, शंका जैसा कुछ सरलता से जोड़ा जा सकता है ।

बोला- जो करना है जल्दी कर । इस समय साहब का डंका, हिन्दुत्व और राष्ट्र सब खतरे में हैं । देखा नहीं, फ्रांस में ग्लो करने वाले फेस पर कैसे 12 बजे हुए हैं ।  

 

 

 

 


पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach